गोपाल चतुर्वेदी/मथुरा।
संपूर्ण भारत वर्ष आज देश मै बुद्ध पूर्णिमा पर्व मना रहा है भगवान बुद्ध और ब्रज का अटूट संबंध रहा है जिसका प्रमाण भी देखने को मिलता है।भगवान बुद्ध ने अपने जीवनकाल में ब्रज की दो यात्राएं की थीं। मथुरा संग्रहालय में बुद्ध की 1962 में मिली प्रतिमा संरक्षित है। इसे दो हजार साल पुराना बताया जाता है, जो कि कटरा (श्रीकृष्ण जन्मस्थान के निकट) के टीले से प्राप्त हुई थी। इसे भगवान बुद्ध की प्रथम प्रतिमा माना जाता है।
ब्रज एवं श्रीकृष्ण पर शोध कर रहे जानकर बताते हैं कि मथुरा संग्रहालय की परिचय पुस्तिका में उल्लेख है कि भगवान बुद्ध ने दो बार मथुरा की यात्रा की थी। एक और मथुरा के बारे मैं जानकारी रखने वाले महानुभाव बताते हैं कि दो हजार वर्ष पुरानी बुद्ध प्रतिमा कटरा (श्रीकृष्ण जन्मस्थान के निकट) के टीले से प्राप्त हुई थी। 1962 में मिली यह प्रतिमा भगवान बुद्ध की प्रथम प्रतिमा मानी जाती है।
यह प्रतिमा सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की प्रतीक है। भगवान बुद्ध बोधि वृक्ष के नीचे पत्थर के सिंहासन पर आसीन हैं। एक हाथ अभय मुद्रा में कंधे तक उठा है। प्रभामंडल, हस्तिनख आकृति से अंकित हैं। दोनों भौंहों के बीच ज्ञान प्राप्ति का सूचक ऊर्णा का उभरा हुआ चिह्न है। केवल एक कंधे पर उत्तरीय पड़ा है और हाथ एवं तलुओं पर स्वास्तिक, त्रिरत्न आदि अंकित हैं। यह मूर्ति साधुवेश में है, इसका अभिलेख इसे बोधिसत्व बताता है। सिंहासन के नीचे दोनों ओर सिंह विराजमान हैं। यह मूर्ति भगवान बुद्ध के ज्ञान की सूचक है। वहीं, इससे पूर्व मथुरा कचहरी स्थित जमालपुर टीले से 1864 में मिली बुद्ध की प्रतिमा भारतीय मूर्तिकला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण मानी जाती है। दोनों प्रतिमाओं में से एक संग्रहालय में और एक राष्ट्रपति भवन की शोभा बढ़ा रही हैं। करीब 1500 वर्ष पुरानी प्रतिमा के नेत्र कमल के समान, सुंदर घुंघराले बाल, लंबे कान, चारों दिशाओं में ज्ञान के प्रकाश की किरणों को बिखेरता अलंकृत प्रभामंडल और सबसे महत्वपूर्ण है प्रतिमा का ध्यान भाव।
मथुरा के इतिहास की जानकारी रखने वालों ने बताया कि बुद्ध के विषय में उल्लेख है कि उन्होंने ब्रज की दो यात्राएं की। पहली यात्रा के समय मथुरा की तत्कालीन परिस्थिति के कारण संतुष्ट नहीं हुए थे। उस समय यहां यक्षों का आधिपत्य था। उन्होंने बुद्ध की यात्रा के दौरान अनेक बाधाएं उत्पन्न कीं। निर्वाण के कुछ दिन पूर्व बुद्ध पुन: मथुरा आए थे। उस वक्त के शासक अवंतिपुत्र ने बुद्ध का आदर-सत्कार किया। उनके एक अन्य शिष्य महाकश्यप की पत्नी भद्रा कपिलानी मथुरा की रहने वाली थीं। बौद्ध धर्म के इतिहास में मथुरा की यश पताका फहराने वाले आचार्य उपगुप्त को मौर्य सम्राट अशोक ने धार्मिक प्रवचनों के लिए अपनी राजधानी पाटलिपुत्र में आमंत्रित किया था। इनके परामर्श से धर्मविजय की योजना बनाई। उपगुप्त की विद्वता के फलस्वरूप मथुरा सर्वास्तिवाद बौद्ध संप्रदाय का गढ़ बना। आज भी बौद्ध संप्रदाय का गढ़ मथुरा को माना जाता है।