हिमाचल प्रदेश में भाजपा के रिवाज बदलने के आह्वान को नकारते हुए जनता ने पांच साल के भाजपा शासन के बाद फिर से कांग्रेस को सत्ता सौंपी। इस साल की शुरुआत में हुए तमाम विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने शिकस्त खाई थी। इससे पहले भी उसे लगातार हार ही मिल रही थी। इससे कांग्रेस समर्थकों और कार्यकर्ताओं का हौसला डगमगाता दिख रहा था। बीते कुछ वक्त में कांग्रेस के कई चर्चित चेहरे भाजपा में सत्ता सुख की लालसा के कारण ही चले गए। कांग्रेस में जी-23 यानी असंतुष्ट नेताओं का एक गुट भी बन गया, जो अपने बयानों और अवांछित सलाहों से कांग्रेस की छवि को बिगाड़ रहा था। लेकिन इस सबके बावजूद कांग्रेस सांसद राहुल गांधी भाजपा के लिए लगातार चुनौती बने रहे। वे जनता से जुड़े मुद्दों को उठाकर ये बताते रहे कि कांग्रेस किस तरह की राजनीति करना चाहती है। पिछले सितंबर से उनकी भारत जोड़ो यात्रा के कारण कांग्रेस में उत्साह की नयी लहर दौड़ी। और अब हिमाचल प्रदेश की जीत ने इस उत्साह को और बढ़ाने का काम किया है। पराजयों और भितरघात से पस्त हो चुकी कांग्रेस में इस जीत का गहरा मनोवैज्ञानिक असर पड़ेगा। यह अच्छी बात है कि हिमाचल प्रदेश की जीत को अब कांग्रेस सही दिशा में ले जा रही है। अन्य प्रदेशों की तरह हिमाचल कांग्रेस में भी अंदरूनी खटपट थी और जीत के बाद मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार भी थे। यह कमोबेश राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसी उलझन वाला ही मामला था। 2018 में इन तीनों राज्यों को कांग्रेस ने भाजपा से वापस अपने कब्जे में किया था। लेकिन मुख्यमंत्री पद के लिए तीनों ही राज्यों में एक से अधिक दावेदार थे। तब राहुल गांधी ने वक्त लगाकर तीनों राज्यों में मुख्यमंत्रियों के नामों का ऐलान इस उम्मीद से किया कि तजुर्बा और जोश दोनों का सही इस्तेमाल हो सके। लेकिन मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीच रास्ते में अपना पाला बदल कर सरकार गिरवा दी।
राजस्थान में सचिन पायलट भी ऐसा ही करने की कोशिश में लगे थे, जिसमें काफी मुश्किल से सरकार को बचाया गया। छत्तीसगढ़ से भी कांग्रेस में असंतोष की खबरें आती रहती हैं, मगर बात अब तक संभली हुई है। पंजाब में अंदरूनी खटपट के कारण ही सत्ता हाथ से चली गई। अब हिमाचल में जीत मिली तो कांग्रेस ने बिना समय गंवाए, विधायकों की रायशुमारी से मुख्यमंत्री के चेहरे का फैसला कर लिया। हिमाचल कांग्रेस के मजबूत नेता और चार बार के विधायक सुखविंदर सिंह सुक्खू ने रविवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। सुखविंदर सिंह सुक्खू पार्टी कैडर में काफी लोकप्रिय हैं, यही वजह है कि अधिकतर विधायकों ने उन्हें मुख्यमंत्री पद पर देखना चाहा। श्री सुक्खू एक समर्पित कांग्रेस नेता रहे और बुरे हालात में भी उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी। श्री सुक्खू की पारिवारिक पृष्ठभूमि साधारण है। उनके पिता बस ड्राइवर थे। संघर्ष के अपने शुरुआती दिनों में सुखविंदर सुक्खू दूध का कारोबार करते थे। जमीन से जुड़े नेता के रूप में श्री सुक्खू की पहचान बनी और अब यही कांग्रेस की ताकत भी है। दरअसल कांग्रेस पर भाजपा अक्सर ये आरोप लगाती है कि वहां साधारण कार्यकर्ताओं की उपेक्षा होती है और बड़े पद केवल संपन्न, रसूखदार लोगों के लिए होते हैं। हालांकि इन आरोपों में कोई दम नहीं है, क्योंकि कांग्रेस के कई मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री सामान्य परिवारों से निकलकर ही राजनीति में आगे बढ़े। फिर भी भाजपा अपने आरोपों को इस तरह से जनता के बीच पेश करती कि उसे वही सच लगने लगता। प्रधानमंत्री मोदी खुद को अब तक गरीब मां का बेटा, चाय बेचने वाला के तौर पर प्रस्तुत करते रहते हैं। भाजपा के कई नेताओं के बच्चे अब संगठन, सरकार या अन्य क्षेत्रों में पदों पर बैठे हैं, इसके बावजूद वंशवाद का ठीकरा केवल कांग्रेस पर भाजपा फोड़ती है।हालिया चुनावों के नतीजे आने के बाद भी गुजरात की जीत से उत्साहित प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि भाजपा को समर्थन वंशवाद और बढ़ते भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों के गुस्से को दिखाता है। अब ये विचारणीय है कि गुजरात में 27 सालों से भाजपा सरकार है, हिमाचल में पांच साल तक भाजपा सरकार रही और केंद्र में भी लगभग 9 सालों से भाजपा की ही सरकार है। फिर जनता ने किसके भ्रष्टाचार के खिलाफ नाराजगी दिखाई और किसके वंशवाद की मुखालफत की। सुखविंदर सुक्खू को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पद पर बिठाकर ये साबित कर दिया है कि कांग्रेस में समर्पित और जमीन से जुड़े नेताओं को आगे बढ़ने का पर्याप्त मौका मिलता है। वैसे सुखविंदर सिंह सुक्खू के मुख्यमंत्री बनने की राह में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह से अड़चन पैदा हो सकती थी। क्योंकि प्रतिभा सिंह के समर्थक उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की मुहिम छेड़े हुए थे। लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने हालात बिगड़ने से पहले बात संभाल ली। खुद श्री सुक्खू प्रतिभा सिंह को शपथग्रहण के लिए आमंत्रित करने पहुंचे। जीत के संकट से गुजर रही कांग्रेस के लिए इस वक्त इसी तरह की एकजुटता जरूरी है, ताकि विपक्षियों को लाभ उठाने न दिया जाए। राजपूत समुदाय से आने वाले श्री सुक्खू के साथ ब्राह्मण वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले अन्य दिग्गज नेता मुकेश अग्निहोत्री को उपमुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने जातीय समीकरण ठीक तरह से साधा है। अब हिमाचल की कांग्रेस सरकार को चुनावी घोषणापत्र में किए वादों को जल्द से जल्द पूरा करने और ईमानदारी से सरकार चलाकर दिखानी होगी, ताकि उसका जनाधार मजबूत बना रहे।
हिमाचल प्रदेश की जीत से जगे उत्साह को नयी ऊर्जा में कैसे बदला जाए, इस पर भी कांग्रेस आलाकमान को विचार करना होगा। क्योंकि गुजरात में कांग्रेस इस कदर सिकुड़ गई कि वहां प्रतिपक्षी दल बनने में संघर्ष करना पड़ रहा है। सत्ता में न रहने के बावजूद कांग्रेस की वहां जो पकड़ थी, वो अब काफी कमजोर हो गई। ऐसा क्यों हुआ, इसका ईमानदार विश्लेषण अगर पार्टी नहीं करेगी, तो फिर बिहार, उत्तरप्रदेश या तमिलनाडु की तरह यहां भी अपना वजूद खो देगी।