चिकित्सा या व्यापारः यह बहस का मुददा हो सकता है!चिकित्सा का पेशा पूरी तरह मानवीय है, चिकित्सक को दूसरे भगवान के रूप में देखा जाता है लेकिन अब यह धारणा शायद बदल रही है। मानवीय संवेदनाऐ इस पेशे से लुप्त सी होती जा रही है। चिकित्सा और शिक्षा इंसान का बुनियादी हक है। सरकार भले ही लाख दावे करें लेकिन आकडे सरकार का मुंह चिढाते है तथा प्राइवेट चिकित्सक आखं दिखाते है। मरीजों से मन मर्जी फीस वसूली जाती है। इमरजेंसी फीस की मंहगी मार अलग से, दवाई उसी मेडिकल स्टोर से लेनी होगी। जहां पर चिकित्सक की सैटिंग होगी।अधिकांश नर्सिंग होम एवं बडे चिकित्सक अपने ही यहां मेडिकल स्टोर की व्यवस्था रखते है। कोई भी जांच करानी हो तो जहां के लिये डाक्टर लिखेगा वही से होगी, यहां भी सैटिंग का फंडा चलता है। यानि एक साथ कई व्यापार । फिर क्यों न कहें चिकित्सा को एक व्यापार। इलाज का भी बकायदा पैकेज होता है। कुछ मशहूर चिकित्सक तो एक्सरे देखकर ही मरीज को इलाज का पूरा पैकेज बता देते है। अब करोओगे तो इतने, फिर आओगे तो उतने। चिकित्सा एक तमाशा बनकर रह गई है। आम आदमी त्रस्त है। लेकिन बीमारी के चलते इन चिकित्सकों की गिरफ्त में है सभी ऐसे नही लेकिन बहुत सो ने तो हदे पार कर रखी है उनको भी बदनाम कर दिया है जो अपने पेशे के साथ पूरी ईमानदारी से काम करते हैं। कुछ झोलाछाप डाक्टर सैक्स स्पेशलिस्ट के नाम पर जमकर धन उगाही कर रहे है। भोली-भाली जनता को ठग रहे हैं हनीमून पैकेज के नाम पर रूपया बटोर रहे हैं। बडे-बडे प्रचार एवं प्रसार के दम पर लोगों को गुमराह किया जाता है। झोलाछाप डाक्टरों के खिलाफ अभियान तो चलता है लेकिन कागजी, ये झोलाछाप कभी नही पकड़े जाते इनकी मिली भगत चिकित्सा विभाग से होती है। चिकित्सा के इस गिरते स्तर का मूल्यांकन करे तो कौन?
रिपोर्ट रमेश सैनी सहारनपुर