मुफ्त सुविधाएं एक परजीवी समाज का निर्माण कर..
मुफ्त की सौगात पाने के लिए कुछ लोग अपना काम पर जाना तक छोड़..
आजकल कुछ वर्षों से देखने में आ रहा हैं कि चुनाव के वक्त मुफ्त की रेवड़ियां का अपने वादों के भाषणों में ज्यादा जिक्र होता हैं और मुफ्त की सौगात पाने के लिए कुछ लोग अपना काम मजदूरी पर जाना तक छोड़ दे रहें हैं!पिछले कुछ सालों में फसलों की बुआई और कटाई के लिए अब मजदूर नहीं मिल रहे है!अभी हाल ही में काम के लिए राजमिस्त्री की आवश्यकता थी! करीब कई दिन लगे ढूंढने में, उस वक्त देखा कि कई लोग हैं जो खाली बैठे है पर व काम करना ही नहीं चाहते!ऐसा नहीं है कि उनको मजदूरी कम मिलती है!राजमिस्त्री सात सौ रुपए प्रति व्यक्ति व मजदूर पांच सौ रुपये मजदूरी अब गांव में भी मिलती है! जो सरकार द्वारा तय न्यूनतम मजदूरी दर से ज्यादा है!ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी वाजिब है!आजकल चुनावी वायदे, घोषणाएं, मुफ्त की रेवड़ी और महिला सशक्तीकरण की आड़ में पैसे बांटने की परंपरा शुरू हो गई है! सुप्रीम कोर्ट का यह कहना कि इस तरह की मुफ्त सुविधाएं एक परजीवी समाज का निर्माण कर रही हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है!हर कोई अदालत की इस टिप्पणी से पूरी तरह सहमत होगा! क्योंकि अगर इस पर लगाम नहीं लगाई गई तो यह राष्ट्र के लिए नुकसानदायक होगा!
रिपोर्टर रमेंश सैनी सहारनपुर इंडियन टीवी न्यूज़