काशी की प्रसिद्ध चिता भस्म होली मणिकर्णिका घाट पर आज खेली जाएगी, जानिए इस परंपरा की खासियत और महत्व
Indian tv news /ब्यूरो चीफ. करन भास्कर चन्दौली उत्तर प्रदेश
चन्दौली /वाराणसी देश के अलग-अलग हिस्सों में होली से जुड़ी कईं मान्यताएं और परंपराएं प्रचलित हैं। आमतौर पर होली रंग-गुलाल से खेली जाती है, लेकिन उत्तर प्रदेश में एक जगह ऐसी भी हैं जहां श्मशान में चिता की राख से होली खेलने की परंपरा है। ये जगह है काशी का मणिकर्णिका घाट। और श्मशान को मसान भी कहते हैं इसलिए इस परंपरा को मसान होली के नाम से जाना जाता है। आगे जानिए मसान होली से जुड़ी खास बातें…
क्यों खेलते हैं काशी में मसान होली?
काशी को भगवान शिव का घर कहा जाता है। मान्यता है कि देवी पार्वती से विवाह करने के बाद शिवजी उन्हें काशी लेकर आए। उस दिन रंगभरी एकादशी थी। शिवजी के विवाह की खुशी में अगले दिन मणिकर्णिका घाट पर शिवजी के गणों व भूत-प्रेतों ने श्मशान में चिता की राख से होली उत्सव मनाया। इस उत्सव में शिवजी भी शामिल हुए। तभी से यहां हर साल मसान होली खेली जाती है। लोगों का मानना है कि आज भी भगवान शिव मसान में गुप्त रूप से आते हैं। इस बार मसान होली 21 मार्च, आज गुरुवार को अब से थोड़ी देर में खेली जाएगी।
चिता भस्म से ही क्यों खेलते हैं होली?
काशी के मणिकर्णिका घाट चिता भस्म से होली खेलने की परंपरा के पीछे एक गहरा आध्यात्मिक रहस्य छिपा है। धर्म ग्रंथों के अनुसार ये संसार नश्वर है यानी एक दिन नष्ट होने वाला है। ये दुनिया एक दिन भस्म यानी राख में बदल जाएगी। यहां रहने वाले हर प्राणी का भी यही हाल होगा। चिता भस्म से होली खेलने का अर्थ ये है है कि इस दुनिया और अपने जीवन से अधिक मोह न रखें क्योंकि ये सबकुछ एक दिन राख में बदल जाएगा।
क्यों खास है काशी का मणिकर्णिका घाट?
काशी का मणिकर्णिका घाट बहुत ही प्राचीन है। अनेक धर्म ग्रंथों में भी इसका वर्णन मिलता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, एक बार देवी पार्वती का कर्ण फूल (कान में पहनने का आभूषण) यहां एक कुंड में गिर गया था। जिसे बाद में भगवान शिव ने ढूंढ लिया। देवी पार्वती के कान का आभूषण गिरने के कारण ही इस घाट का नाम मणिकर्णिका पड़ गया। एक बात और जो इस घाट को विशेष बनाती है वो ये कि महादेव ने इसी स्थान पर देवी सती का अग्नि संस्कार किया था, इसलिए इसे महाश्मसान भी कहते हैं।