राजगढ़ ब्यूरो चीफ संतोष गोस्वामी
पशुओं में लंपी वायरस की बीमारी से बचाव हेतु पशुपालन विभाग द्वारा दी गई जानकारी
उपसंचालक पशुपालन डॉ. महिपाल सिंह कुशवाहा द्वारा बताया गया कि पिछले वर्ष के भांति इस वर्ष भी मौसम के बदलाव को देखते हुए लंपी वायरस की बीमारी का खतरा पशुओं में बना रहा सकता है। यह बीमारी पशुओं में कभी भी दस्तक दे सकती है। इससे हमें पूर्व से ही सजग रहना आवश्यक है।
उन्होंने सभी पशुपालक भाइयों से आग्रह किया है कि उक्त बीमारी से अपने जानवरों के बचाए हेतु अपने नज़ीदिकी पशुपालन विभाग के अधिकारियों से संपर्क करे।
क्या होता है लंपी वायरस
लंपी स्किन डिजीज को ‘ढेलेदार या गांठदार त्वचा रोग वायरस’ के रूप में भी जाना जाता है। वहीं इसे एलएसडीवी भी कहते हैं। यह एक संक्रामक रोग है, जो एक जानवर से दूसरे जानवर में फैलता है। एक संक्रमित जानवर के संपर्क में आने से दूसरा जानवर भी बीमार हो सकता है। यह रोग Capri Poxvirus नामक वायरस के कारण होता है। यह वायरस बकरी, लोमड़ी और भेड़ चेचक वायरस (गोट फॉक्स और शीप पॉक्स वायरस) के परिवार से संबंधित है। जानकारों के मुताबिक मवेशियों में यह बीमारी मच्छर के काटने और खून चूसने वाले कीड़ों के जरिए फैलता है।
मवेशियों में यह बीमारी एक वायरस के कारण फैल रही है।t जिसे ‘नोडुलर (गांठदार) स्किन डिजीज वायरस’ कहा जाता है। इसकी तीन प्रजातियां हैं। जिसमें पहली प्रजाति ‘कैप्रीपॉक्स वायरस’ है। इसके अन्य गोटपॉक्स वायरस और शीपपॉक्स वायरस हैं।
लंपी स्कीन डिजीज के लक्षण
इस रोग के कई लक्षण है। जिसमें मवेशियों को बुखार आना, पशुओं के वजन में कमी, आंखों से पानी टपकना, लगातार लार बहना, शरीर पर दाने निकलना, दूध कम देना और भूख न लगाना जैसे लक्षण देखे गए हैं।
ये खतरनाक रोग एक ऐसी बीमारी है, जो मवेशियों के सीधे संपर्क में आने और दूषित भोजन एवं पानी के जरिए भी फैलती है। इससे बचाव के लिए अपने संक्रमित पशु को अलग रखें और तबेले की साफ सफाई रखें। इसके साथ ही नियमित तौर पर मच्छरों को भगाने के लिए स्प्रे करें। साथ ही संक्रमित पशु को गोट पॉक्स वैक्सीन लगवाएं और पशुओं को चिकित्सक की सलाह पर दवा दे सकते हैं।
सभी पशुपालक ऐसे लक्षण मिलने पर तुरंत अपने नजदीकी पशु औषधालय एवं पशु चिकित्सालय से संपर्क करें और तत्काल बीमारी से ग्रसित पशु को चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध कराए।