बाल विकास के नाम पर गठित संस्थाएं सिर्फ सरकारी अनुदान हासिल करने की कवायद में जुटी रहती,जमीनी स्तर पर शून्य

सड़कों पर नशा करते व करतब दिखाते और भीख मांगते हुए बच्चे मिल जाएंगे,आखिर जिम्मेदार विभाग,संगठन व सामाजिक लोग कहा हो जाते गुम..!

मासूम बच्चे शाम ढलने के बाद व किसी फ्लाईओवर के नीचे सो जाते और अगली सुबह का इंतजार करते..!!

हम उस देश में रहते है जहां अपने दुख से ज्यादा लोगों के दुखों की प्रवाह करते है लेकिन अब यह सब दिखावा ही बनकर रह गया सायद!अब गरीब बेसहाराओं बच्चो के दर्द को देखकर भी अनदेखा किया जाता है जबकि

बेसहारा-अनाथ बच्चों के कल्याण के लिए केंद्र और राज्य सरकारें तमाम योजनाएं चला रही हैं लेकिन दूर-दूर तक इनका कोई फायदा दिखाई नहीं देता!इन बच्चों की तकदीर नहीं बदलती है!असल में यह हमारे लोकतंत्र का स्याह पक्ष है!सिर्फ राजधानी दिल्ली ही नहीं बल्कि मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई, लखनऊ, भोपाल व उत्तरप्रदेश के बड़े जिलों से लेकर छोटे जिले व हर बड़े शहरों में सड़कों पर नशा करते व करतब दिखाते और भीख मांगते हुए बच्चे मिल जाएंगे!इसके लिए जिम्मेदार हमारी सरकारें भी हैं जो देश से गरीबी मिटाने के वादे करती हैं लेकिन कभी सच्ची नीयत से इस दिशा में काम नहीं होता!इन बच्चों को तमाशा करने या भीख मांगने या नशा करने से तो रोका जा सकता है लेकिन इससे इनके पेट की भूख खत्म नहीं हो सकती, दो वक्त की रोटी के लिए ये कभी भीख मांगेंगे, कभी किताब बेचेंगे, कभी तमाशा दिखाएंगे तो कभी अपराध की दुनिया में भी चले जाते हैं!वैसे तो देश में शिक्षा का अधिकार कानून लागू हो चुका है। लेकिन इनके लिए इस कानून का क्या मतलब हो सकता है,जब उनका कोई ठौर-ठिकाना ही नहीं है। पढ़ने के लिए एक निश्चित ठिकाना-पता जरूरी है जहां बच्चा रह सके और अपने आसपास किसी स्कूल में नाम लिखा सके!रेलवे स्टेशनों व बस अड्डो व सरकारी कार्यलयो से कुछ ही दूरी पर मासूस बच्चे दिन भर तमाशा दिखाकर दस-बीस रुपए कमा पाते हैं, इसी कमाई से व अपना पेट पालते हैं!शाम ढलने के बाद व किसी फ्लाईओवर के नीचे सो जाते हैं और अगली सुबह का इंतजार करते हैं!देश की करीब एक चौथाई आबादी आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर कर रहे हैं! इसी गरीबी की वजह से बाल श्रमिकों का जन्म होता है!यह हमारे व सम्भन्धित विभागों व समाजिक संगठनो व देश के उन नेताओं के लिए चिंता का सबब ही है जो इस और सोचते व देखते ही नही है!सुबह से लेकर शाम तक लोगों को तमाशा दिखाने और भीख मांगने व नशा करने वाले सैकड़ों बच्चे हर साल वाहनों की चपेट में आकर असमय मृत्यु के शिकार हो जाते हैं! सरकारी फाइलों में हादसों के शिकार ऐसे बच्चों की मौत के बारे में कोई जानकारी दर्ज नहीं है!इसके अलावा दिन भर सड़क में रहने वाले बच्चे प्रदूषण की वजह से कई गंभीर बीमारियों के शिकार भी हो जाते हैं। उनके स्वास्थ्य को लेकर भी बाल विकास मंत्रालय गंभीर नहीं है!बात अगर गैरसरकारी संगठनों की करें तो बाल विकास के नाम पर गठित ऐसी संस्थाएं सिर्फ सरकारी अनुदान हासिल करने की कवायद में जुटी रहती हैं!जमीनी स्तर पर स्ट्रीट चिल्ड्रेन के कल्याण के लिए उसके पास ठोस नीति का अभाव है।

 

रिपोर्ट रमेश सैनी सहारनपुर इंडियन टीवी न्यूज़

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