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डाटा सरक्षण विधेयक

data protection bill

आदित्य नारायण

पिछले कुछ वर्षों से बैंक, बीमा, क्रेडिट कार्ड से जुड़ा डाटा लीक होने कारण ऑनलाइन सुरक्षा को लेकर लोगों का भरोसा लगभग खत्म हो चुका है। कम्पनियों ने भारत में किसी ठोस कानून के अभाव में खुलेआम मनमानी की है। डाटा को आज की दुनिया में खरा सोना कहा जाता है। अगर किसी देश का सोना ही चोरी होता रहे तो फिर कम्पनियां अपनी मनमानी तो करेंगी ही। पिछले दिनों को-विन एप के जरिये स्टोर हुए लोगों के निजी डाटा लीक हो जाने की खबरें भी आई थी। यद्यपि सरकार ने को-विन एप को अति सुरघ्क्षित बताया था और डाटा लीक होने की खबरों को बेबुनियाद करार दिया था लेकिन एक दक्षिण भारतीय वेबसाइट पर नेताओं और अन्य लोगों की निजी जानकारियों के स्क्रीनशॉट्स प्रकाशित हो गए थे। कुछ माह पहले दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) का सर्वर भी हैक कर लिए जाने की खबरें आई थी। हैकर कई बार महत्वपूर्ण मंत्रालयों के आंकड़ों में भी सेंध लगाने की कोशिश कर चुके हैं। लोगों का व्यक्तिगत डाटा बाजार में काफी महंगा है। निजी डाटा की सुरक्षा को देखते हुए केन्द्रीय मंघ्त्रिमंडल ने डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण विधेयक के प्रारूप को मंजूरी दे दी है और इस विधेयक को संसद के मानसून सत्र में पेश किया जाएगा। केन्द्र निजी डाटा उपयोग पर पहले भी विधेयक ला चुका है। हालांकि तब विपक्ष के भारी विरोध के चलते इसे वापस लेना पड़ा था। क्योंकि उस विधेयक के कई प्रावधानों पर गंभीर आपत्तियां जताई गई थी और यह भी आरोप लगाया गया था कि सरकारी एजैंसियां इसका दुरुपयोग कर सकती हैं। विधेयक के नियमों में उल्लंघन की प्रत्येक घटना के लिए संस्थाओं पर 250 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाने का प्रस्ताव है। उन्होंने कहा, ‘मंत्रिमंडल ने डीपीडीपी विधेयक के मसौदे को मंजूरी दे दी है। इसे आगामी सत्र में संसद में पेश किया जाएगा। संसद का मानसून सत्र 20 जुलाई से 11 अगस्त तक चलेगा। विधेयक में पिछले मसौदे के लगभग सभी प्रावधान शामिल हैं जो इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्यागिकी मंत्रालय की ओर से परामर्श के लिए जारी किए गए थे। सूत्र ने कहा, ष्प्रस्तावित कानून के तहत सरकारी इकाइयों को पूर्ण छूट नहीं दी गई है। उन्होंने कहा, विवादों के मामले में डेटा संरक्षण बोर्ड फैसला करेगा। नागरिकों को सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाकर मुआवजे का दावा करने का अधिकार होगा। बहुत सी चीजें हैं जो धीरे-धीरे विकसित होंगी। सूत्र ने कहा कि कानून लागू होने के बाद व्यक्तियों को अपने डेटा संग्रह, भंडारण और प्रसंस्करण के बारे में विवरण मांगने का अधिकार होगा। ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह के डाटा को इस कानून के दायरे में रखा गया है। विदेश से भारतीय नागरिकों की प्रोफाइलिंग करने जैसे मामले, सामान या सेवाएं देने जैसे मामलों में भी यह कानून लागू होगा। व्यक्तिगत डाटा संरक्षण विधेयक एक ओर डिजिटल नागरिक के अधिकारों और कर्त्तव्यों को निर्धारित करता है तो दूसरी ओर कम्पनियों के घ्एकत्रित डाटा का कानूनी रूप से उपयोग करने के दायित्वों को निर्धारित करता है। यह विधेयक डाटा अर्थव्यवस्था के छह सिद्धांतों पर आधारित है जिनमें से पहला भारत के नागरिकों के व्यक्तिगत डाटा के संग्रह और उपयोग के बारे में है। व्यक्तिगत डाटा का संग्रह और उपयोग वैध होना चाहिए, उल्लंघन से संरक्षित किया जाना चाहिए और पारदर्शिता बनाए रखी जानी चाहिए। दूसरा सिद्धांत डाटा संग्रह अभ्यास के बारे में बात करता है जो कानूनी उद्देश्य के लिए होना चाहिए और उद्देश्य पूरा होने तक डाटा को सुरक्षित रूप से संग्रहित किया जाना चाहिए। तीसरा सिद्धांत कहता है कि केवल व्यक्तियों का प्रासंगिक डाटा एकत्र किया जाना चाहिए और पूर्व-निर्धारित उद्देश्य की पूर्ति ही एकमात्र उद्देश्य होना चाहिए। चौथा सिद्धांत डाटा सुरक्षा और श्जवाबदेही के बारे में है जबकि पांचवां डाटा की सटीकता के बारे में बात करता है। अंतिम सिद्धांत डाटा उल्लंघन की रिपोर्ट करने के संबंध में नियम बताता है। सब जानते हैं सोशल मीडिया के लगभग सभी प्लेटफार्मों ने निजी डाटा का इस्तेमाल कर भारतीयों की पसंद के मुताबिक अपने उत्पाद बेचे और यहां तक कि लोगों के विचारों को प्रभावित कर एक तरह से अपनी कठपुतली बना डाला। कई सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर कई देशों में राजनीतिक विचारधारा को प्रभावित करने के सुनियोजित अभियानों का भी भांडा फूट चुका है। सैन्य सुरक्षा और बुनियादी ढांचा तक के आंकड़ों में भी सेंध लगाने की कोशिश की गई। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस विधेयक पर संसद में साकारात्मक बहस होगी और कानून बनाने से पहले इसके हर प्रावधान की गहन समीक्षा की जानी चाहिए ताकि जरूरी फेरबदल किया जा सके। कानूनों में सुधार एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। जैसे-जैसे चुनौतियां आती जाएंगी प्रावधान बदले जा सकते हैं।

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