जिला रिपोर्टर/नरेश जाटव/कैलादेवी/करौली/राजस्थान
करौली की 100 साल पुरानी कुटेमा गजक अपनी खास पहचान रखती है। कड़ाके की सर्दी शुरू होते ही इसकीमांग देश विदेश देश में बढ़ जाती है। यह गजक अपनी खस्ता, मुलायम बनावट और मुंह में घुल जाने वाले स्वाद के लिए जानी जाती है।इस पुश्तैनी गजक की पहचान अब राजस्थान तक सीमित नहीं है, बल्कि जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, लंदन, दक्षिण अफ्रीका और पाकिस्तान जैसे देशों तक फैल चुकी है। करौली के मौला गजक भंडार सहित कई दुकानों पर यह विशेष कुटेमा गजक उपलब्ध है। दुकान संचालक पप्पू भाई के अनुसार जो एक बार इस गजक का स्वाद चख लेता है, वह हर सरदी में इसे जरूर मंगवाता है। यह गजक स्वाद, परंपरा और कारीगरी का एक अनूठा संगम है।ग्राहक भी इसके स्वाद की सराहना करते हैं। सवाई आगरा यूपी से आए लल्लू भाई ने बताया कि करौली की कुटेमा गजक मुंह में रखते ही घुल जाती है और इसका स्वाद बाजार में मिलने वाली अन्य गजकों से अलग है। बाबूलाल सैनी ने कहा कि सदी आते ही विदेशों में रहने वाले उनके रिश्तेदार भी इसकी मांग करते हैं।कारीगरों के मुताबिक कुटेमा गजक की सबसे बड़ी खासियत उसकी मुलायम बनावट है।बेहतरीन गुणवत्ता वाले तिल और उम्दा गुड़ के साथ-साथ परिवार की पुश्तैनी रेसिरपी इसे और भी भुरभुरी और सुगंधित बनाती है। सर्दियों की ठंड में इसका स्वाद और भी निखर जाता है। करौली की यह मशहुर कुटेमा गजक शहर की एक ही पुश्तैनी दुकान मौला गजक भंडार पर मिलती है। इसकी कीमत 300 से 500 रुपए प्रति किलो के बीच रहती है। करौली में डायबिटीज फ्र गजक से लेकर घी और चीनी की भी गजक मिलती है।