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गुना। ठाकुरजी जीवन में आएंगे तो चिंता नहीं चिंतन होगा: इंद्रेशजी महाराज

ठाकुरजी जीवन में आएंगे तो चिंता नहीं चिंतन होगा: इंद्रेशजी महाराज
श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन सुनाए कई रोचक प्रसंग
गुना। शहर के होटल द ग्रेण्ड गिरधर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन कथा व्यास पं. इंद्रेशजी उपाध्याय ने कई रोचक प्रसंगाों का वर्णन करते हुए श्रद्धालुओं को भाव-विभोर कर दिया। उन्होंने भक्तों को बताया कि जीवन में ठाकुरजी (भगवान) मिल जाएं तो क्या-क्या परिवर्तन आ सकते हैं। सबसे बड़ा परिवर्तन यह होगा कि ठाकुरजी मिलते ही लोग चिंता मुक्त हो जाएंगे और चिंतन करने लगेंगे।
सामरसिंगा परिवार द्वारा आयोजित की जा रही श्रीमद् भागवत कथा का वर्णन करते हुए इंद्रेशजी महाराज ने गुरुवार को पूतना वध की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि किस तरह पूतना सुंदर स्त्री का वेष धारण कर गोकुल पहुंची, जिसे भगवान के अलावा कोई नहीं पहचान पाया। यहां तक कि यशोदा मां भी उसके मोहजाल में भ्रमित हो गईं, लेकिन भगवान सर्वज्ञानी हैं। उन्होंने पूतना को पहचाना भी और उसका वध भी किया। इस दौरान इंद्रेशजी ने भगवान की बाल लीलाओं का भी वर्णन किया। उन्होंने बताया कि श्रीकृष्ण अपने नटखट स्वभाव से मैया यशोदा को सताते थे। जिन्हें अपने वश में करने के लिए यशोदा मां लगातार जतन करती रहीं, लेकिन वे किसी काम नहीं आए और पूरा गोकुल भगवान की बाल लीलाओं से मोहित हो गया। इंद्रेशजी ने बताया कि ठाकुरजी जब जीवन में आ जाते हैं तो प्राणी की स्थिति नंदबाबा जैसी हो जाती है। नंदबाबा भी ठाकुरजी को प्राप्त करने के बाद सुध-बुध खो बैठे थे। बधाई देने वालों पर अपना सबकुछ लुटाना चाहते थे। उनका मन ऐसा हो गया था कि सिर्फ ठाकुरजी उनके पास रहें, बांकी कुछ हो या न हो इससे नंदबाबा को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। इंद्रेशजी के मुताबिक ठाकुरजी को प्राप्त करने के बाद नंदबाबा दीन हो गए थे। उनका देहाभिमान शून्य हो गया था। कथा व्यास पं. उपाध्याय के मुताबिक दीन होना निर्धनता नहीं है, बल्कि दीन का आशय है कि अब अपनी तुलना में सभी को श्रेष्ठ समझें। स्वयं को विनम्र मानें। उन्होंने बताया कि जब ठाकुरजी भक्त के जीवन में आते हैं तब उसके साथ यही होता है। कुछ भी बचाने, संजोने की इच्छा नहीं होती। सब देने का मन करेगा। सबसे बड़ी बात व्यक्ति चतुर नहीं रहता है, बल्कि भोला हो जाता है, सीधा हो जाता है। 24 घंटे ठाकुरजी का चिंतन करता है।

गोवर्धन प्रसंग सुनाया, 56 भोग लगाए गए
कथा के दौरान इंद्रेशजी महाराज ने भगवान द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने का प्रसंग सुनाया। उन्होंने बताया कि पृथ्वी को बचाने के उद्देश्य से भगवान ने गोवर्धन अपनी उंगुली पर थाम लिया। इस प्रसंग के दौरान कथा स्थल पर भगवान के लिए 56 भोग लगाए गए। इस प्रसंग पर भी भजनों की प्रस्तुति के बीच श्रद्धालुओं ने जमकर नृत्य किया।

दो घड़ी से ज्यादा नहीं होना चाहिए क्रोध
इंद्रेशजी ने भागवतजी के प्रसंगों का वर्णन करते हुए क्रोध की विस्तार से समीक्षा की। उन्होंने कहाकि क्रोध हर व्यक्ति के जीवन में होना चाहिए। परंतु उसकी अवधि दो घड़ी से ज्यादा न हो। यदि एक रात्रि के बाद भी क्रोध रहता है, तो वह पाप की श्रेणी में माना जाता है। उन्होंने उदाहरण देते समझाया कि बालक को सुधारने के लिए माता-पिता का क्रोध पाप की श्रेणी में नहीं आता है। इंद्रेशजी ने बच्चों और युवा पीढ़ी को सीख दी कि वे बड़ों द्वारा किए गए क्रोध को सहन करना सीखें। यदि बड़ों के क्रोध को सहना सीख लिया तो जीवन में कुछ भी नहीं सहना पड़ेगा। अधिक क्रोध करने वालों को इंद्रेशजी ने सीख दी कि क्रोध तामसिकता को जन्म देता है, इसलिए क्रोध कम ही करना चाहिए।

हनुमान टेकरी मंदिर पहुंचे इंद्रेशजी महाराज
गुना में श्रीमद् भावगत कथा का वाचन कर रहे पं. इंद्रेशजी उपाध्याय शुक्रवार को शहर के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री हनुमान टेकरी मंदिर पहुंचे। कथा व्यास पं. इंद्रेशजी ने हनुमानजी के दर्शन किए। इस दौरान श्री हनुमान टेकरी मंदिर ट्रस्ट ने इंद्रेशजी उपाध्याय का सम्मान किया।

गुना  गोलू सेन ब्यूरो रिपोर्ट

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