रिश्तो की डोर कुछ टीवी सीरियल कूटनीतिक चालें सीखाकर रिश्तो को कर रहे हैं शर्मसार.
समय के साथ संयुक्त परिवारों की संख्या कम और एकल परिवारों की तादाद बढ़ती जिम्मेदार.
आजकल सोशल मीडिया के अलग-अलग मंचों पर जरूरत से ज्यादा सक्रियता की वजह से लोगों के समाज और परिवार..!
आज पारिवारिक रिश्तों को लेकर कुछ टीवी सीरियल चैनल क्या-क्या प्रोष रहे हैं यह हम सब देख रहें हैं। बल्कि जिस तरह यह चैनल पर दिखाए जाने वाले रिश्तो को शर्मसार कर रहें हैं इससे आने वाली वीडियो पर क्या असर पड़ रहा है यह हम सब जानकर भी अंजान बने हुए हैं।आज छोटे पर्दे पर दिखाए जाने वाले संयुक्त परिवार हमारे परपंरागत भारतीय संयुक्त परिवारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते। भारतीय संयुक्त परिवारों में अपनत्व, आत्मीयता, समरसता, रागात्मकता और एक-दूसरे के प्रति प्रेम और समर्पण भाव की प्रधानता रहती है! रिश्तों को जीया जाता है,दिखावा नहीं किया जाता, सामान्य तकरार और रूठने-मनाने की स्वस्थ परंपरा के बीच आर्थिक आधार पर किसी सदस्य को महत्त्वपूर्ण या महत्त्वहीन मानने की मनोवृत्ति आमतौर पर नहीं होती! ऐसे संयुक्त परिवार आज भी मिल जाएंगे, जिनमें एक छत के नीचे प्रेम से चालीस-पचास परिजन रहते हैं, एक रसोई में खाना बनता है और सब हिलमिल कर भोजन करते हैं!अलग-अलग व्यवसाय और काम-धंधा होते हुए भी मुखिया के आदेशों की पालना होती है!टीवी के कार्यक्रमों के परिवारों में ऐसा सुखद माहौल कहां दिखता है? भरे-पूरे परिवार में बमुश्किल एक-दो महिला सदस्य ही परिवार को एकसूत्र में बांधे रखने की कोशिश में दिखती हैं व भी हताश-निराश!इन कार्यक्रमों में अभिजात्य वर्ग की सुशिक्षित-अत्याधुनिक महिलाएं और पुरुष कूटनीतिक चालें चलने और परिवार के अन्य सदस्यों को शिकस्त देने में लगे दिखते हैं!ऐसे परिवार और ऐसे महिला-पुरुष किरदार भारतीय समाज के नहीं हो सकते!जबकि शहरों-कस्बों में ही नहीं, नगरों और महानगरों में आज भी ऐसे संयुक्त परिवार हैं, जहां रिश्तों की सोंधी महक लुभाती है!एकजुटता और इंसानियत का संदेश देती है!झोपड़पट्टियों में रहने को विवश दो वक्त का खाना जुटाने की जुगाड़ में लगे परिवार के सदस्य भी षड्यंत्रों से दूर रिश्तों के रेशमी धागे से बंधे हुए दिखते हैं!भारतीय संस्कारों को आत्मसात किए हमारे समाज का संयुक्त परिवार हो या एकल परिवार,उनमें जुड़ाव है, बिखराव नहीं!उनके संवेदनशील रिश्तों की नदी सूखी नहीं है,वह अनवरत-अबाध बह रही है,छोटे पर्दे के परिवारों की कहानियां हमारे सोच और संस्कारों से दूर,पता नहीं विश्व के किस छोर की कहानियां हैं। रिपोर्ट रमेश सैनी सहारनपुर इंडियन टीवी न्यूज़