स्टॉप डैम में हुआ खेला, जिम्मेदारों का नहीं बिगड़ा धेला
संवादाता- विकास विश्वकर्मा
चार दिन की चिल्ल-पों के बाद ठंडा पड़ा मामला, भ्रष्टाचारियों की फतह
भ्रष्टाचार करने वालों पर दर्ज हो अपराधिक प्रकरण :
कोयला नगरी के रूप में जानी पहचानी जाने वाली मध्य प्रदेश की सबसे संपन्न नगर पालिकाओं में से एक धनपुरी के कर्ताधर्ताओं की विकासवादी सोच और उसे साकार करने की दिशा में किए जाने वाले अटूट मेहनत का नतीजा पिछले दिनों उस समय सामने आया जब मामूली सी बरसात में निर्माणाधीन स्टाप डैम का लगभग 25 फ़ीसदी हिस्सा ध्वस्त हो गया। कुछ ही दिनों बाद पुनः बारिश हुई और शेष 75 फ़ीसदी हिस्सा भी पानी में बह गया। स्टॉप डैम के पानी में बह जाने से जहां एक और नगर विकास का दंभ भरते करोड़ों की राशि वाले बजट की होली खेलने वालों की पोल खुल गई वहीं दूसरी ओर नगर वासियों विशेष कर विपक्षियों को अपनी भड़ास निकालने का मौका भी मिला। शासन प्रशासन से कार्यवाही की मांग की जाने लगी, प्रशासनिक मुखिया ने जांच के आदेश देने की बात भी कहीं लेकिन इन सब के बाद भी नतीजा शून्य प्राय ही रहा। चार दिन की चिल्ल पों के बाद मामला ठंडा पड़ गया और क्या पक्ष, क्या विपक्ष, क्या अधिकारी, क्या ठेकेदार सभी गलबहियां डाले घूमने लगे। अब जनता तो ठहरी निरीह कर भी क्या सकती है?
धनपुरी। बगईहा नाला में तकरीबन एक करोड रुपए से अधिक की राशि से निर्माणाधीन स्टाप डैम बह गया। बताया जाता है कि उक्त स्टाप डैम के निर्माण कार्य में ठेकेदार द्वारा सभी नियम कायदों को डैम की नींव में ही दफना दिया गया। न तो निर्माण कार्य के निर्धारित मापदंडों को पूरा किया गया और न ही गुणवत्ता पर ध्यान दिया गया परिणाम स्वरूप बिना जल भराव के ही उक्त स्टाप डैम का नामो निशान मिट गया। नगर पालिका के कर्ताधर्ताओं यानी अध्यक्ष-उपाध्यक्ष, नपाधिकारी उपयंत्री आदि अपने बचाव में यह कहते नहीं थकते की नियम निर्देशों का पालन किया गया है ठेकेदार ने गड़बड़ी की जबकि ठेकेदार कौन है, कहां का है, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। अधिकारी, पदाधिकारी देखते रहे ठेकेदार मनमानी करता रहा और खामियाजा नगर पालिका व नगर वासियों को भुगतना पड़ा है एक भारी भरकम राशि स्टाप डैम के नाम पर स्वाहा हो गई और इस बात की कोई गारंटी नहीं है की व्यय की गई राशि की वसूली ठेकेदार से की जाएगी।
बन रहा था रेत का महल
स्टॉप डैम निर्माण कार्य में निर्धारित मानकों, मापदंडों का किस हद तक पालन किया गया निर्माण सामग्री की गुणवत्ता को लेकर कितनी सतर्कता बरती गई और खुद की कमाई के लिए निर्माण सामग्री में किस हद तक खेल किया गया इसका खुलासा तो तभी संभव है जब कोई ईमानदार और दूसरे विभाग का इंजीनियर इसकी जांच करेगा। जहां तक मैदानी हकीकत का सवाल है यदि लोगों की बातों पर विश्वास किया जाए तो ठेकेदार द्वारा उक्त स्टाप डैम के निर्माण कार्य में निर्धारित लोहे की राड की मात्रा का सिर्फ 10 फ़ीसदी ही उपयोग किया गया 90 फीसदी लोहा ठेकेदार के हिस्से में चला गया। इसी प्रकार सीमेंट और रेत के अनुपात में भी खेल हुआ जहां एक चार का मसाला बनना था वहां एक आठ का मसाला बनाकर लीपा पोती का प्रयास किया जाता रहा और यही वजह है कि निर्माण कार्य पूर्ण होने के पहले ही उक्त कथित स्टाप डैम पानी में वह चला और कर्ताधर्ताओं को चुल्लू भर पानी में डूबने के लिए छोड़ गया।