शौचालयों के अभाव में बोतल परेड जरखोर की नियति है। बीज संग्रह केंद्र पर कुछ मनबढ़ लोगों का कब्जा है। एएनएम सेंटर पर कब्जा है। नदी की जमीनों पर कब्जा है। गांव की दलित बस्ती की सड़कें ठोकर मारती हैं। चुनाव सिर पर है। वादों की झड़ी फिर लगनी शुरू हो गई है। चुनावी बयार में नेता आएंगे, जाएंगे। झूठे-सच्चे वादे करेंगे। वादे हैं, वादों का क्या? सरकारें बनेंगी, बिगड़ेंगी। जरखोर बदलेगा, उम्मीद मत कीजिए। सिर्फ जरखोर ही नहीं। दूसरे गांवों की तस्वीर भी इसी तरह बदरंग है।”
जरखोर की तरक्की पर यूपी पुलिस के सेवानिवृत्त अफसर गोपाल सिंह कहते हैं, ”बीजेपी सांसद डा.महेंद्रनाथ पांडेय ने इस गांव की तरक्की का मुकम्मल खाका खींचा ही नहीं। पानी की टंकी तो बनी, लेकिन उसे भ्रष्टाचार के दीमक चाट गए। पानी की सप्लाई करने के लिए जो पाइप लाइनें डाली गईं वो निहायत घटिया थीं। कुछ पाइपें जमीन में दब गईं और जो बची हैं वो आए दिन फटती रहती हैं। यह गांव जब बनारस का हिस्सा था तब यहां बबुरी से पाइप के जरिए पेयजल की आपूर्ति होती थी। जरखोर में अब पुरानी पाइप लाइन का कहीं अता-पता नहीं है। नई टंकी बनी तो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई।”]
शौचालयों के अभाव में बोतल परेड जरखोर की नियति है। बीज संग्रह केंद्र पर कुछ मनबढ़ लोगों का कब्जा है। एएनएम सेंटर पर कब्जा है। नदी की जमीनों पर कब्जा है। गांव की दलित बस्ती की सड़कें ठोकर मारती हैं। चुनाव सिर पर है। वादों की झड़ी फिर लगनी शुरू हो गई है। चुनावी बयार में नेता आएंगे, जाएंगे। झूठे-सच्चे वादे करेंगे। वादे हैं, वादों का क्या? सरकारें बनेंगी, बिगड़ेंगी। जरखोर बदलेगा, उम्मीद मत कीजिए। सिर्फ जरखोर ही नहीं। दूसरे गांवों की तस्वीर भी इसी तरह बदरंग है।”
जरखोर की तरक्की पर यूपी पुलिस के सेवानिवृत्त अफसर गोपाल सिंह कहते हैं, ”बीजेपी सांसद डा.महेंद्रनाथ पांडेय ने इस गांव की तरक्की का मुकम्मल खाका खींचा ही नहीं। पानी की टंकी तो बनी, लेकिन उसे भ्रष्टाचार के दीमक चाट गए। पानी की सप्लाई करने के लिए जो पाइप लाइनें डाली गईं वो निहायत घटिया थीं। कुछ पाइपें जमीन में दब गईं और जो बची हैं वो आए दिन फटती रहती हैं। यह गांव जब बनारस का हिस्सा था तब यहां बबुरी से पाइप के जरिए पेयजल की आपूर्ति होती थी। जरखोर में अब पुरानी पाइप लाइन का कहीं अता-पता नहीं है। नई टंकी बनी तो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई।”