प्रयागराज, 26 मार्च 2023ः- “युगों-युगों से छाया अज्ञानता का अन्धेरा ब्रह्मज्ञान के उजाले से दूर किया जा सकता है।” उक्त उद्गार निरंकारी सत्गुरू माता सुदीक्षा जी महाराज ने प्रयागराज स्थित, परेड ग्राउण्ड में आयोजित 44वें निरंकारी संत समागम में व्यक्त किये। लाखों भक्तों को सम्बोधित करते हुये सत्गुरू ने कहा कि जिस प्रकार माचिस की एक तीली जलाने मात्र से घर में फैला वर्षों का अंधकार क्षण भर में दूर किया जा सकता है, ठीक उसी प्रकार वैर, विरोध, इर्षा, अंहकार रूपी अज्ञानता के अंधेरे में जी रहा मानव अपने मूल परमात्मा से जुड़कर मुक्ति प्राप्त कर सकता है।

सत्गुरू माता जी ने फरमाया कि जिस प्रकार मोबाइल सहित सभी संचार माध्यमों को हम नफरत, वैर-विरोध व नकारात्मक भावानाओं के प्रचार-प्रसार के लिये प्रयोग कर सकते हैं, वहीं संचार माध्यम परस्पर प्यार, सहिणशता, सहनाीलता एवं सहयोग की भावनाओं को विस्तृत करने हेतु सहायक हो सकते हैं। परमात्मा के निरंतर जुड़ाव से हमारी सोच बदल जाती है। जिन्दगी में रूहानियत के आते ही हमारी इंसानी सोच हमारे जीवन को सार्थक बना देती है। हमारे मन मेें करूणा, दया एवं सहनाीलता जैसी दैवीय भावनाओं का उदय हो जाता हैं। फिर अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितियां हमारी मनोस्थिति को प्रभावित नहीं करती और शिकवा-शिकायत के भाव शुकराने में परिवर्तित हो जाते हैं।
सत्गुरू माता जी ने कहा कि हम जिस प्रकार किसी प्रकार के यन्त्र से प्रकाश की आशा तभी तक कर सकते हैं जब तक उसका सम्बन्ध इलेक्ट्रिसिटी से बना हुआ है, ठीक उसी प्रकार परमात्मा से निरन्तर जुड़ाव ही मानव जीवन की खुशहाली का कारण बनता है। हम समाज में फैली बुराईयों को अच्छाइयों में बदलकर एकत्व में सद्भाव का उदाहरण स्थापित कर सकते हैं। जब हम ब्रह्मज्ञान को कर्म रूप मेें उतार लेते हैं तब हमारी आत्मा की मुक्ति जीते जी संभव हैं।
सत्गुरू माता जी से पूर्व निरंकारी राजपिता रमित जी ने अपने संबोधन में फरमाया कि सन्त एवं भक्तों का जीवन तो सदैव उत्सव वाला ही होता है क्योकि वह अपने सत्गुरू के प्रति भक्ति भाव से जीते हुए अपने जीवन का हर पल सुन्दर बनाते हैं। प्रभु मिलन के लिए कोई खूबी या कोई विशेषता होना अनिवार्य नहीं अपितु इसके लिए तो हृदय में श्रद्धा और विवास ही आवयक है। परमात्मा को पाने का एकमात्र साधन सत्गुरू का सानिध्य ही है और इसकी जानकारी हेतु किसी धन या दौलत की आवयकता नहीं अपितु परमात्मा को पाने की जिज्ञासा मात्र ही भक्त को इसका दीदार कराने में सहायक होती है फिर उसका जीवन सहज बन जाता है जिसमें वह हर कार्य को प्रभू इच्छा समझकर सर्वोपरि मानता है। निरंकारी राजपिता जी ने आगे समझाते हुये कहा कि वर्तमान भौतिक-वादी युग में मानव को कभी न पूरी होने वाली इच्छाओं की व्याकुलता को त्यागकर सत्गुरू की शरण में जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त करना चाहिए और वह है परमात्मा की जानकारी।
समागम में विभिन्न स्थानों से आए कविजनों ने समागम के शिर्षक – ‘रूहानियत-इन्सानियत संग संग‘ पर आधारित गीत, विचारों, कविताओं को विविध भाााओं में व्यक्त किया। जिसका संपूर्ण भारतवर्ष एवं दूरदेशों के लाखों भक्तों ने आनंद प्राप्त किया।
विजय कुमार गुप्ता Indian TV news जिला संवाददाता प्रयागराज