जंगली जानवर हमारे घरों में नहीं बल्कि बल्कि हम उनके घरों में घुस रहे..

जंगली जानवर हमारे घरों में नहीं बल्कि बल्कि हम उनके घरों में घुस रहे..

शहरों में भटकाव की कोई मंजिल नहीं होती..!

ऐसा लगता है कि अपनी रिहाइश को लेकर इंसान और जंगली जानवरों के बीच जंग सी छिड़ी हुई है!जंगल नष्ट हो रहे हैं और वहां रहने वाले शेर चीते और तेंदुए जैसे शानदार जानवर कंक्रीट के आधुनिक जंगलों में बौखलाए हुए भटक रहे हैं!उनके लिए जंगल और शहर के बीच का फर्क मिटता जा रहा है। औद्योगीकरण और विकास के नाम पर पर्यावरण को नष्ट किया जा रहा है, कंक्रीट के जंगल बहुत तेजी से उगाए जा रहे हैं।पूंजीवाद के देवताओं ने अपने विकास और निवेश के दायरे को जंगलों के पार पंहुचा दिया है!इन सबसे जंगलों का पूरा तंत्र छिन्न-भिन्न हो गया है। यहां की खाद्य शृंखला बिखर गई है और नदियां सूख रही हैं। शिकारी और लकड़ी व खनन के ठेकेदार वहां डेरा जमाए हुए हैं। राष्ट्रीय राजमार्गों ने भी जंगलों के भूगोल को बदल डाला है। इसकी वजह से जानवर दुर्घटनाओं के शिकार भी हो रहे हैं। इस इंसानी कहर से परेशान होकर जंगली जानवर उन्हीं इंसानों की बस्तियों की तरफ भागने को मजबूर हुए हैं जो इसके लिए जिम्मेदार है। अब व शहरों में भी पनाह तलाश रहे हैं। उन्हें कहां पता होगा कि शहरों में भटकाव की कोई मंजिल नहीं होती है।पिछले कुछ सालों में देशभर में कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जिससे पता चलता है कि जंगली जानवर अपने अस्तित्व पर मंडरा रहे खतरे की वजह से जीने के नए तरीके खोजने को मजबूर हैं,लेकिन यह उपाय भी उनके लिए जानलेवा साबित हो रहा है।ऐसे में सवाल पूछा जाना चाहिए कि जानवर इंसानों की बस्ती में घुस रहे हैं या इंसान जानवरों के क्षेत्र को कब्जा रहे हैं?लेकिन अगर गहराई से विचार किया जाए तो इससे कई सवाल उठेंगें जो मौजूदा दौर में इंसानों के जीने के तरीके और प्रकृति व धरती के दूसरे प्रजातियों के प्रति हमारे व्यवहार को लेकर कई बुनियादी सवाल खड़े करते हैं। सोचने वाली बात यह है कि जंगली जानवरों और इंसानों के बीच यह टकराव एकतरफा है!जंगली जानवर हमारे घरों में नहीं बल्कि बल्कि हम उनके घरों में घुस रहे हैं। हम उनके अस्तित्व के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। दावा तो धरती के सबसे बुद्धिमान प्राणी का है लेकिन हम यही नहीं समझ पा रहे हैं कि जंगल और यहां रहने वाले जानवर हमारी जैव विविधता का अभिन्न हिस्सा हैं।अगर यह खत्म होंगें या इनकी संख्या कम होगी तो इसके असर से हम भी नहीं बच सकेंगे। मानवता को प्रकृति जल, जंगल जमीन और दूसरी प्रजातियों के प्रति अपनी अवधारणा को लेकर तत्काल विचार करने की जरूरत है। इस एक एकतरफा टकराव और पर्यावरणीय असंतुलन से होने वाली तबाही को हम इंसान ही टाल सकते हैं।

रिपोर्ट रमेश सैनी सहारनपुर इंडियन टीवी न्यूज़

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