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देश की जरूरत,समान नागरिक संहिता

country needs uniform civil code

प्रेम शर्मा

अब वह समय आ गया है कि भारत में समान नागरिक संहिता लागू कर दी जाए। एक लम्बे अरसे से देश की जनता को इसकी जरूरत महसूस हो रही है। एक देेश दो कानून वैसे भी लोकतंत्र के खिलाफ है। समान नागरिक संहिता के खिलाफ दुष्प्रचार इसीलिए किया जा रहा है क्योंकि आम लोगों को इसका भान नहीं है कि उसमें क्या और कैसे प्रविधान होंगे? इसे देखते हुए उचित यह होगा कि विधि आयोग लोगों के सुझाव प्राप्त कर यथाशीघ्र समान नागरिक संहिता का कोई मसौदा देश की जनता के विचारार्थ पेश करे। इससे ही समान नागरिक संहिता को लेकर दुष्प्रचार करने वालों पर लगाम लगेगी।विधि आयोग की ओर से समान नागरिक संहिता पर लोगों से सुझाव मांगने के बाद भोपाल की एक सभा में प्रधानमंत्री का यह कहना उल्लेखनीय है कि यह संहिता समय की मांग है। इसका अर्थ है कि उनकी सरकार समान नागरिक संहिता के निर्माण को लेकर प्रतिबद्ध है। यह अच्छा हुआ कि उन्होंने इसका उल्लेख किया कि कुछ राजनीतिक दल समान नागरिक संहिता को लेकर मुसलमानों को भड़काने का काम कर रहे हैं। यह काम वास्तव में हो रहा है।अनेक राजनीतिक दल और कुछ सामाजिक-धार्मिक संगठन जिस तरह समान नागरिक संहिता के खिलाफ खड़े होते दिख रहे हैं, वह शुभ संकेत नहीं। समान नागरिक संहिता के खिलाफ उठ रही आवाजें न केवल संविधान निर्माताओं के सपनों के विरुद्ध हैं, बल्कि महिलाओं के अधिकारों की अनदेखी करने वाली भी हैं। इसके अतिरिक्त ये एक देश में दो विधान की स्थिति बनाए रखने वाली भी हैं।विश्व के किसी भी पंथनिरपेक्ष देश में अलग-अलग निजी कानून नहीं हैं, लेकिन भारत में वे इसके बाद भी बने हुए हैं कि संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में यह लिखा गया है कि राज्य देश के सभी लोगों के लिए एक समान कानून बनाएगा। क्या यह विचित्र नहीं कि हिंदुओं के निजी कानूनों को तो संविधान लागू होने के कुछ समय बाद ही संहिताबद्ध कर दिया गया, लेकिन अन्य समुदायों के निजी कानून बने रहने दिए गए। निःसंदेह ऐसा वोट बैंक की सस्ती राजनीति के कारण किया गया। इसका कोई मतलब नहीं कि सात दशक बाद भी अलग-अलग समुदाय भिन्न-भिन्न निजी कानूनों के जरिये संचालित होते रहें और वे भी तब, जब उनके कारण महिलाओं के अधिकारों की उपेक्षा होती हो और वे अन्याय का शिकार बनती हों। समान नागरिक संहिता को लेकर लोगों को किस तरह गुमराह किया जा रहा है, इसका पता इससे चलता है कि कुछ राजनीतिक दल यह प्रचारित करने में लगे हुए हैं कि इससे विभिन्न समुदायों की धार्मिक आजादी में हस्तक्षेप होगा।यह निरा झूठ है। समान नागरिक संहिता से किसी समुदाय की धार्मिक रीतियों में कोई हस्तक्षेप नहीं होने वाला। वह तो केवल सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में सहायक होगी। जैसे बाल विवाह, तीन तलाक की कुप्रथा खत्म करने की जरूरत थी, वैसे ही उन कुरीतियों को भी खत्म किया जाना चाहिए, जिनके कारण महिला अधिकारों का हनन होता है। वास्तव में इसी कारण कई बार विभिन्न उच्च न्यायालय और यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय भी समान नागरिक संहिता की आवश्यकता जता चुका है। समान नागरिक संहिता के खिलाफ दुष्प्रचार इसीलिए किया जा रहा है, क्योंकि आम लोगों को इसका भान नहीं है कि उसमें क्या और कैसे प्रविधान होंगे ? इसे देखते हुए उचित यह होगा कि विधि आयोग लोगों के सुझाव प्राप्त कर यथाशीघ्र समान नागरिक संहिता का कोई मसौदा देश की जनता के विचारार्थ पेश करे। इससे ही समान नागरिक संहिता को लेकर दुष्प्रचार करने वालों पर लगाम लगेगी।समान नागरिक संहिता के मामले में यदि विपक्षी दलों के साथ-साथ कांग्रेस के पास कहने को कुछ है तो केवल यही कि आखिर उसकी पहल इसी समय क्यों की जा रही है ? यह कुछ वैसा ही कुतर्क है जैसा अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दिया गया था। तब यह कहा गया था कि इस मामले की सुनवाई आम चुनाव के बाद की जानी चाहिए। कुछ विपक्षी दलों ने समान नागरिक संहिता पर जिस तरह सकारात्मक और तार्किक रवैया अपना लिया है, उससे कांग्रेस की दुविधा बढ़ जाना स्वाभाविक है। कई विपक्षी नेताओं के साथकांग्रेस के भी कुछ नेता समान नागरिक संहिता को समय की मांग बता रहे हैं। कांग्रेस को वोट बैंक की सस्ती राजनीति के कारण वैसी कोई भूल करने से बचना चाहिए, जैसी उसने शाहबानो मामले में की थी। इसकी कीमत केवल उसे ही नहीं, देश को भी चुकानी पड़ी।यदि शाहबानो मामले में राजीव गांधी की सरकार कट्टरपंथी तत्वों के आगे झुकने के बजाय संविधानसम्मत फैसला करती और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ खड़ी होती तो आज स्थिति दूसरी होती। समान नागरिक संहिता का निर्माण लंबित रहना एक तरह से संविधान निर्माताओं के सपनों को जानबूझकर न पूरा करना है। कांग्रेस को इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि जवाहरलाल नेहरू ने तमाम विरोध के बाद भी हिंदू कोड बिल के मामले में किस तरह दृढ़ रवैया अपनाया था। यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ होता है समान नागरिक संहिता। संविधान में भारत में रहने वाले सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून का प्रावधान है ,फिर चाहे वह किसी भी जाति,धर्म, समुदाय से संबंधित हो।समान नागरिक सहिंता में शादी, तलाक और जमीन जायदाद के हिस्से में सभी धर्मों के लिए केवल एक ही कानून लागू किया गया है। न्दपवितउ ब्पअपस ब्वकम का अर्थ स्पष्ट है सभी नागरिकों के लिए एक कानून। इसका किसी भी समुदाय से कोई संबंध नहीं है। इस कोड के तहत राज्य में निवास करने वाले लोगो के लिए एक समान कानून का प्रावधान किया गया है। यानी की धर्म के आधार पर किसी भी नागरिक को विशेष लाभ नहीं मिलेगा।भारत में अभी सिर्फ एक राज्य है जहाँ यूनिफार्म सिविल कोड लागू है वह राज्य है गोवा। गोवा में पुर्तगाल सरकार के समय से ही यूनिफार्म सिविल कोड को लागू किया गया था। वर्ष 1961 में गोवा सरकार यूनिफार्म सिविल कोड के साथ ही बनी थी। भारतीय संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 44 के अंतर्गत भारतीय राज्य को देश में सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता का निर्माण करने को कहा गया है जो पुरे देश में लागू होता हो। यूनिफॉर्म सिविल कोड पूरे देश में एक समान कानून लागू करता है। इसमें सभी धर्म के नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, गोद लेना, विरासत आदि के कानूनों में समानता दिए जाने का प्रावधान है। संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य भारत के सभी क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक सहिंता को सुनिश्चित करने को कहा गया है।अभी तक अलग-अलग राज्यों के अलावा केंद्र सरकार की ओर से भी यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के विषय में चर्चा की गयी है। लेकिन अभी तक भी इस मुद्दे में कार्यान्वयन नहीं हो पाया है। विश्व में समान नागरिक सहिंता अमेरिका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान, आयरलैंड, मलेशिया में लागू है। अगर देश में समान नागरिक सहिंता लागू होने पर सभी समुदाय के लोगो को एक समान अधिकार दिए जायेंगे।लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलेगा। समान नागरिक सहिंता लागू होने से भारत की महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा। कानूनों में सरलता और स्पष्टता आएगी। सभी नागरिकों के लिए कानून समझने में आसानी होगी। व्यक्तिगत या धर्म कानूनों के आधार पर होने वाले भेदभाव को समाप्त किया जा सकेगा।कानून के तहत सभी को सामान अधिकार दिए जायेंगें।कुछ समुदाय के पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकार सीमित है। ऐसे में यदि न्दपवितउ ब्पअपस ब्वकम लागू होता है तो महिलाओं को भी समान अधिकार लेने का लाभ मिलेगा।महिलाओं का अपने पिता की सम्पति पर अधिकार और गोद लेने से संबंधी सभी मामलों में एक सामान नियम लागू हो जायेंगे।मुस्लिम समाज में बेटी की शादी की न्यूनतम आयु 9 साल है। समान नागरिक सहिंतालागू होने से मुस्लिम लड़कियों की छोटी आयु में विवाह होने से रोका जा सकेगा। धार्मिक रूढ़ियों के कारण समाज के किसी वर्ग के अधिकारों के हनन को रोका जा सकेगा।मुस्लिम समाज में अभी भी कई तरह के तलाक हो रहे हैं जिनका खामियाजा मुस्लिम महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है। यूसीसी के लागू होने से सभी समुदाय में तलाक की प्रक्रिया एक जैसे होगी। 1995 के सरला मुद्गल केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले के साथ साथ 2019 के ‘पाउलो कॉटिन्हो बनाम मारिया लुइजा वेलेंटीना परेरा’ मामले में यूसीसी को लागू किये जाने को कहा गया था। यूनिफॉर्म सिविल कोड को संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार से संबंध से पेश किया जा रहा है। इण्डियन काउन्सिल में आर्टिकल 25 से 28 तक धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की विवेचन किया गया है।इसके अंतर्गत देश में रहने वाले सभी नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी दी गयी है। प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म का शांतिपूर्ण क्रिया करने और बढ़ावा देने का अधिकार दिया गया है। संविधान के आर्टिकल 44 के भाग 4 में यूसीसी की चर्चा की गयी है। इस आर्टिकल में राज्य को देश में सभी नागरिकों के लिए एक यूनिफार्म सिविल कोड लागू करने के लिए कहा गया है। ऐसे में संवैधानिक आधार पर अब हर हाल में देश में समान नागरिक संहिता लागू करने का वक्त आ चुका है।

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