किसी गैरकानूनी गतिविधि या अपराध का आरोप झेल रहे व्यक्ति के घर या अन्य निर्माण को बुलडोजर से ध्वस्त करने पर लगातार सवाल उठ रहे थे!ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कथित बुलडोजर न्याय के मसले पर जो राय जाहिर की है वह राज्य सरकारों और संबंधित महकमों के लिए विचार करने का विषय है!यह बड़ी विडंबना है कि अगर कोई व्यक्ति किसी अपराध के आरोप में पकड़ा जाता है तो उसके खिलाफ कानूनी प्रक्रिया के तहत कार्रवाई करने के बजाय अन्य कारणों का हवाला देकर उसका घर ढहा दिया जाए!ऐसे ही एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अक्तूबर तक के लिए देश भर में बुलडोजर से ध्वस्तीकरण की कार्रवाई पर रोक लगा दी और कहा कि बिना उसकी अनुमति के एक भी निर्माण न ढहाया जाए!हालांकि यह आदेश सार्वजनिक सड़क, फुटपाथ और किसी अनधिकृत निर्माण पर लागू नहीं होगा।दरअसल पिछले कुछ समय से कुछ राज्यों में किसी व्यक्ति पर महज आरोप लगने के बाद उसके घर को बुलडोजर से ध्वस्त करना एक जरूरी कार्रवाई मान ली गई थी!जबकि ऐसी कार्रवाई को मनमाने तौर-तरीके और उसके महिमामंडन के रूप में देखा जा रहा था! इसी के मद्देनजर शीर्ष अदालत ने बुलडोजर कार्रवाई का महिमामंडन बंद करने को कहा!हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से महाधिवक्ता का कहना था कि ध्वस्तीकरण की कार्रवाई कानूनी प्रक्रिया के तहत की गई! गौरतलब है कि बुलडोजर चलाने के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा था कि एक व्यक्ति के सिर्फ आरोपी या यहां तक कि दोषी होने के बावजूद इस वजह से उसका घर नहीं गिराया जा सकता है!एक लोकतांत्रिक और कानून के शासन वाले देश में किसी एक शख्स की गलती की सजा उसके परिजनों को उसके घर को ध्वस्त करके नहीं दी जा सकती!ऐसी कार्रवाई कानून के शासन पर ही बुलडोजर चलाने जैसा होगा। संभव है कि किसी घर को अवैध निर्माण होने या अन्य तकनीकी आधार पर ध्वस्त किया गया हो लेकिन अगर ऐसी कार्रवाई की तात्कालिक वजह आपराधिक कृत्य में आरोपी होना प्रतीत हो रही हो तो उसे कैसे देखा जाएगा..!
रिपोर्ट रमेश सैनी सहारनपुर इंडियन टीवी न्यूज़