नरेश सोनी
इंडियन टीवी न्यूज
हजारीबाग।
स्वतंत्रता के स्वर्णिम युग में लोकतंत्र की बोली
हजारीबाग:अब यह स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव है, जहां देशभक्ति के नाम पर झंडे लहराते हैं, और नेताओं के नाम पर मुँह फेर लेते हैं। यहाँ सियासत का नया रंग है – “मुफ्तखोरी का महासंग्राम।”
“रोटी, कपड़ा और मकान” का वादा तो पुराने जमाने की बात हो गई। अब तो “मुफ्त राशन, मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, और मुफ्त का इंटरनेट!” हां, आपने सही सुना। ऐसा लगता है कि हमारे नेता मुफ्तखोरी की प्रतियोगिता में ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने की तैयारी कर रहे हैं।
आधुनिक नेता का मंत्र
“आपके लिए सब कुछ मुफ्त, बस हमें वोट दो!”
मतदाता बेचारा क्या करे? वह सोचता है, “चलो, मुफ्त का माल मिल रहा है, फिर चाहे देश का खजाना खाली हो जाए, मेरी बला से!” आखिर कौन मना कर सकता है 2000 रुपये के नकद प्रसाद को, जिसे नेता जी अपनी दानवीरता के प्रमाण पत्र के साथ देते हैं?
अब एक नजर डालें इस पर
नेता जी का चुनावी भाषण शुरू होता है “मेरे प्यारे भाइयों और बहनों, आज हम देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक और कदम बढ़ा रहे हैं। हम आपको मुफ्त में सब कुछ देने का वादा करते हैं। कर्ज की चिंता न करें, यह देश तो हमारे बाप का है, इसे लुटाने में क्या बुराई है?”
इस बीच, सरकारी खजाने की हालत कुछ यूं है जैसे घर का गुल्लक हो, जिसमें कभी सिक्के खनकते थे और अब खाली आवाज करता है। लेकिन नेता जी को इसकी परवाह नहीं। उनके लिए तो सत्ता की कुर्सी ही सब कुछ है। मुफ्त में बांटे गए सामान का बिल कौन चुकाएगा? “अरे, वह तो बाद में देखेंगे, अभी तो वोट चाहिए!”
सत्ता का मोह
सत्ता लोभी नेता अपनी कुर्सी से इतना चिपक जाते हैं कि उसे छोड़ने का नाम नहीं लेते। उनका मकसद केवल एक – किसी भी कीमत पर जीतना। और यह कीमत जनता से चुकानी पड़े, तो भी उन्हें क्या फर्क पड़ता है?
आजकल चुनाव जीतने का तरीका सरल हो गया है। किसी अच्छे काम की बात नहीं, बस मुफ्तखोरी का वादा करो, जनता तो अपने आप फंस जाएगी। देश की भलाई की बात कौन करे, जब मुफ्त के वादों से सत्ता मिल रही है?
निष्कर्ष
हमारे नेताओं का यह खेल सिर्फ वर्तमान में फायदा देने वाला है, लेकिन इसका दीर्घकालिक असर विनाशकारी होगा। यह मत भूलिए, कि देश के खजाने से जो धन मुफ्त में बांटा जा रहा है, वह आपकी मेहनत की कमाई है। यह वह पूंजी है, जो हमारे भविष्य के विकास में लगाई जानी चाहिए, न कि सस्ती लोकप्रियता के लिए लुटाई जानी चाहिए।
इस व्यंग में एक संदेश छिपा है – देश का धन अमूल्य है। इसे लुटाने वाले नेता सत्ता लोभी हैं, जिन्हें जनता की वास्तविक जरूरतों से कोई लेना-देना नहीं। यह समय है कि हम ऐसे नेताओं को पहचानें और उनके झूठे वादों में न आएं। आखिरकार, देश की समृद्धि हमारे हाथों में है, न कि मुफ्तखोरी की राजनीति करने वालों के।