उरई (जालौन)। जिम्मेदारों की दरियादिली से उरई तहसील क्षेत्र के ग्राम सिकरी व्यास से निकली सदानीरा बेतवा नदी के मौरम खंड संख्या तीन जो कि छह माह के लिये मौरम खनन की अनुमति मिली है। लेकिन मौरम घाट का संचालन करने वाले नदी की जलधारा के बीचों बीच से पाॅकलैंड मशीनों से अंधाधुंध तरीके से मौरम का खनन कर नदी का स्वरूप बिगाड़ने पर तुले हुये हैं। हैरानी की बात तो यह है कि उक्त मौरम घाट पर आज तक खनिज दफ्तर के जिम्मेदारों ने पहुंचकर निरीक्षण करने की जेहमत तक नहीं उठायी। यही कारण है कि पट्टाधारक स्वेच्छाचारिता पूर्ण तरीके से नदी की जलधारा से ही नहीं बल्कि निजी व परती भूमि से भी मौरम का खनन कराने में लगा हुआ है। क्षेत्रीय ग्रामीणों से मिली जानकारी के अनुसार सिकरी व्यास खंड 3 का पट्टा छह माह के लिये राधा कॉन्ट्रैक्शन कंपनी को मिला था। इसके बाद कंपनी के कर्मियों ने अपने तरीके से वहां पर मौरम खनन का कार्य शुरू कराया और फिर वह नियमों को ताक पर रखकर नदी की जलधारा में पाॅकलैंड मशीनों को मौरम खनन करने के लिये उतार दिया। ग्रामीणों की मानें तो मौरम खंड के समीप ही कई ऐसे स्थान हैं जहां कुआं जैसी गहराई कर मौरम का खनन किया जा चुका है। पट्टाधारक की स्वेच्छाचारिता यहीं तक सीमित नहीं रही बल्कि इससे दो कदम आगे बढ़कर अब निजी जमीन गाटा संख्या 1004 व 1003 एवं परती भूमि पर खनन का कार्य चालू करवा दिया गया। मजे की बात तो यह है कि पट्टाधारक ने खनन स्थल से काफी दूर धर्मकांटा तो लगवाया लेकिन स्थानीय लोगों की मानें तो धर्मकांटा महज शोपीस बना हुआ है और धर्मकांटा से ही मौरम वाहनों में ओवरलोड मौरम भरकर वाहनों को गंतव्य स्थानों के लिये रवाना किया जा रहा है। जिससे पूर्व के समय में करोड़ों रुपये लागत से जिन सड़कों का निर्माण कराया गया था वह उखड़नी शुरू हो गयी है। बताया जाता है कि पट्टाधारक को एक निर्धारित स्थान से ही मौरम खनन करने की अनुमति मिली हुयी है उस क्षेत्र का भी खनिज दफ्तर का सर्वेयर सीमांकन करता है। लेकिन यहां पर ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता। जो कि खनन नियमावली और सेंट्रल माइंस एंड मिनरल्स एक्ट 1970 एवं यूपी माइनर मिनरल कंस्ट्रक्शन रूल्स 1963 का उल्लंघन है तथा इसके क्षेत्र में पर्यावरण व परिस्थिति तंत्र को भी हानि पहुंचा रही है। फोटो परिचय— नदी की जलधारा के बीच से मौरम खनन करती पाॅकलैंड मशीनें।