सच की खोज और उसका खुलासा किस स्तर तक एक जोखिम भरा

पत्रकारिता एक जोखिम भरा काम सच सामने लाने पर कई दुश्मन

 

अवैध गतिविधियों को उजागर करना और दुनिया को सच बताने पर गई एक पत्रकार की जान..!

 

पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या की घटना से एक बार फिर यही साबित हुआ है कि व्यवस्थागत पारदर्शिता और कानून- व्यवस्था के तमाम दावों के बावजूद आज भी अवैध गतिविधियों को उजागर करना और दुनिया को सच बताना जोखिम का काम है। एक कमजोर पृष्ठभूमि वाले परिवार से निकले मुकेश चंद्राकर ने पत्रकारिता का पेशा चुना और कई बार खबरों के लिए जोखिम उठाते थे। मगर उनका यही साहस शायद कुछ लोगों की आंखों में खटकने लगा था। एक जनवरी की रात से वे लापता थे और बाद में उनका शव एक ठेकेदार के परिसर के सेप्टिक टैंक से बरामद किया गया। पोस्टमार्टम से पता चला कि उनकी बहुत बर्बरता से हत्या की गई थी। अब हत्या के मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है। खबरों के मुताबिक, इस हत्या का संबंध सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार से जुड़ी उस खबर से हो सकता है, जिसमें मुख्य आरोपी ठेकेदार को कठघरे में खड़ा किया गया था। इस प्रकरण से साफ है कि देश में दूरदराज के इलाकों में सच की खोज और उसका खुलासा किस स्तर तक एक जोखिम भरा काम हो चुका है।सवाल है कि राज्य में कानून-व्यवस्था की क्या स्थिति है कि कोई ठेकेदार बिना किसी बाधा के अपनी भ्रष्ट गतिविधियां चलाता है और उसे किसी तरह की कानूनी रोकटोक का सामना नहीं करना पड़ता। यही नहीं, सच के लिए जोखिम उठाने वाले एक पत्रकार की हत्या कर दी गई। साफ है कि यह एक ओर भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार के ढीले-ढाले रवैये का सूचक है, तो दूसरी ओर, राज्य की कानून-व्यवस्था की लाचारगी का भी सबूत कि बर्बरता से पत्रकार की हत्या करने वालों को किसी का खौफ नहीं था। यह घटना बताती है कि दूरदराज के इलाकों में खबरें निकालने के काम में जुटे पत्रकारों पर हर समय किस स्तर का खतरा मंडराता रहता है। सरकार की लाचारगी और कानून-व्यवस्था के खोखलेपन का आलम यह है कि वह न तो भ्रष्ट और आपराधिक तत्त्वों पर नकेल कस पाती है और न ही उनकी गतिविधियों को दुनिया के सामने लाने वाले पत्रकारों की सुरक्षा मुहैया करा पाती है। ऐसे में, सच के सामने पैदा हो रहे जोखिम का अंदाजा लगाया जा सकता है.

 

रिपोर्ट रमेश सैनी सहारनपुर इंडियन टीवी न्यूज़

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