यूपी उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की ‘उदार’ राजनीति ने कांग्रेस के साथ बड़ा खेल कर दिया है। जो कांग्रेस कम से कम पांच सीटों की मांग कर रही थी, अब किसी सीट पर उसका प्रत्याशी खड़ा नहीं हो रहा है। यह अलग बात है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव ऐसा संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि इंडिया गठबंधन पूरी तरह एकजुट है। एक तरफ तो उन्होंने सपा के सिंबल पर ही चुनाव लड़वाने का ऐलान किया है तो दूसरी तरफ कांग्रेस की तारीफ करने में भी वे कोई कमी नहीं छोड़ रहे।अखिलेश यादव ने एक्स पर लिखा कि बात सीट की नहीं जीत की है’ इस रणनीति के तहत ‘इंडिया गठबंधन’ के संयुक्त प्रत्याशी सभी 9 सीटों पर समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह ‘साइकिल’ के निशान पर चुनाव लड़ेंगे। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी एक बड़ी जीत के लिए एकजुट होकर, कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़ी है। इंडिया गठबंधन इस उपचुनाव में, जीत का एक नया अध्याय लिखने जा रहा है। कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से लेकर बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं के साथ आने से समाजवादी पार्टी की शक्ति कई गुना बढ़ गयी है।उन्होंने आगे कहा कि इस अभूतपूर्व सहयोग और समर्थन से सभी 9 विधानसभा सीटों पर ‘इंडिया गठबंधन’ का एक-एक कार्यकर्ता जीत का संकल्प लेकर नयी ऊर्जा से भर गया है। ये देश का संविधान, सौहार्द और PDA का मान-सम्मान बचाने का चुनाव है। इसीलिए हमारी सबसे अपील है : एक भी वोट न घटने पाए, एक भी वोट न बँटने पाए। देशहित में ‘इंडिया गठबंधन’ की सद्भाव भरी ये एकता और एकजुटता आज भी नया इतिहास लिखेगी और कल भी।
अब जानकार मानते हैं कि अखिलेश यादव ने यह कांग्रेस के साथ सबसे बड़ा सियासी खेल कर दिया है। एक तरफ तो वे देश की सबसे पुरानी पार्टी की तारीफ कर रहे हैं, यहां तक कह रहे हैं कि जमीन पर कांग्रेस की वजह से उनका संगठन मजबूत हुआ, दूसरी तरफ वे उसी कांग्रेस को एक सीट भी उपचुनाव नहीं दे पाए। जानकार मानते हैं कि हरियाणा हार के बाद से कांग्रेस को उसकी उचित जगह दिखाने का काम इंडिया गठबंधन की क्षेत्रीय पार्टियां कर रही हैं।भूलना नहीं चाहिए हरियाणा हार के बाद संजय राउत ने कहा था कि अगर आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन रहता तो नतीजे कुछ और हो सकते थे। यहां तक दावा हुआ था कि कांग्रेस ने अपने अहंकार में आकर दूसरी पार्टियों को सीट नहीं दी। अब माना जा रहा है कि उसी रवैया का साइड इफेक्ट यूपी में देखने को मिल रहा है जहां पर सपा ज्यादा मजबूत है। इसी वजह से अब उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में नाम इंडिया गठबंधन का चल रहा है, जिक्र पीडीए का हो रहा है, लेकिन मैदान में खड़े सिर्फ सपा के उम्मीदवार हैं।ऐसा भी माना जा रहा है कि कांग्रेस को इस बात का अहसास था कि जो सीटें उसे सपा द्वारा ऑफर की जा रही थीं, वहां पर जीतना काफी मुश्किल था, ऐसे में उस फजीहत से बचने के लिए भी चुनाव से ही दूरी बना ली गई। ऐसे में हार का ठीकरा पार्टी पर नहीं फूटेगा और इंडिया गठबंधन में उसका कुछ ‘सम्मान’ बचा रहेगा। वही अगर अखिलेश की रणनीति की बात करें तो उन्होंने तो भिगो-भिगो कर कांग्रेस पर निशाना साधा है। बात वे जरूर इंडिया गठबंधन की कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने साफ संदेश दे दिया है कि यूपी में विपक्ष का चेहरा सिर्फ समाजवादी पार्टी ही रहने वाली है। कांग्रेस जमीन तलाशने की कितनी भी कोशिश कर ले, अब सपा की छत्रछाया में रहकर लड़ना पड़ेगा।वैसे अगर उत्तर प्रदेश की राजनीति को ध्यान से देखा जाए तो कांग्रेस का कोई खास जनाधार बचा नहीं है। एक जमाने में जरूर ब्राह्मण और दलितों के सहारे पार्टी ने यूपी में राज किया, लेकिन क्षेत्रीय पार्टियों के उदय के साथ ही वो वोटबैंक छिटक गए और कांग्रेस पिछड़ती चली गई। वर्तमान में तो यूपी से कांग्रेस के सिर्फ दो विधायक हैं, कहना गलत नहीं होगा कि वो अमेठी और रायबरेली तक सीमित रह चुकी है। जानकार इसे भी एक कारण मानते हैं कि आखिर क्यों अखिलेश ने कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने में दिलचस्पी नहीं दिखाई।
रिपोर्ट रमेश सैनी इंडियन टीवी न्यूज़