
क्या अभयारण्य क्षेत्रान्तर्गत निवासरत ग्रामवासियों के जानमाल की सुरक्षा ( हिंसक जानवरों से) का दायित्व पार्क प्रबंधन का है।
रिपोर्टर विजय कुमार यादव
यदि नहीं है तो होना चाहिए। अभयारण्य क्षेत्रान्तर्गत सभी प्राणियों के जानमाल की सुरक्षा पार्क प्रबंधन को करना ही चाहिए । जब यह समाचार आया कि शेरों की तादात काफी बढ़ गई है । बहुत अच्छा लगा । शेरों की तादात बढ़ने में पार्क प्रबंधन का भी योगदान सराहनीय है। किन्तु पिछले कुछ दिनों से मानव व हिंसक जानवरों की टकराहट बढ़ती ही जा रही है । कई लोग हिंसक जानवरों के हमले के शिकार हुए हैं । जिनमें कुछ तो घायल ही हुए और उपचार के बाद स्वस्थ हो गए हैं । किन्तु उन अभागों के लिए किस तरह का शोक व्यक्त करें । हमारे पास ऐसे कोई शब्द ही नहीं हैं जो बाघ द्वारा चबा – चबाकर खाए जाने से उस हिंसा के शिकार व्यक्ति को जो पीड़ा हुई होगी । कल्पना करिए….. कहीं आप बाघ के जबड़े में फँसे होते और बचाव के लाख प्रयत्न करने के बाद भी बाघ की पकड़ से निकल नहीं पाते । सोचिए फिर वो आपको अधमरा होने पर ही नोच – नोचकर चबा – चबाकर खाता । उस पीड़ा के एहसास की कल्पना करके ही मन भयाक्रान्त हो जाता है । अभ्यारण्य में यदि जानवरों को निर्भय विचरण करने की व उनकी पूर्ण सुरक्षा की व्यवस्था है तो अभयारण्य क्षेत्रान्तर्गत निवासरत ग्रामवासियों को भी सुरक्षापूर्ण निर्भय होकर रहने की व्यवस्था की जानी ही चाहिए । भारत में लोकतंत्र है जिसमें भारत में निवासरत सभी नागरिकों को जानमाल की सुरक्षा का मौलिक अधिकार है तो अभयारण्य में निवासरत ग्रामवासियों को भी जानमाल की सुरक्षा का मौलिक अधिकार है । अभयारण्य सम्पूर्ण अर्थों में अभयारण्य होना चाहिए । वहां सभी निवासियों व वनचरों के लिए अभ्यारण्य होना चाहिए । ये क्या कि वनचर तो अभय हैं और वहाँ के निवासी भयभीत हैं । अर्थात् वाँधवगढ अभयारण्य अपने अर्थ को पूर्णतः सार्थक कर पाने में असमर्थ है ।
पार्क प्रबंधन चाहे जो करे पर वहाँ के निवासियों को भी वनचरों के समतुल्य अभय करे । तभी बाँधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान का अर्थ सार्थक होगा ।
सुझाव…. बाँधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के क्षेत्रान्तर्गत जितने भी गाँव हैं और उन गाँवों के पोषण के लिए जितनी भी राजस्व की भूमि है उसे चारो तरफ से मजबूत व ऊँची वार विट वायर लगाई जाय व झटका तार भी लगाई जानी चाहिए । गाँव से पहुंच मार्ग तक भी मजबूत व ऊँची वार विट वायर लगाकर झटका तार लगाई जाय । जिससे उन्हें गाँव से अन्यत्र आने जाने में भी हिंसक जानवरों के हमले का खतरा न रहे । हो सके तो प्रत्येक गाँवों को जोड़ते हुए बस चलाई जानी चाहिए ताकि वहाँ के निवासी अपने गाँव से अन्यत्र सुरक्षित आ जा सकें ।
यह लोक समिति जिला उमरिया के सुझाव हैं । जरूरी नहीं है कि पार्क प्रबंधन ऐसा ही करे । किन्तु बाँधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्रान्तर्गत बसे ग्रामीणों की समुचित सुरक्षा के लिए कोई प्रोजेक्ट तैयार करे व शासन के समक्ष रखे । लक्ष्य सिर्फ यह है कि बाँधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के वनचर व निवासरत ग्रामीण पूर्णतः सुरक्षित हों ।
” पर उपदेश कुशल बहुतेरे ” किन्तु बाँधवगढ़ नेशनल पार्क में निवासरत लोगों के हताहत होने की पीड़ा हमें बहुत व्यग्र करती है और जिम्मेदार नागरिक होने के नाते भी हमारा फर्ज है कि हमअपने – अपने स्तर से कुछ करें कि वहाँ के निवासियों के हताहत होने के खतरे खत्म हों ।
एक सुझाव और है कि पार्क में बसे हुए गाँवों से दूर पहाड़ियों के समीप सौर ऊर्जा से चलने वाले हैण्डपम्प लगाए जांय । सूर्य के धूप लगने पर वे हैण्डपम्प स्वतः चलने लगेंगे । हैण्डपम्प से एक फर्लांग दूर धारा को बाँध दिया जाय । उससे दो फर्लांग दूर फिर धारा को बाँध दिया जाय । इससे ये होगा कि जो जानवर प्यास बुझाने के लिए गाँवों की ओर आते हैं वे जानवर पहाड़ियों के पास छोटे – छोटे बाँधों में पानी पीने जाने लगेंगे । शाकाहारी जानवरों के वहाँ जाने पर हिंसक जानवर भी शिकार के लिए पहाड़ियों के आस -पास ही डेरा जमा लेंगे । वे गांवों से दूर रहेंगे तो हिंसक जानवरों व मानवों की टकराहट कम होगी और उस क्षेत्र के निवासरत लोग जानमाल के खतरा से बच सकेंगे । ऐसे सैंकड़ों हैण्डपम्प लगाए जा सकते हैं और सैंकड़ों छोटे – छोटे बाँध बनाए जा सकते हैं । समाचार – पत्रों के माध्यम से लोक समिति जिला उमरिया बाँधवगढ़ नेशनल पार्क में निवासरत लोगों के जानमाल की सुरक्षा हेतु पुख्ता प्रबंध करने का आग्रह करती है ।
राम लखन सिंह चौहान
अध्यक्ष
लोक समिति जिला उमरिया
मध्यप्रदेश