सभ्यता का यह कौन सा दौर है, जिसमें एक समुदाय के कुछ नागरिक दूसरे समुदाय के एक नागरिक को पीट-पीट कर मार डालते हैं और ‘कानून का राज’ अपना सा मुंह लेकर चुपचाप खड़े होकर देखता रहता है? हमारी सारी वैज्ञानिक प्रगति और ज्ञान का भंडार तब कहां सुप्त हो जाता है जब गौहत्या की आशंका मात्र से बिहार के सारन जिले के एक गांव के कुछ लोग इकट्ठा होकर एक ट्रक में जानवरों की हड्डियां ले जा रहे उसके चालक को रक्त रंजित करके मरने के लिए छोड़ देते हैं। भारत की नई पीढ़ी में यह किसने जहर भर दिया है कि उसने ‘माब लिंचिग’ जैसे पैशाचिक व अमानवीय कृत्य को ही अपनी धर्म पराणयता मान लिया है? 21वीं सदी से हम आठवीं सदी में लौटने की रवायतों की मानसिकता से ग्रस्त हो रहे हैं और उस पर तुर्रा यह है कि हम पूरी दुनिया में सभ्यता के ‘रौशन चिराग’ हैं। यह कौन सी रोशनी किस धर्म शास्त्र से मिल रही है जो आदमी को आदमी के खून का प्यासा बना रही है? मगर सवाल इसके मूल में यह है कि भारत का कौन सा ऐसा कानून है जो किसी भी नागरिक को इसे अपने हाथ में लेने की इजाजत देता है? कौन हैं वे लोग जो ऐसा करने की प्रेरणा देकर भारत की नई पीढिघ्यों को भविष्य अंधकार में धकेल देना चाहते हैं। सारन में जिस 55 वर्षीय ट्रक चालक मोहम्मद जहीरुद्दीन की केवल इसलिए हत्या कर दी गई कि वह अपने ट्रक में मरे हुए जानवरों की हड्डियां पास के गांव में स्थित एक पंजीकृत फैक्टरी में देने जा रहा था जहां इनका उपयोग ‘औषधीय तत्वों’ के उत्पादन में होता है। फैक्टरी मालिक के अनुसार जहीरुद्दीन यह काम पिछले कई वर्षों से करता आ रहा था। फैक्टरी जाते हुए उसके ट्रक में खराबी आयी और वह किसी मैकेनिक को ढूंढने के लिए एक गांव के पास रुक गया। गांव के कुछ लोग जब ट्रक की खराबी में पूछताछ करने लगे तो उन्हें इससे दुर्गन्ध आयी और उन्होंने समझ लिया कि इसमे गौमांस भरा हुआ है। इसके बाद कुछ लोगों ने जहीरुद्दीन से मारपीट शुरू कर दी और उसे अपनी बात कहने तक का मौका नहीं दिया। जहीरुद्दीन को बुरी तरह जख्मी करके मरने के लिए छोड़ दिया गया। पुलिस जब उसे अस्पताल ले गई तो उसकी मृत्यु हो गई। सबसे अफसोसनाक बात यह है कि पुलिस ने ट्रक ड्राइवर की हत्या के जुर्म में जिन सात लोगों को गिरफ्तार किया है उन सभी की उम्र 18 से लेकर 25 साल के बीच है। ये उस राज्य बिहार के युवा हैं जिसके लोगों को राजनैतिक रूप से बहुत सजग व चौकन्ना माना जाता है। यह बहुत गंभीर और विचारणीय मामला है क्योंकि बिहार राज्य भारतीय संस्कृति का संबल भी कहा जाता है। इसी धरती में भगवान बुद्ध व महावीर जैसे अहिंसा के कालजयी सिद्धान्त के प्रवर्तकों का जन्म हुआ। हम जिस भारतीय संस्कृति की दुहाई देते हैं उसका मूल व आधारभूत सिद्धान्त भी ‘अहिंसा परमोधर्मः’ ही है। हिन्दू संस्कृति तो इस सिद्धान्त का इस प्रकार बखान करती है कि पूरी महाभारत घटित होने के बाद यही ग्रन्थ अंत में कहता है कि ‘अहिंसा परमो धर्मः’। सवाल यह है कि 21वीं सदी में कौन से ऐसे सिपहसालार पैदा हो गये हैं जो गौहत्या निषेध के कानूनों के बन जाने के बाद खुद को पुलिस या कानून लागू करने वालों की भूमिका में देखने लगे हैं? ऐसे ‘काऊ विजलांटे’ कहे जाने वाले लोगों को पता होना चाहिए कि हिन्दोस्तान केवल उन्हीं का नहीं है बल्कि यह उन सब लोगों का है जो इसके भू-भाग के किसी भी इलाके में रहते हैं और किसी भी मजहब का पालन करते हैं। मुझे इस सन्दर्भ में बिहार के ही एक बड़े नेता स्व. राम विलास पासवाल के संसद में कहे गये वे शब्द याद आ रहे हैं जो उन्होंने गौहत्या पर चली बहस के दौरान कहे थे। उन्होंने कहा था कि ‘जब गऊ हमारी माता हैं तो मरने के बाद उसे दलितों के कंधों पर क्यों लाद दिया जाता है। मरने के बाद उसका अन्तिम संस्कार समाज की कथित सवर्ण जातियों के लोग क्यों नहीं करते’? मगर माब लिंचिंग का मामला धर्म से ऊपर मानवीयता का है जिसे हिन्दू सभ्यता में ‘प्राणी मात्र’ में सद्भावना व सौहार्द के रूप में निरूपित किया गया है। यदि किसी समाज में मानव ही मानव का दुश्मन बन जाये तो ‘असभ्यता की पराकाष्ठा’ का निशान माना जाता है। धर्म अथवा मजहब की रवायतें ईश्वर या अल्लाह ने नहीं बनाई बल्कि उन्हें इसी पृथ्वी पर रहने वाले लोगों ने ही कभी न कभी बनाया है। कोई भी इंसान भगवान या खुदा के यहां अर्जी देकर पैदा नहीं होता कि उसका जन्म किसी हिन्दू या मुसलमान के घर में ही हो। उसका हिन्दू या मुसलमान होना एक शारीरिक-वैज्ञानिक घटना होती है। इस घटना के घटने के बाद समाज ही उसे हिन्दू या मुसलमान के रूप में बड़ा करता है। अतः सबसे बड़ा धर्म तो सबसे पहले ‘इंसानियत’ ही हुआ। यह इंसानित ही जब जख्मी होती हो तो हिन्दू-मुसलमान का होना कोई मायने नहीं रखता। भारत मानवीयता का पुजारी रहा है और यही वजह है कि सदियों से इस देश में न जाने कितने मतों व धर्मों के लोग आते रहे और इसकी सरजमीं में अपना आशियाना बनाते रहे। हमारे संविधान में इस बात की पुख्ता ताईद की गई है कि सरकारें लोगों में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए काम करेंगी। मगर हम इसकी बात करना फिजूल समझते हैं। वैज्ञानिक सोच का सम्बन्ध सीधे मानवीयता से होता है। यह बेवजह नहीं है कि बाबा साहेब अम्बेडकर ने प्रत्येक नागरिक को भारत में अपना व्यवसाय चुनने व रोजी कमाने का अधिकार भी दिया और नागरिकों को जीवन जीने का अधिकार भी दिया जिसकी रक्षा करने के लिए सरकारें वचनबद्ध होती हैं। अतः बिहार की नीतीश सरकार का कर्त्तव्य बनता है कि वह सारन की ‘माब लिंचिंग’ के अपराधियों को ऐसी सजा दिलाने के लिए काम करें कि पूरे भारत में यह एक नजीर बन जाये।