नरेश सोनी हजारीबाग संवाददाता।
हजारीबाग: बटेश्वर एक जाति नहीं जमात हैं । चलिए आज इसे राजनैतिक संदर्भ में समझने का प्रयास करते हैं। बटेश्वर एक प्रयोग नहीं राजनैतिक उपयोग है जो सत्ता और विपक्ष के लिए उपजाऊ खेती है, इसके नाम पर जाति का विरोध और समर्थन बड़े पैमाने पर प्रदर्शित होना राजनैतिक खेती की उपयोगिता को बढ़ा देती है। आज बरकट्ठा के जितने भी राजनीतिक दल रूपी किसान हैं वह अपने खेतों में बटेश्वर समर्थन और बटेश्वर विरोध की ही बीज बोते हैं,दोनों ही रूप में यह बीज लाभकारी है।मैं जो विगत 1981 से बटेश्वर जी की सामाजिक राजनैतिक सांस्कृतिक और आर्थिक विचारधारा को देख रहा हूं वो जाति समेत एक बड़े जमात को इंगित करता है। लोकतंत्र के एक सजग प्रहरी के रूप में बटेश्वर प्रसाद मेहता दिन-रात लगे रहते हैं। मानो उनका जन्म समाज में शिक्षा का अलख जगाने, सामाजिक कुरीति मिटाने और जन सेवा के लिए ही हुआ है। श्री मेहता छात्र जीवन से ही समाज सेवा प्रारंभ कर दिए थे वह अपने निर्धन मित्रों को स्कूल की किताबें, पुराने और नूतन वस्त्र, अनाज तथा गरीब साथियों को बीमार पड़ने पर इलाज भी करवाते थे। अपने पिता के नाम से ग्राम चंदा में प्रोजेक्ट रामेश्वर महतो उच्च विद्यालय चंदा की स्थापना की, वही ग्रामवासियों को उच्च शिक्षा प्राप्त करवाने के उद्देश्य से उरुका के ग्रामीण वासियों के सहयोग से जगन्नाथ महतो इंटर महाविद्यालय उरूका की स्थापना,बोंगा के ग्रामीणों द्वारा 32 एकड़ जमीन दान करवा कर नवोदय विद्यालय बोंगा की स्थापना तथा पूरे झारखण्ड की जनता को नवोदय विद्यालय में वर्ग छः में नामांकन की सीट 40 से बढ़कर 80 करने में आपकी महती भूमिका रही। इनके सहयोग से बहुत जल्द हजारीबाग जिले के बरकट्ठा विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत एक सैनिक स्कूल,एक बी.एड़ कॉलेज, एक स्नातक महिला महाविद्यालय, तथा एक इंजीनियरिंग कॉलेज का सौगात प्राप्त होने वाला प्रयास जारी है।आप बिना जनप्रतिनिधि होते हुए भी झारखंड के किसी भी विधायक और सांसद से ज्यादा सक्रिय रहते हैं।आप राजनीति में रहकर राजनेता के कालिख से बेदाग हैं क्योंकि आप राजनीति को समाज सेवा का आधार मानते हैं। बटेश्वर वट(ईश्वर)रूपी वृक्ष है जो दुनिया को अमृत पान करा कर स्वयं हलाहल ग्रहण किए हैं। कहा जाता है कि वट वृक्ष फल नहीं देता लेकिन सर्वाधिक ऑक्सीजन और छाया अवश्य देता है। तेज चिल्लाती धूप शरीर को जलाने लगती है, लू का साफ असर उस जमात पर दिखने लगती है तो वही छाया रूपी वट वृक्ष के नीचे आकर राहत महसूस करती है। मुझे लगने लगा है कि बटेश्वर समर्थन वाली जातियों की छतरी एक वट वृक्ष के समान विभिन्न शाखाओं लिए जमीन को स्पर्श करने लगी है। आलेख:प्रोफेसर राजेंद्र यादव