- पहाड़ के गांव उजड़ रहे हैं। सिसक रहे हैं। पलायन और सिस्टम की उन पर दोहरी मार पड़ रही है। परिसीमन से गांवों के वजूूद पर आने वाले दिनों में और बड़ा संकट मंडरा रहा है। यह दास्तां है उत्तराखंड की उत्तराखंड के कई जिलों में चोरी की वारदात दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है लेकिन मैं आज बात करूंगी वीरों खान ब्लॉक के टिमली गांव की जहां 7 दिन के अंदर सात घरों में चोरी हो गई जहां से तांबे और पीतल के बर्तन शादी और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बजने वाले ढोल और कई अन्य चीजों पर चोरों ने अपना हाथ साफ कर लिया प्रशासन कहां है कुछ समझ नहीं आता एक ही गांव में इतनी बार चोरी होना एक बहुत बड़ी बात है शासन प्रशासन की धज्जियां उड़ाते हुए कर बार-बार उन्हें घटनाओं को दोहरा रहे हैं लोग कहते हैं समय बदल गया है देश बहुत विकसित हो गया है लेकिन यह कहने वाले सारे लोग खुद विकसित हैं इसलिए उनको लगता है कि देश भी विकास कर रहा है लेकिन अगर यह विकास देश के आखिरी छोर तक न पहुंचे तो यह कहना कि देश विकास कर रहा है शायद गलत होगा हम बात कर रहे हैं देश के कई ऐसे छोटे-छोटे गांव की जहां मोबाइल का नेटवर्क तो पहुंच गया है लेकिन दो वक्त की रोटी नहीं पहुंची उसी रोटी को कमाने के लिए उनको गांव छोड़कर अपना घर परिवार छोड़कर अपनी संस्कृति को छोड़कर बड़े शहरों की तरफ पलायन करना पड़ता है कोई खुशी से अपना घर नहीं छोड़ना चाहता कुछ लोग कहते हैं बच्चों को पढ़ाने के लिए शहर में जाना ही पड़ेगा कुछ कहते हैं गांव में रहेंगे तो भूखे मर जाएंगे और अपने घर पर ताला लगाकर निकल जाते हैं अनजान शहर की ओर रोजगार की तलाश में जहां पति-पत्नी और बच्चे सब कोई ना कोई काम ढूंढते हैं काम मिलता भी है इतना कि बस वह अपना पेट भर सके यहां तक तो सब ठीक है पर असली दुख की वजह यह है कि जिस घर को वह ताला लगाकर किसी के भरोसे पर छोड़ आए थे अब वह ताले टूटने लगे हैं और उनको पता भी नहीं है कि चोर उनके घर में घुसकर उनकी सारी संपत्ति को चुरा कर ले गए वह जब शहर से गांव जाएंगे कुछ नया सामान लेकर और जब उन्हें पता चलेगा कि उनकी पुरखों का जमा किया हुआ सामान चोरी हो गया तो उन पर क्या बीतेगी डरे सहमे लोगों की बात सरकार तक का पहुंचेगी यह समझ नहीं आता लेकिन तब तक गांव वालों को एकजुट होकर अपने गांव को बचाना होगा अपनी संस्कृति को बचाना होगा