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पिछडों की आवाज दवाना चाहती है सत्ता जॉन लगा देंगे लड़ेंगे जीतेंगे-ऐसा कथन अजय साहू जी का।

जिला-सिवनी ब्यूरो चीफ
अनिल दिनेशवर
पिछडों की आवाज दवाना चाहती है सत्ता

जॉन लगा देंगे लड़ेंगे जीतेंगे-ऐसा कथन अजय साहू जी का

सिवनी,ओबीसी महासभा के बढ़ते जनाधार को देख ओबीसी विरोधीयों में बौखलाहट नजर आ रही है अपना मानसिक संतुलन खो रहे हैं। ओबीसी महासभा के जिला संयोजक लोकेश साहू का दबाब डालकर निलंबन इस बात का प्रमाण है।जो अपने कर्तव्य परायणता ईमानदारी से अपनी सेवाएं दे रहे एक शिक्षक जो स्वयं दीपक की तरह जलकर दुसरो को प्रकाशवान करता है उस पर दुर्वाहनापूर्ण कार्यवाही की आलोचना हो रही है और समस्त पिछड़े वर्गों में आक्रोश पनप रहा है उक्ताशय की बात ओबीसी महासभा कृषक मोर्चा जिला संयोजक बसंत चंद्रवंशी और अध्यक्ष अजय साहू द्वारा प्रेस को जारी विज्ञप्ति में कही गई है।

उल्लेखनीय है कि 23 सितंबर से जिले के किसानों को उनकी मक्का फसल को उचित दाम दिलाने ओबीसी महासभा आंदोलनरत है। महासभा द्वारा गाँधी जयंती 2 अक्टूबर से अपने माननीय विधायकों से मक्का फसल के उचित दाम दिलवाने गाँव-गाँव से ज्ञापन प्रेषित करने का सत्याग्रह आंदोलन घोषित किया गया था। इस आशय के समाचार अखबारों में प्रकाशित कराये गये थे। ओबीसी महासभा के जिला संयोजक लोकेश साहू (जो कि शिक्षक भी हैं) ने अपनी फेसबुक में प्रकाशित समाचार की कटिंग लगाकर ज्ञापन देने का आह्वान किया गया। बस यही बात ओबीसी विरोधियों को खटक गई और उन्होंने डीईओ. पर राजनीतिक दबाव देकर श्री साहू का निलंबन करा दिया।

दुर्भावना पूर्वक की गई निलंबन की इस कार्यवाही से कृषक समाज भारी आक्रोशित है। किसानों का कहना है कि सरकार एक ओर किसान हित की बाते करती है जमीन में दोहरा रवैया देखने को मिल रहा है किसान हित के लिए ओबीसी महासभा आवाज को बुलंद कर रही है किसानों को उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना ही चाहिए विगत बर्षो में उपज के दाम ना मिलने से किसान कर्जो में डूबे पड़े है। पिछडों को संगठित होकर रास्ता दिखाना संवेधानिक अधिकार है किंतु ओबीसी महासभा के जिला सयोंजक का निलंबन वह भी अन्नदाता किसान को आधार बना कर गला दबोचने जैसा है। ओबीसी समाज मे जनचेतना आ गई है जिसे अब सहन नहीं किया जा सकता और इस आक्रोश को व्यक्त करने 21 अक्टूबर को जिले की सभी तहसीलों में तहसीलदार के माध्यम से माननीय कलेक्टर को ज्ञापन प्रेषित कर लोकेश साहू का निलंबन आदेश वापस लेने की माँग करेंगे। और यदि उन्हें न्याय नहीं मिलता है तो आगे चरण वद्ध उग्र आंदोलन यहां तक की आमरण अनशन तक करेंगे।

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