बनारस की वो तवायफ जिसने बड़ी चालाकी से क्रांतिकारी शहीद चंद्रशेखर आजाद को पुलिस से छिपाया, भनक भी नहीं लगने दी
Indian tv news/ब्यूरो चीफ. करन भास्कर चन्दौली उत्तर प्रदेश
चन्दौली वाराणसी यह बात बनारस की प्रसिद्ध तवायफ धनेशरी बाई की है, जो दालमंडी थाने के पीछे रहती थीं। उन्होंने क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद को पुलिस थाने के पीछे अपने घर में छिपाते हुए शरण दी कि उसको भनक तक नहीं लग सकी। धनेशरी का कोठा तब अपने मुजरे के लिए बहुत फेमस था। बड़े बड़े लोग वहां आते थे. महफिलें रोज सजा करती थीं।
आजादी की लड़ाई के दौरान बनारस का दालमंडी इलाका नाच-गाने और कोठों का एक प्रमुख क्षेत्र था. जहां तवायफों की महफिलें सजती थीं. कहा जाता है कि ये इलाका संगीत, नृत्य और अदब का ऐसा केंद्र रहा कि इसका योगदान हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की परंपरा को भी खूब था. उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने खुद कहा था, “अगर दालमंडी और यहां की तवायफें न होतीं, तो शायद बिस्मिल्लाह खान भी न होते।”
दालमंडी का रोल
दालमंडी को कभी “डॉलमंडी” भी कहा जाता था, जो तवायफों के कोठों और मुजरा की वजह से प्रसिद्ध हुआ. यहां की तवायफें केवल नृत्य-गीत तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय भूमिका निभाई।
खूबसूरती के साथ नृत्यकला और गायकी में पारंगत
धनेशरी बाई दालमंडी की उन चुनिंदा प्रसिद्ध तवायफों में एक थीं, जिन्होंने बनारसी तहजीब को समृद्ध किया. 20वीं शताब्दी में सक्रिय धनेशरी बाई अपनी बला की खूबसूरती, नृत्य कला और गायकी के लिए जानी जाती थीं. दालमंडी के दोमंजिले कोठों में नीचे व्यापार होता था, जबकि ऊपरी हिस्सों में उनकी महफिलें सजती थीं, जहां नवाब, जमींदार और कलाप्रेमी इकट्ठा होते।माना जाता है कि चंद्रशेखर आजाद बनारस में अपनी पढ़ाई के दौरान ही क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय हो गए थे. 1920 के दशक में वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के प्रमुख सदस्य बने. ब्रिटिश पुलिस की नजर में आने के बाद फरार हो गए. इस दौरान वह पुलिस की तलाश से बचने के लिए कई स्थानों पर छिपते रहे. धनेशरी बाई ने उसी दौरान आजाद को अपनी हवेली में शरण दी, जब वे पुलिस से बच रहे थे. यह घटना अल्फ्रेड पार्क कांड (1931) से पहले की है।
प्रभावशाली लोग आते थे उनके कोठे पर
एक प्रसिद्ध तवायफ के रूप में उनका कोठा समाज के उच्च और प्रभावशाली वर्गों के लोगों के आने-जाने का केंद्र था. उनकी हैसियत और स्थान चंद्रशेखर आजाद को छिपाने के लिए एक आदर्श ढाल बन गया. ब्रिटिश पुलिस का ध्यान शायद ही कभी ऐसे स्थानों पर जाता था, क्योंकि वे इन्हें केवल मनोरंजन का अड्डा मानते थे।
चंद्रशेखर आजाद को भी ब्रिटिश पुलिस के शिकंजे से बचने के लिए एक ऐसे सुरक्षित ठिकाने की जरूरत थी जहां उन पर संदेह न हो. ये स्थान इतना गोपनीय और अप्रत्याशित था कि पुलिस की नजरों से बचने में यह बहुत कारगर साबित हुआ।भगत सिंह और दूसरे क्रांतिकारियों के लिए भी गुप्त स्थल
धनेशरी बाई का ये कोठा सिर्फ आजाद के लिए ही नहीं, बल्कि भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों के लिए भी एक गुप्त बैठक स्थल बना करता था. ऐसा माना जाता है कि हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की कई महत्वपूर्ण बैठकें यहीं हुईं. कोठे पर होने वाली रंगरेली महफिलों के बीच ही देशभक्ति की गंभीर योजनाएं बनती थीं।
ये तथ्य उस बड़े ऐतिहासिक सच को उजागर करता है कि भारत की आज़ादी की लड़ाई में तवायफों ने भी हिस्सा लिया और देश की सेवा की. उनके कोठे बड़े-बड़े क्रांतिकारियों के लिए एक सुरक्षित ठिकाना बनीं।
माना जाता है कि धनेशरी बाई ने अपने संसाधनों का इस्तेमाल क्रांतिकारियों के लिए धन जुटाने में भी किया. वो अपने अमीर ग्राहकों से मिले पैसों का एक हिस्सा हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन को दान कर देती थीं, ताकि हथियार, बम बनाने के लिए सामग्री और अन्य ज़रूरतें पूरी की जा सकें. धनेशरी बाई के योगदान का उल्लेख विभिन्न ऐतिहासिक स्रोतों और किताबों में मिलता है. इसकी पुष्टि कई गंभीर इतिहासकारों ने अपने शोध में भी की।