पत्रकार जब दायित्व निभाते हैं, तो कई बार उसे विरोधी मान कर उनका दमन..
ग्रामीण इलाकों में काम कर रहे पत्रकारों के सामने कहीं अधिक चुनौतियां हैं। सच्चाई उजागर करने पर उन्हें धमकियां..
आज के दौर में पत्रकारिता करना बहूत ही जोख़िम भरा काम बन गया हैं और खासकर उसके लिए जो सच की लड़ाई लड़कर अपने लेख व खबरों व सच्चाई से आमजन को सच का आईना दिखाते हैं!एक वह भी दौर था जब ना सोशल मीडिया हुआ करता था लेकिन जब पत्रकारिता का एक अपना वर्चस भी हुआ करता था लेकिन अब लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने वाले चार स्तंभों में से एक को हमेशा राजसत्ता का प्रहार सहना पड़ता है! सत्ता का विरोध और उनकी कमियों को उजागर करने वाले पत्रकारों के प्रति असहिष्णुता नई बात नहीं!मगर एक लोकतांत्रिक देश में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर ऐसी स्थिति में कोई भी पत्रकार समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े नागरिक की आवाज कैसे पहुंचा पाएगा? दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में काम कर रहे पत्रकारों के सामने कहीं अधिक चुनौतियां हैं। सच्चाई उजागर करने पर उन्हें धमकियां मिलती हैं। कई बार सच की कीमत उन्हें जान देकर चुकानी पड़ती है। ऐसे में अभिव्यक्ति की आजादी स्वाभाविक रूप से बाधित होती है! महिला पत्रकारों को भी ज्यादती का सामना करना पड़ता है!अभी हालहि में दूसरे राज्य तेलंगाना में दो महिला पत्रकारों की गिरफ्तारी इसलिए चिंता का विषय है कि हम कैसी परंपरा स्थापित कर रहे हैं!आनलाइन चैनल की दोनों पत्रकारों की गलती यह थी कि उन्होंने एक ऐसे नागरिक का साक्षात्कार लिया था,जो तेलंगाना सरकार से नाराज था! अगर कुछ अशोभनीय या असम्मानजनक था, तो इसका हल पत्रकारों की गिरफ्तारी नहीं है!सवाल है कि क्या महिला पत्रकारों की गिरफ्तारी ही एकमात्र विकल्प था! जबकि मुद्दा चाहे कोई भी हो, नागरिकों की आवाज को अपने समाचार में जगह देना पत्रकार का आम दायित्व होता है! अगर वह सच्चाई सामने नहीं लाएगा और जनता की परेशानियों तथा उनकी नाराजगी को सामने नहीं रखेगा, तो पत्रकारिता अपना मूल उद्देश्य खो देगी! विगत कुछ दशकों में सत्ता का चरित्र इस कदर बदला है कि वह अपने खिलाफ कोई भी स्वर नहीं सुनना चाहती!असहिष्णुता इस कदर बढ़ रही है कि पत्रकार जब दायित्व निभाते हैं,तो कई बार उसे विरोधी मान कर उनका दमन किया जाता है!सच्चाई पर लिखने वालों की गिरफ्तारीया लोकतंत्र की सेहत के लिए इसे अच्छा नहीं कहा जा सकता! इस तरह की कार्रवाई से दुनिया में गलत संदेश जाता है! हमें नहीं भूलना चाहिए कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही है जो भारत के लोकतंत्र को मजबूत करती है।
रमेश सैनी सहारनपुर इंडियन टीवी न्यूज़