जिला-सिवनी ब्यूरो चीफ
अनिल दिनेशवर
@ कृषि विज्ञान केंद्र सिवनी ने मनाया गाजरघास उन्मूलन एवं जागरूकता सप्ताह
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कृषि विज्ञान केंद्र सिवनी में उद्यानिकी महाविद्यालय छिन्दवाड़ा एवं रेहली (सागर) से ग्रामीण उद्यानिकी कार्य अनुभव (RHWE) के अंतर्गत आयी छात्राओं द्वारा गाजरघास उन्मूलन सप्ताह (दिनांक 16 से 22 अगस्त 2022) कृषि विज्ञान केंद्र सिवनी कार्यालय एवं ग्राम गोपालगंज, हरहरपुर, मुंडारा और धोबीसर्रा में मनाया गया।
कृषि विज्ञान केंद्र, सिवनी के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ.एन.के.सिंह एवं वैज्ञानिकगण डॉ.के.देशमुख, श्री जी.के.राणा, डॉ.के.पी.एस.सैनी एवं इंजी श्री कुमार सोनी द्वारा गाजर घास के प्रबंधन विषय पर बनाई गई फिल्म का प्रदर्शन किया गया। साथ ही गाजर घास के प्रबंधन हेतु गाजरघास के पौधों को फूल आने से पहले जड़ सहित उखाडकर नष्ट करना चाहिए, गाजर घांस को हमेशा हाथ में दस्ताने आदि पहनकर उखाडना चाहिये। इससे खाद्यान्न फसल की पैदावार में लगभग 4 प्रतिशत तक की कमी आकी गई है। इस पौधे में पाये जाने वाले एक विशाक्त पदार्थ पार्थेनिन के कारण फसलों के अंकुरण एवं वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है। इस खरपतवार के लगातार संपर्क में आने से मनुष्यों में डरमेटाइटिस, एक्जिमा, एलर्जी, बुखार, से दमा आदि की बीमारियां हो जाती है। पशुओं के लिए भी यह हानिकारक है। इससे उनमें कई प्रकार के रोग हो जाते है
एवं दुधारू पशुओं के दूध में कडवाहट आने लगती है। पशुओं द्वारा अधिक मात्रा में इसे खाने से उनकी मृत्यु भी हो सकती है इसकी रोकथाम के लिए गाजरघास को फूल आने से पहले उखाड कर नष्ट कर देना चाहिये ताकि इसके बीज न बन पाएं और प्रसार रूप जाये। खरपतवार को उखाडते समय दस्ताने पहनने चाहिए। गाजर घास के जैविक नियंत्रण हेतु मैक्सिकन वीटल कीट का वर्षा ऋतु के दौरान पौधो पर छोड देना चाहिये ये गाजरघास के पूरे पौधों को खाकर नष्ट कर देते है। एवं गाजर घास पर 20 प्रतिशत साधारण नमक का घोल बनाकर छिडकाव कर सकते है। शाकनाशी रसायनों में ग्लाईफोसेट, 2, 4 डी, मेट्रीब्युजिन, एट्राजीन, सिमेजिन, एलाक्लोर और डाइयूरान आदि का भी उपयोग कर सकते है।