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न्यू इंडिया का दुखदायी माहौल

Sad atmosphere of New India

यौन शोषण के आरोपी, भाजपा सांसद और भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर कार्रवाई की मांग को लेकर देश के दिग्गज पहलवान महीनों से आवाज उठा रहे हैं। पहले जब पहलवान धरने पर बैठे तो उन्हें कार्रवाई और जांच का आश्वासन देकर उठा दिया गया। जब कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो पहलवानों ने फिर से मोर्चा खोला और जंतर-मंतर पर डेरा डालकर बैठ गए। लेकिन नए संसद भवन के उद्घाटन के दिन उन्हें वहां से भी खदेड़ दिया गया। उन पर पुलिस ने बल प्रयोग किया, हिरासत में लिया। इंसाफ की मांग करने वाले पर कानून का डंडा चले और उसे कानून का राज कहा जाए, यह न्यू इंडिया का कड़वा सच है। पहलवानों ने गंगा में पदक बहाने का फैसला किया, तो सरकार को इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ा। टिकैत बंधुओं की समझाइश पर पहलवानों ने तब पदक बहाने का फैसला टाल दिया, लेकिन इंसाफ की लड़ाई चल ही रही है। अब इसमें किसान भी उनके साथ आ गए। पहलवानों के समर्थन में खाप पंचायतें हुईं, जिसमें फिर सरकार को अल्टीमेटम दिया गया कि 9 जून तक बृजभूषण शरण सिंह पर कार्रवाई हो।
इस बीच बृजभूषण शरण सिंह की 5 जून को अयोध्या में साधु-संतों के साथ होने वाली रैली भी रद्द हो गई। और अब खबर है कि दिल्ली पुलिस की एक विशेष जांच टीम आरोपी के अलग-अलग घरों पर जांच और पूछताछ के लिए पहुंची। आरोपी के कर्मचारियों से पुलिस ने सवाल-जवाब किए। इस पूछताछ का क्या नतीजा निकलेगा, इस बारे में कुछ कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन फिलहाल ये पूछताछ बात को टालने का एक हथकंडा ही नजर आ रही है। जैसे बच्चों का ध्यान किसी चीज से भटकाने के लिए इधर-उधर की बातें की जाती हैं, वैसा ही कोई खेल शायद इस वक्त सत्ता के गलियारों में खेला जा रहा है। क्योंकि जिस इंसान के खिलाफ पॉक्सो के तहत एफआईआर दर्ज हो, उसे फौरन गिरफ्त में लेने की जगह उसके घर पर काम करने वालों से पूछताछ कर दिल्ली पुलिस कौन से निष्कर्ष पर पहुंचना चाहती है, यह वही जाने। पुराने अनुभव यही बताते हैं कि जब आरोपी रसूखदार और सत्ता में हो, तो अपने खिलाफ चल रहे मामलों को पलटाने और गवाहों पर दबाव डालने के हथकंडे इस्तेमाल में लाए जाते हैं। उपहार कांड, बीएमडब्ल्यू हिट एंड रन मामला, जेसिका हत्याकांड और इसी तरह के न जाने कितने हाईप्रोफाइल मामलों में इंसाफ ने अपने मायने ही खो दिया। ये सारे मामले उस दौर के हैं, जब सत्ता, समाज और मीडिया सभी जगह आंखों में थोड़ी शर्म बाकी थी। लेकिन आज तो हालात और भी गए गुजरे हो गए हैं। उन्नाव, हाथरस, कठुआ जैसे भयावह कांडों में आरोपियों को बचाने की कोशिशें की गईं। लखीमपुर खीरी मामले में लिप्त लोग सत्ता की शोभा बढ़ा रहे हैं। कमाल ये है कि केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह अब पहलवानों से कह रहे हैं भरोसा रखिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो भारत की शान बढ़ाने वाली बेटियों की शिकायत पर आंख-कान बंद कर रखे हैं। उन्हें ये लोग शायद तभी दिखते हैं जब वे देश के लिए पदक लाते हैं। तब उनके साथ फोटो खिंचाने से विश्वगुरु वाली छवि के लिए अंक बढ़ जाते हैं। प्रधानमंत्री की उपेक्षा से खिलाड़ियों को घोर निराशा हुई है और जब उन्हें गृहमंत्री से मुलाकात का मौका मिला, तो निश्चित ही उनकी खोई उम्मीदें फिर बढ़ गई होंगी। अमित शाह के आधिकारिक निवास पर दो घंटे तक पहलवानों से उनकी चर्चा हुई। इस मुलाकात का विस्तृत ब्यौरा तो सामने नहीं आया है, लेकिन बताया जा रहा है कि अमित शाह ने पहलवानों को भरोसा दिया कि कानून सबके लिए समान है। कानून को अपना काम करने दें। सबसे बड़ी विडंबना तो यही है कि कानून अपना काम करते नजर ही नहीं आ रहा। अगर कानून काम कर रहा है तो फिर ब्रजभूषण शरण सिंह खुद अपने लिए फैसला कैसे सुना रहे हैं कि वो निर्दाेष हैं। ये काम तो अदालत में होना चाहिए। एक ओर ब्रजभूषण शरण सिंह पर कानून का जोर नजर नहीं आ रहा, दूसरी ओर मीडिया फर्जी खबरों के जरिए पहलवानों में फूट डालने और आंदोलन को तोड़ने की कोशिश में लग गया है। इन सरकार भक्तों की टूलकिट एकदम समझ आ जाती है। किसान आंदोलन के वक्त भी किसानों को गलत बताने और उनके बीच फूट दिखाने की कोशिश भक्त पत्रकारों ने की थी। अब साक्षी मलिक और बजरंग पूनिया आदि के बारे में खबर चला दी कि उन्होंने आंदोलन से नाम वापस ले लिया और रेलवे की नौकरी फिर से पकड़ ली। गनीमत है कि पहलवान झूठी खबरों के इस अखाड़े के सारे दांव-पेंच अब समझने लगे हैं। इसलिए उन्होंने फौरन ट्वीट कर अपनी स्थिति साफ कर दी कि वे आंदोलन से पीछे नहीं हट रहे हैं। साक्षी मलिक ने तो फेसबुक लाइव कर मीडिया पर उनके आंदोलन को लेकर फेक न्यूज फैलाने का आरोप लगाया। और मीडिया से अपील की कि यदि वे सच्चाई नहीं दिखा सकते हैं तो फेक न्यूज न चलाएं। वहीं बजरंग पूनिया ने लिखा कि हमारे मैडलों को 15-15 रुपये के बताने वाले अब हमारी नौकरी के पीछे पड़े हैं। इंसाफ नौकरी से काफी बड़ा है और अगर नौकरी इंसाफ के रास्ते में बाधा बनी तो उसे छोड़ देंगे। झूठी खबरों का पर्दाफाश तो फौरन हो गया, लेकिन सवाल है कि आखिर किसके इशारे पर ये खबरें चलाई गईं, किसे बचाने के लिए चलाई गईं। अगर अपुष्ट खबरें थीं तो एक गंभीर मामले में अपुष्ट खबरों को दिखाने की क्या हड़बड़ी थी। जब खबर के नाम झूठ परोसने की सच्चाई सामने आ गई तो खेद प्रकट या माफी मांगने की नैतिकता क्यों नहीं दिखाई। पहलवानों को आखिर कितने मोर्चों पर एक साथ जूझना होगा। एक ओर आरोपी पर कार्रवाई की मांग, दूसरी ओर सरकार की उपेक्षा और तीसरी ओर भक्त पत्रकारों का घिनौना खेल। इन सब पैंतरों से पहलवान निपट भी लें तो क्या उनमें इतनी हिम्मत बचेगी कि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में पहले की तरह बेहतरीन प्रदर्शन कर पाएं। यह माहौल बड़ा दुखदायी है, और न्यू इंडिया की सरकार इस माहौल में भरोसा रखने की बात कह रही है।

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