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देश के महान संत आचार्य विद्यासागर जी महाराज को समाधि मरण उपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने कि समाज जनों की मांग,

देश के महान संत आचार्य विद्यासागर जी महाराज को समाधि मरण उपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने कि समाज जनों की मांग,

देश के राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के नाम कलेक्टर कार्यालय में डिप्टी कलेक्टर को सोपा ज्ञापन,

खंडवा ।। देश के महान संत आचार्य विद्यासागर जी का दुखद समाधि मरण युगात दोनों हो गया आचार्य श्री ने भगवान महावीर के संदेशों को आगे बढ़ाकर जीव दया का जो मार्ग अपनाया वह अद्भुत है उसका पालन हम सभी कर रहे हैं ,वे जैन समाज के ही नहीं अभी तो सर्व समाज के संत थे जिन्होंने अहिंसा के साथ जीव दया की अलख जगाई।
समाज के सचिव सुनील जैन ने बताया कि पूरे देश के साथ ही खंडवा सकल जैन समाज द्वारा देश के राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री को अनुरोध पत्र के माध्यम से हम अनुरोध करते हैं आचार्य विद्यासागर जी महाराज को समाधि मरण के पश्चात भारत रत्न विभूषण से सम्मानित किया जाए सकल जैन समाज की ओर से डिप्टी कलेक्टर दीक्षा भगोरे को दिए गए ज्ञापन में कहा गया कि जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज एक ऐसे जीवंत संत थे, जिन्होंने चतुर्थ कालीन चर्या का पालन करते हुए सभी संतो, मुनियों के साथ ही साथ जैनेत्तर समाज में भी वही स्थान प्राप्त किया है, जैसा की दिगंबर जैन धर्मावलंबियों में उनके प्रति था, वही आस्था, वही श्रद्धा और वही विश्वास हर किसी की आंखों में हम आचार्य श्री जी के कृति देखते थे।आचार्य श्री ने अपने इस दीर्घकालीन दीक्षा काल में आजीवन रूप से चीनी, नमक, चटाई पर सोने का, हरी सब्जी, फल, दही, अंग्रेजी दवाईयां, सूखे मेवे, तेल यहां तक की थूकने तक का भी उन्होंने त्याग किया हुआ था, वे शयन भी करते थे तो केवल एक पाट के ऊपर ही करते थे, और उसमें भी एक ही करवट से सोने का उनके नियम था।पूरे भारत में सबसे ज्यादा दीक्षाएं आचार्य श्री के द्वारा दी गई उन्हें अनियत विहारी कहा जाता था, क्योंकि वह जब भी कभी विहार करते थे, तो संघ के साधुओं को भी पता नहीं चलता था की आचार्य श्री का विहार हो गया है, जैसा महावीर भगवान के समय में भगवान महावीर किया करते थे और चतुर्थ कालीन संत किया करते थे, ठीक वही स्वरूप हम आचार्य श्री की इस उत्कृष्ट चर्या में देखते थे।उन्होंने अपने जीवन में भगवान ऋषभदेव की यादों को ताजा कर दिया था, जैसे भगवान ऋषभदेव ने अपना स्वयं का कल्याण तो किया ही था, किंतु साथ ही साथ उन्होंने जन कल्याण का भी महत्वपूर्ण कार्य किया था, हजारों, लाखों लोगों को आचार्य श्री ने भगवान ऋषभदेव के समकक्ष ही धर्म के मार्ग में लगाया, साधना के पथ पर आगे बढ़ाया और जैसे आदिनाथ स्वामी प्रजा के लिए उनके स्वास्थ्य, चिकित्सा, स्वावलंबन और शिक्षा का ध्यान रखते थे, ठीक उसी प्रकार आचार्य श्री ने भी अपनी धर्म आराधना और साधना के साथ-साथ जन समुदाय के लिए भी ऐसे विभिन्न प्रकल्प हथकरघा, पूर्णायु, भाग्योदय प्रतिभा स्थलिया बना करके और ऐसे अद्भुत और अनूठे कार्य अपने जीवन काल में करने की प्रेरणा दी हैं,पूज्य गुरुदेव अनेको भाषाओं के ज्ञाता थे, आपने मानव कल्याण हेतु अनेकों ग्रन्थों की रचना की है, और साहित्य का सृजन किया है, आपके “मूक- माटी महाकाव्य” के ऊपर विश्व भर में अनेकों छात्रों ने पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है, एवं आज भी कई छात्र उस पर शोध कार्य कर रहे हैं,
आपने मुक पशुओं के लिए अनेको गौशालाओं का निर्माण, पशु हत्या पर रोक, मांस निर्यात बंद यहां तक की भारत की मातृभाषा हिंदी के लिए भी अपना अमूल्य योगदान दिया है, आपके “इंडिया से भारत की और लौट चलो” इस नारे ने भारत सरकार तक को एक नई दिशा और प्रेरणा प्रदान की है आचार्य श्रीजी का उत्कृष्ठ रूप से पूर्ण समता के साथ समाधिस्थ होना और इस संसार से अपनी नबरतन को छोड़ते हुए विदा होना, निश्चित रूप से उन्हें अति शीघ्र सिद्धालय में विराजमान करेगी। ऐसी हम सब की आकांक्षा और जिनेंद्र प्रभु से प्रार्थना है, हम आचार्य श्री जी के चरणों में अपने पूरे श्रद्धा भाव के साथ अपनी भावांजलि, समर्पित करते। हैं, और आचार्य श्री जी के करते हुए उनके लाखों अनुयायियों की और से उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करने का निवेदन करते हैं। सकल जैन समाज की ओर से दिए गए अनुरोध पत्र का वाचन दिलीप पहाड़िया द्वारा किया गया।
इस अवसर पर दिलीप पहाड़िया, सुनील जैन, रंजन जैनी , प्रेमांशु चौधरी जैन ,प्रदीप कासलीवाल ,कांतिलाल जैन ,राकेश जैन, भारत छाबड़ा, दीपांशु जैन, महेश जैन, सुनील बैनाडा, संजीव जैन, पूनम पटेल सहित सामाजिक बंधु उपस्थित थे।

असफाक सिद्दीकी

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