पुलिसकर्मियों के दर्द किसी ने ना जाना, यह भी इंसान है!
यह है तो हम सुरक्षित हैं..!
ये कैसा गौर है,ये कैसा शौर है,ये करते है पहरेदारी!हम मनाते ईद दीवाली रहकर अपनों के साथ,छोड़ फॅमिली करते रक्षा हम पर हो जाये ना आघात.!
एक बार तो सोच के देखो गर ये ना होते मंज़र होता कैसा यहाँ पर होता जंगलराज
मेरी माता, मेरी बहना, किस्से अपने दुखड़े रोती.. कैसे बचाती अपनी लाज
गरीब आदमी शरीफ आदमी कैसे हो जाते.. मोहताज
हम चाहते है.. ये बने रहे सदैव हमारे सर के ताज!अगर पुलिस ना होती तो क्या होता यह सोचकर बड़ा डर लगता है यह भी सच हैं कि पुलिस हम सबके त्यौहारो मनवाकर खुद उन त्यौहारो से वंछित रह जाती!पुलिस का दर्द के बारे में हम कभी सोचते!
पुलिसकर्मियों की दर्द व दबाव भरी दिनचर्या एक दिन का मामला नहीं है पुलिस वालों का जीवन तकरीबन ऐसे ही दर्द व दबाव में हर दिन गुजर जाता है एक बार सुबह नहाने के बाद शरीर पर टंगी वर्दी रात के दो बजे के बाद ही बदन से उतर पाती है! यही नहीं अगले दिन दस बजे उन्हें कार्यालय में समय से उपस्थित होना होता है सप्ताह में चैबीस घंटे का सामान्य रूटीन यही होता है!
उनके दुख दर्द से किसी को कोई मतलब नहीं होता! काम के दबाव में भले ही पुलिस वाले मानसिक स्तर पर टूट जाएं! लेकिन पुलिस विभाग के लिए किसी को कोई हमदर्दी नहीं होती है!कानून व्यवस्था के खात्मे का रोना सभी दल भले ही रोते हों लेकिन कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी उठाने वाले पुलिस के इन जवानों के दुख दर्द उनकी बहस का हिस्सा नहीं होते हैं! पुलिस के कर्मचारी चाहे जितने जोखिम और तनाव में काम करें लेकिन उन्हें इंसान समझने और उसकी इंसानी गरिमा सुनिश्चित करने की भूल कोई भी राजनैतिक दल नहीं करना चाहता है!लोग शांति से परिवार के साथ त्योहार मना सकें सिर्फ इसीलिए पुलिस छुट्टी पर नहीं जाती! परिवार से दूर रहकर जनता की सेवा में पूरे समय तैनात रहती है आज तक जनता ने कभी इनके बारे में नहीं सोचा और किसी और ने पुलिस वाले भी इंसान होता है दुख दर्द इनको भी होता है हमें इनके दुख दर्द में भी काम आना चाहिए क्योंकि यह है तो हम सुरक्षित हैं।
रिपोर्ट रमेश सैनी सहारनपुर इंडियन टीवी न्यूज़