बेघर लोगों के लिए रैनबसेरा या आश्रय मुहैया कराने का आश्वासन..
ना जाने कितने लोग बेघर व मासूम,गरीब बेसहारा ढंड से मौत के मुंह में समा जाते.
सरकार,सभ्य और संवेदनशील समाज के लिए मानवीयता का तकाजा.
हर साल सर्दी में सरकार बेघर लोगों के लिए रैनबसेरा या आश्रय मुहैया कराने का आश्वासन देती है। कुछ तात्कालिक उपाय किए भी जाते हैं। पर लगता है कि इस तरह की औपचारिक गतिविधियों का असर सीमित ही रहता है। वरना क्या वजह है कि राहत पहुंचाने के तमाम दावों के बावजूद ठंड की मार से मरने वालों की तादाद चिंताजनक आंकड़े तक पहुंच जाती है।इस वर्ष भी ढंड में ना जाने कितने लोगों की जान इसलिए चली जाती है कि वे बेघर थे और उनके पास ठंड से बचने के न्यूनतम इंतजाम भी नहीं होते!यहां यह सोचने की जरूरत है कि हमारी सरकारों की नजर में बेहद गरीब लोगों के लिए क्या जगह है और उनके लिए बनाई नीतियों और समाज कल्याण कार्यक्रमों की जमीनी हकीकत क्या है! देश के सभी शहरों व महानगरों वे राजधानीयों में ऐसे बेघर लोगों की मुश्किलों का सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है। ऐसे तमाम लोग हैं जो सिर्फ इसलिए अपने गांव या दूरदराज के इलाकों से शहरों या महानगरों में आ जाते हैं, ताकि खुद या अपने परिवार के जिंदा भर रह सकने लायक कुछ कमा सकें। लेकिन चूंकि उनके पास कोई ठिकाना नहीं होता है, इसलिए खुले आसमान के नीचे रात गुजारना उनकी मजबूरी होती है। गरमी या दूसरे मौसम में तो किसी तरह उनका वक्त कट जाता है, लेकिन कड़ाके की ठंड में एक रात का सुरक्षित निकल जाना उनके लिए असीम राहत का मामला होता है। ठंड में ऐसी जानलेवा चुनौती का सामना करने वाले लोगों की तादाद लाखों में है। सवाल है कि अगर इन निराश्रित लोगों के सामने अभाव एक लाचारी है, तो एक कल्याणकारी मूल्यों पर चलने वाली लोकतांत्रिक सरकार की क्या जिम्मेदारी बनती है? लेकिन ऐसा लगता है कि इस तरह के हर मामले में औपचारिकता पूरी कर लेने को सरकार काफी मानती है। गरीबी और अभाव से दो-चार लोगों की मुश्किलों का हल सरकार की प्राथमिकता सूची में शामिल नहीं हो पाता है। यह बेवजह नहीं है कि अमूमन हर साल कड़ाके की ठंड की मार से काफी तादाद में लोगों की जान चली जाती है। जबकि अकेले पर्याप्त रैनबसेरों का इंतजाम ही बहुत सारे लोगों को मौत के मुंह में जाने से बचा सकता है। कंबल या गर्म कपड़े मुहैया करा कर भी बहुत सारे लोगों का जीवन आरामदेह बनाया जा सकता है। यह एक सभ्य और संवेदनशील समाज के लिए मानवीयता का तकाजा है। सरकारों की यह जिम्मेदारी है कि वह ऐसे इंतजाम करे, ताकि एक भी व्यक्ति की मौत मौसम की वजह से न हो।
रमेश सैनी सहारनपुर इंडियन टीवी न्यूज़