राजस्थान में लोक निधि की त्रिवेणी पुस्तक का हुआ लोकार्पण

जोधपुर। चांदपोल के बाहर स्थित शिवबाड़ी में राजस्थानी कवि एवम लेखक अश्विनी कुमार दवे (आनंद) द्वारा प्रकाशित पुस्तक राजस्थान में लोक निधि की त्रिवेणी का लोकार्पण डॉ. प्रो. अर्जुन देव चारण पूर्व विभागाध्यक्ष राजस्थानी विभाग जेएनवीयू, डॉ. प्रो. गजेसिंह राजपुरोहित विभागाध्यक्ष राजस्थानी विभाग जेएनवीयू, मीनाक्षी बोराणा वरिष्ठ प्रो. राजस्थानी विभाग जेएनवीयू, अब्दुल सदीक खान सहायक निदेशक राजस्थानी शोध संस्थान चौपासनी जोधपुर, डॉ. चंद्रकांता जोशी पूर्व प्रधान अचलगंज (यू.पी.) एवम समाज सेविका, अमरदत्त जोशी पूर्व सहायक जिला शिक्षा अधिकारी जोधपुर के कर कमलों द्वारा किया गया।
दवे ने बताया कि लोकार्पण कार्यक्रम का शुभारंभ पण्डित परिकेत त्रिवेदी द्वारा भद्रसूक्त एवम श्रीमती विमलेश घोष द्वारा सरस्वती वंदना से किया गया।
इसी कड़ी में राजस्थान में लोक निधि की त्रिवेणी पुस्तक का सम्पूर्ण विवेचन प्रख्यात कवि नवीन बोहरा द्वारा किया गया।
लोकार्पण कार्यक्रम में प्रो डॉ. मीनाक्षी बोराणा ने अपने में उद्धबोधन में पुस्तक में प्रकाशित मांडनो की प्रशंषा करते हुए लेखक सेवानिवृत्त होने के पश्चात यह गुरुतर कार्य किया है।
सदीक मोहम्मद ने मानवीय संस्कारों के गीत की रचना करने पर लेखक को साधुवाद दिया।
डॉ चन्द्रकांता जोशी ने अपने उद्धबोधन में कहा कि लोक गीत एवम मांडने का संकलन हर एक के लिए बहुउपयोगी है। मारवाड़ की माटी का अपनत्व, मिठास, मिट्टी की खुशबू को पूरे हिंदुस्तान में पहुचाने का संकल्प लिया।
अमर दत्त जोशी ने अपने उद्धबोधन में कहा कि विद्वान सर्वत्र पहचान बनाये हुए है। राजस्थानी भाषा हमारी मायड़ भाषा है जहां गुजरात में गुजराती भाषा है वही महाराष्ट्र में मराठी भाषा है वैसे ही हर प्रान्त की अपनी भाषा व पहचान है। हमारे राजस्थान में राजस्थानी भाषा का कोई मोल नहीं वह अनमोल है।
प्रो. डॉ. गजे सिंह राजपुरोहित ने अपने उद्धबोधन में कहा की इस पुस्तक के लोकार्पण के समय राजस्थानी साहित्यकारों को याद कर इस प्रोग्राम को पूर्ण करने की बात कहते हुए मुख्य 3 कवियों को याद किया। उसके साथ ही लोक कहावतो को राजस्थानी भाषा मे प्रकाशित करने पर लेखक की भूरि भूरि प्रशंसा की।
आश्विनी दवे ने अपने उद्धबोधन में पुस्तक प्रकाशन में अपने विभिन्न अनुभवों को साझा करते हुए यह बताया कि आज की पीढ़ी लोक संस्कारों को भूल चुकी है, इन संस्कारों के गीतों को, मांडनों को हमें संजोकर भावी पीढ़ी को इनके बारे में विस्तृत रूप से बताना होगा तब कही जाकर हमारी पहचान स्थाई होगी।
प्रो. डॉ. अर्जुनदेव चारण ने सर्वप्रथम पौथी लिखने की बधाई दी। उन्होंने बताया कि लोक शास्त्र को समझना एक दिन का काम नही। स्वाध्याय करके ही सतत अध्ययन ओर अध्यापन से ही ज्ञान प्राप्त होता है। यह ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है और आज भी कायम है। जो ज्ञान श्री साहित्य में नहीं मिलता वह लोक साहित्य में पूर्ण रूप से दृशटव्य होता है। आज हम सिर्फ रीत निभाते है, रीत की उपयोगिता के बारे में जानकारी बहुत कम है। इसके साथ ही उन्होंने शिक्षा दीक्षा व शास्त्र से पहले लोक धरम को बताया।
लोकार्पण कार्यक्रम में सत्यनारायण बोहरा सत्तू भाई, नंदकिशोर दवे, महेश दवे, विक्रान्त दवे, राजेन्द्र जोशी, दुष्यन्त दवे, गायककार कालूराम प्रजापति, किशन लाल बाघमार, विजयकिशन व्यास (ए वन), रतन सिंह चाम्पावत, पंकज दवे, सत्यनारायण जोशी, सत्यनारायण व्यास, राजेन्द्र व्यास, राजेन्द्र दवे, प्रवीण त्रिवेदी, उमेश त्रिवेदी एवम गणमान्य बंधुओं के साथ श्रीमती सरला दवे, श्रीमती लक्ष्मीकांता दवे, श्रीमती अंजना दवे, श्रीमती स्नेहा शर्मा, श्रीमती अरुणा अवस्थी, श्रीमती आशा जोशी, श्रीमती अनिता त्रिवेदी, श्रीमती लीना त्रिवेदी, नाट्य कलाकार सुश्री पूजा जोशी, श्रीमती यामिनी दवे उपस्थित हुए।
मंच का सफल संचालन सेवानिवृत्त उदघोषक भानु पुरोहित वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी आकाशवाणी जोधपुर ने किया।

संवादाता गर्वित जोशी
जोधपुर

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