इंडियन न्यूज़ रिपोर्टर संतोष गलानी सिहोरा
सिवनी/लखनादौन कहानी मेहता पिपरिया लखनादौन में किसान पानी की एक-एक बूँद के लिए तरस रहे थे, जहाँ सूखे के कारण मूंग की पैदावार नाममात्र की थी वहाँ सरकारी खरीदी केंद्रों पर अचानक 10 से 12 हजार क्विंटल मूंग कहाँ से आ गई यह सवाल अब सिर्फ़ किसानों का नहीं बल्कि पूरे ज़िले का है। समर्थन मूल्य पर मूंग की खरीदी के नाम पर राजस्व अधिकारियों और खरीदी केंद्र प्रभारियों ने नियमों को ताक पर रखकर एक ऐसा ‘खेल’ खेला है, जिसने सरकारी तंत्र को पूरी तरह से कटघरे में खड़ा कर दिया है
बिना सिकमीनामा और गिरदावरी के हुआ खेल
नियमानुसार समर्थन मूल्य पर फसल बेचने के लिए किसानों के पास सिकमीनामा बंटाईदार का प्रमाण और गिरदावरी (फसल का सत्यापन होना अनिवार्य है लेकिन यहाँ तो इन नियमों की धज्जियाँ उड़ा दी गईं हज़ारों पंजीयन बिना किसी वैध दस्तावेज़ के कर दिए गए और न सिर्फ़ खरीदी हुई बल्कि तुरंत भुगतान भी कर दिया गया सवाल यह है कि जब खेतों में मूंग थी ही नहीं तो गिरदावरी रिपोर्ट कैसे बनी साफ़ है कि अधिकारियों ने अपने दफ़्तरों में बैठकर ही कागज़ों में फ़र्ज़ी पैदावार दर्ज कर दी यह सब बिना उच्च अधिकारियों की मिलीभगत के संभव ही नहीं है।
बाज़ार से कम रेट और व्यापारियों का मालामाल होना
इस पूरे घोटाले की जड़ है सरकारी रेट और बाज़ार भाव का बड़ा अंतर सरकार जहाँ मूंग को ₹8682 प्रति क्विंटल पर खरीद रही थी वहीं बाज़ार में इसका भाव केवल ₹5000-₹5500 था इस बड़े मुनाफ़े ने व्यापारियों की काली कमाई का रास्ता खोल दिया सूत्रों के अनुसार व्यापारियों ने बाहरी ज़िलों जैसे नरसिंहपुर और कटनी से कम दाम पर मूंग मंगाई, किसानों के नाम पर फ़र्ज़ी पंजीयन करवाए और खरीदी केंद्रों पर बेचकर करोड़ों रुपये का मोटा मुनाफ़ा कमाया इस काले धंधे में किसानों को बस थोड़ा सा कमीशन देकर उनका इस्तेमाल किया गया *वीरान ज़मीनों पर भी मूंग की खेती
इस घोटाले में हद तो तब हो गई जब दस्तावेज़ों में सालों से वीरान पड़ी ज़मीनों को भी उपजाऊ बताकर पंजीयन करवा लिया गया। सहकारी समितियों की पर्चियों और शपथ पत्रों में भारी विसंगतियाँ पाई गई हैं। यह सब साफ़ तौर पर बताता है कि यह एक सोची-समझी साज़िश है, जिसमें नीचे से लेकर ऊपर तक के अधिकारी शामिल हैं
इतनी बड़ी अनियमितता सामने आने के बाद भी ज़िला प्रशासन की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। न कोई जाँच शुरू हुई है न किसी ज़िम्मेदार पर कार्रवाई क्या लखनादौन का यह मूंग खरीदी घोटाला भी अन्य घोटालों की तरह ही फाइलों में दबकर रह जाएगा या फिर प्रशासन हिम्मत दिखाकर दोषियों को बेनक़ाब करेगा? यह अभी भी एक बड़ा सवाल है