कारागारों में मानवीय वातावरण बनाने की सिफारिश लंबे समय से की जाती रही है! इसके मद्देनजर सुधार के कुछ उपाय भी आजमाए जा चुके हैं!जेल नियमावली को मानवीय बनाने का प्रयास किया गया! मगर हकीकत यह है कि जेलों में मिलने वाली यातनाओं,जेल कर्मियों की लापरवाही,बाहरी तनावों और बन्दियों के परस्पर संघर्ष की वजह से हर साल देश मे सैकड़ों कैदी अपनी जान गंवा देते हैं!और देश की जेलों में खुदकुशी की सबसे घटनाएं व प्राकृतिक मौतें उनमें वृद्धावस्था,बीमारी के कारण कैदियों की मौते होती रहती हैं!जबकि कुछ जेलों की दुर्दशा पर अनेक बार चिंता जताई जा चुकी है!सर्वोच्च न्यायालय खुद कई बार कह चुका है कि जेलों में भीड़भाड़ कम करने के लिए विचाराधीन कैदियों के मामलों की त्वरित सुनवाई की जानी चाहिए!ज्यादातर जेलों में क्षमता से कई गुना अधिक कैदी रखे गए हैं। इस तरह न तो उन्हें बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हो पाती हैं, न उन पर समुचित ध्यान दिया जा पाता है।सुरक्षा में भी इसी वजह से चूक होती है जेलों का मकसद कैदियों में सुधार की संभावना पैदा करना होता है न कि यातनाएं देना नही तथा देखा जाता हैं या अखबारों में पढ़ा जाता हैं कि उनके साथ रहने-खाने,चिकित्सा संबंधी सुविधाओं में भी घोर उपेक्षा जगजाहिर है!जबकि देश की न्यायालयो की बार-बार फटकार और जेलों में सुधार की जरूरत रेखांकित किए जाने के बावजूद जेल प्रशासन के रवैए में कोई बदलाव नजर नहीं आता।
रिपोर्ट रमेश सैनी सहारनपुर