जनपद फतेहपुर न्यूज़ ।।
दीपक मिश्रा रिपोर्ट, राम जी कैमरा मैंन के साथ इंडियन टीवी न्यूज चैनल।
गुरुद्वारे में धूमधाम से मनाया गया बैसाखी का त्योहार
फतेहपुर।खालसा पंथ की स्थापना का त्योहार है बैसाखी बैसाखी नाम वैशाख से बना है। पंजाब और हरियाणा के किसान सर्दियों की फसल काट लेने के बाद नए साल की खुशियाँ मनाते हैं इसीलिए बैसाखी पंजाब और आसपास के प्रदेशों का सबसे बड़ा त्योहार है। यह रबी की फसल के पकने की खुशी का प्रतीक है। ज्ञानी गुरुवचन सिंह ने बताया इसी दिन, 13 अप्रैल 1699 को दसवें गुरु गोविंदसिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। सिख इस त्योहार को सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं।प्रकृति का एक नियम है कि जब भी किसी जुल्म, अन्याय, अत्याचार की पराकाष्ठा होती है, तो उसे हल करने अथवा उसके उपाय के लिए कोई कारण भी बन जाता है। इसी नियमाधीन जब मुगल शासक औरंगजेब द्वारा जुल्म, अन्याय व अत्याचार की हर सीमा लाँघ, श्री गुरु तेग बहादुरजी को दिल्ली में चाँदनी चौक पर शहीद कर दिया गया, तभी गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने अनुयायियों को संगठित कर खालसा पंथ की स्थापना की जिसका लक्ष्य था धर्म व नेकी (भलाई) के आदर्श के लिए सदैव तत्पर रहना।पुराने रीति-रिवाजों से ग्रसित निर्बल, कमजोर व साहसहीन हो चुके लोग, सदियों की राजनीतिक व मानसिक गुलामी के कारण कायर हो चुके थे। निम्न जाति के समझे जाने वाले लोगों को जिन्हें समाज तुच्छ समझता था, दशमेश पिता ने अमृत छकाकर सिंह बना दिया। इस तरह 13 अप्रैल,1699 को तख्त श्री केसगढ़ साहिब आनंदपुर में दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना कर अत्याचार को समाप्त किया।उन्होंने सभी जातियों के लोगों को एक ही अमृत पात्र (बाटे) से अमृत छका पाँच प्यारे सजाए। ये पाँच प्यारे किसी एक जाति या स्थान के नहीं थे, वरन् अलग-अलग जाति, कुल व स्थानों के थे, जिन्हें खंडे बाटे का अमृत छकाकर इनके नाम के साथ सिंह शब्द लगा। अज्ञानी ही घमंडी नहीं होते, ‘ज्ञानी’ को भी अक्सर घमंड हो जाता है। जो परिग्रह (संचय) करते हैं उन्हें ही घमंड हो ऐसा नहीं है, अपरिग्रहियों को भी कभी-कभी अपने ‘त्याग’ का घमंड हो जाता है।अहंकारी अत्यंत सूक्ष्म अहंकार के शिकार हो जाते हैं। ज्ञानी, ध्यानी, गुरु, त्यागी या संन्यासी होने का अहंकार कहीं ज्यादा प्रबल हो जाता है। यह बात गुरु गोविंद सिंह जी जानते थे। इसलिए उन्होंने न केवल अपने गुरुत्व को त्याग गुरु गद्दी गुरुग्रंथ साहिब को सौंपी बल्कि व्यक्ति पूजा ही निषिद्ध कर दी।हिंदुओं के लिए यह त्योहार नववर्ष की शुरुआत है। बैसाखी के दिन पंजाब का परंपरागत नृत्य भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है।शाम को आग के आसपास इकट्ठे होकर लोग नई फसल की खुशियाँ मनाते हैं।पूरे देश में श्रद्धालु गुरुद्वारों में अरदास के लिए इकट्ठे होते हैं। मुख्य समारोह आनंदपुर साहिब में होता है, जहाँ पंथ की नींव रखी गई थी।सुबह 4 बजे गुरु ग्रंथ साहिब को समारोहपूर्वक कक्ष से बाहर लाया जाता है। दूध और जल से प्रतीकात्मक स्नान करवाने के बाद गुरु ग्रंथ साहिब को तख्त पर बैठाया जाता है। इसके बाद पंच प्यारे ‘पंचबानी’ पढ़ते हैं।दिन में अरदास के बाद कड़ा प्रसाद का भोग लगाया जाता है।प्रसाद लेने के बाद सब लोग ‘गुरु के लंगर’ में शामिल होते हैं।श्रद्धालु इस दिन कारसेवा करते हैं। दिनभर गुरु गोविंदसिंह और पंच प्यारों के सम्मान में शबद् और कीर्तन पढ़े जाते हैं। बैसाखी का कार्यक्रम गुरद्वारे के प्रधान पपिन्दर सिंह की अगुवाई में।गुरुद्वारे में प्रधान पपिन्दर सिंह, ज्ञानी गुरुवचन सिंह वरिंदर सिंह पवि,लाभ सिंह,नरिंदर सिंह,जतिंदर पाल सिंह,गोविंद सिंह, सतपाल सिंह सेठी,सरनपाल सिंह सन्नी,दर्शन सिंह, गुरमीत सिंह उमंग,अनमोल सिंह राजू,जसवीर सिंह,ग्रेटी,नवप्रीत सिंह संत सिंह ,लक्की,रौनक ,तरन ,अर्शित व महिलाओ में हरजीत कौर ,हरविंदर कौर ,जसपाल कौर,मनजीत कौर, हरमीत कौर ,गुरप्रीत कौर ,जसवीर कौर शीनू,सिमरन,सुखमनी,वरिंदर कौर,खुशी,आदि उपस्थित रहे।
