कजरी महोत्सव का हुआ भव्य आयोजन कई जिलों के बड़े कलाकार ने किया मंच साथ
सोनभद्र समाचार ब्युरोचिफ नन्दगोपाल पाण्डेय
“कजरी महोत्सव में कलाकारों का लगा जमावड़ा”
सोनभद्र : सोन घाटी सोन माटी के सोन धरा पर भव्य एवं दिव्य कजरी महोत्सव का आयोजन संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश,उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान लखनऊ,भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय लखनऊ,राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज सोनभद्र,जिला प्रशासन सोनभद्र के संयुक्त तत्वाधान में राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज चुर्क के प्रांगण में सम्पन्न हुआ .
मुख्य अतिथि जिलाधिकारी बद्री नाथ सिंह, निदेशक उत्तर प्रदेश लोक कला एवं जनजाति संस्कृति संस्थान अतुल द्विवेदी,इंजीनियरिंग कॉलेज के निदेशक जी एस तोमर एवं पंडित आलोक कुमार चतुर्वेदी, डॉ अंजलि विक्रम सिंह ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। कजरी गायन में आश्रया द्विवेदी प्रयागराज व राकेश उपाध्याय गोरखपुर द्वारा प्रस्तुति दी गई। कजरी गायन एवं नृत्य फगुनी देवी मीरजापुर, करमा, डोमकच, झूमर नृत्य नाटिका आशा देवी सोनभद्र द्वारा प्रस्तुत किया गया। इसी प्रकार से कजरी गायन एवं नृत्य विन्ध्य कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय की छात्राओं द्वारा तथा नृत्य नाटिका शिवानी मिश्रा वाराणसी द्वारा प्रस्तुति की गई. सभी सम्मानित कलाकारों को जिलाधिकारी बद्रीनाथ सिंह , निदेशक लोक कला एवं जनजाति संस्कृति संस्थान लखनऊ अतुल द्विवेदी , पंडित आलोक कुमार चतुर्वेदी, धनंजय पाठक, डॉ अंजलि विक्रम सिंह, जी एस तोमर, अजय कुमार सिंह के द्वारा सम्मानित किया गया
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिलाधिकारी बद्री नाथ सिंह ने कहा की कि भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता पर आधारित ऐतिहासिक, पौराणिक,सांस्कृतिक विंध्य पर्वत की श्रृंखलाओं के हृदय तल पर स्थित पवित्र धरा पर भव्य एवं दिव्य,सुसज्जित तरीके से कजरी के महत्व को पहुंचाने का प्रयास सभी के सहयोग से किया गया . कजरी एक ऐसा कार्यक्रम है जो कजरी पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध लोकगीत है। कजरी की उत्पत्ति सोनभद्र व मिर्जापुर से मानी जाती है। सोनभद्र व मिर्जापुर पूर्वी उत्तर प्रदेश में सोन व गंगा के किनारे बसा जिला है। यह वर्षा ऋतु का लोकगीत है। इसे सावन व भादो के महीने में गाया जाता है।
अतुल द्विवेदी ने कहा कि यह अर्ध-शास्त्रीय गायन की जीवंत शैली के रूप में भी विकसित हुआ है और यह गायन केवल बनारस घराने तक ही सिमित होता जा रहा है।कजरी गीतों में वर्षा ऋतु का वर्णन विरह-वर्णन तथा राधा-कृष्ण की लीलाओं का वर्णन अधिकतर मिलता है। कजरी की प्रकृति क्षुद्र है। इसमें श्रृंगार रस की प्रधानता होती है।
राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज के निदेशक जी0एस0तोमर ने कहा की उत्तरप्रदेश पूर्वांचल में कजरी गाने का प्रचार खूब पाया जाता है। यह लोकगीतों में से जीवंत शैली है कजरी, जिसके जरिए महिलाएं अपने संबंधों को सहेजती हैं. इसमें पति-पत्नी के बीच श्रृंगार, प्रेम, विरह की बातों को गीतों के माध्यम से बताया जाता है, तो वहीं ननद-भाभी, सास-बहू, देवर-भाभी के प्रेम को भी खूबसूरत भाव के साथ प्रस्तुत किया जाता है.
पंडित आलोक कुमार चतुर्वेदी ने कहा की उत्तर प्रदेश सरकार व जिला प्रशासन की अनोखी पहल है गौरव का विषय यह है कि इस बार कजरी महोत्सव सोनभद्र के चुर्क में स्थित राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज प्रांगण में आयोजित हुआ है पूरे पूर्वांचल का लोक परंपरा लोकगीतों से गहरा नाता है. जहां आज भी परंपराओं में लोकगीत जीवंत नजर आते हैं. इन्हीं लोकगीतों में से एक जीवंत शैली है कजरी, महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना के साथ कजरी गीत को गाती है. बताया कि कजरी एक विधा नहीं बल्कि वह जीवंत शैली है, जिसके जरिए महिला अपने प्रेम वेदना श्रृंगार को बयां करती है. कजरी को लेकर पुरानी कहानियों में अलग-अलग मान्यताएं हैं, अलग अलग स्वरूप है. इसमें जहां पति-पत्नी के बीच प्रेम के रिश्तों को बताया गया है, तो वहीं पति के दूर जाने पर नवविवाहिता के विवाह की भी बातें कही गई हैं.
डॉ अंजलि विक्रम सिंह ने कहा कि ने कहा की कजरी के माध्यम से ननद-भाभी के नटखट रिश्ते, देवर भाभी के बीच के पवित्र संबंध, सास बहू के बीच की नोकझोंक को भी बताया गया है.उन्होंने बताया कि कजरी की शुरुआत सोनभद्र मिर्जापुर बनारस से मानी जाती है. डेढ़ सौ साल पहले जब पति नौकरी के लिए दूर देश चले जाते थे तो ऐसे में महिलाएं अपनी विरह वेदना गीतों के जरिए गाती थीं. इसलिए उसका नाम कजरी पड़ा. यह भी कहा जाता है कजलवंती देवी चरणों में बैठकर कजरी नाम की महिला अपने दर्द को रो-रो कर बयां करती थीं, इसलिए भी इसका नाम कजरी पड़ा. बारिश व हरियाली के मौसम को उत्सुकता से मनाने की कला को भी कजरी कहा गया है. इसकी अनेक परिभाषा हैं.