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बनारस के राजा विभूति नारायण सिंह की बेटी और बेटे के बीच संपत्ति विवाद को लेकर दाखिल याचिका हाईकोर्ट ने ख़ारिज की

ब्यूरो चीफ करन भास्कर चन्दौली उत्तर प्रदेश

चन्दौली इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि पारिवारिक संपत्तियों को लेकर उपजे विवाद में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कोई राहत नहीं दी जा सकती। ऐसे विवाद सिविल न्यायालय द्वारा ही निस्तारित किए जा सकते हैं।आपराधिक न्यायालयों द्वारा इसका निस्तारण नहीं किया जा सकता। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति ने बनारस के राजा विभूति नारायण सिंह की बेटी और बेटे के बीच संपत्ति विवाद को लेकर दाखिल याचिका निस्तारित करते हुए की है।

हालांकि, कोर्ट ने अपने इस आदेश के साथ ही संपत्ति के किसी भी स्थानांतरण पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा, दाखिल याचिका में घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 26 के तहत अंतरिम राहत की मांग की गई है। इसमें एक सिविल मामला ट्रायल कोर्ट के समक्ष लंबित है। इसलिए वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के तहत याची को यह स्वतंत्रता दी जाती है कि वह सिविल न्यायालय में अंतरिम राहत के लिए अर्जी दाखिल करे।

न्यायालय ने खारिज की अर्जी

सिविल न्यायालय उस अर्जी पर चार महीने में निर्णय लेगी। याची ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर घरेलू हिंसा अधिनियमों के तहत अंतरिम राहत की मांग की थी, जिसे आपराधिक न्यायालय ने खारिज कर दिया था। सत्र न्यायालय से भी राहत नहीं मिली।

याची का कहना था कि प्रतिवादी रिश्ते में उसका छोटा भाई है। वह विवादित संपत्ति बेच रहा है। इस पर रोक लगाई जाए क्योंकि इससे उसका हित प्रभावित हो रहा है। जवाब में प्रतिवादी की तरफ से कहा गया कि सक्षम न्यायालय द्वारा घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पहले ही अंतरिम आदेश पारित किया जा चुका है। संपत्ति, राजस्व रिकॉर्ड में उसके नाम है। इसलिए याची द्वारा उसे किसी भी तरीके से रोका नहीं जा सकता। वादी और प्रतिवादी में संपत्तियों का स्पष्ट विभाजन है।

सिविल न्यायालय में तय होंगे संपत्ति से संबंधित विवाद: हाई कोर्ट

कोर्ट ने कहा, ‘संपत्ति से संबंधित विवाद सिविल न्यायालय द्वारा ही तय किया जा सकता है। उसे घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत निस्तारित नहीं किया जा सकता। याची को पहले से ही अंतरिम राहत प्राप्त है लेकिन वह घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत संपत्ति विवाद को सुलझाना चाहती है, जो सही नहीं है।’ यदि याची को किसी भी अंतरिम राहत की जरूरत है तो वह सिविल न्यायालय में अर्जी दाखिल कर सकती है। सिविल न्यायालय, नियमों के मुताबिक आदेश पारित करेगा।

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