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आई ये हम सब मिलकर एक ऐसा भारत देश बनाएं सद्भवना

आई ये हम सब मिलकर एक ऐसा भारत देश बनाएं
सद्भवना और सौहार्द की एक मिसाल है हमारा देश,इसे बनाए रखने में सभी को देना चाहिए योगदान.!

सद्भाव और सौहार्द व इंसानियत को जो रौंद रहा उसके खिलाफ सरकार को सख्त कार्यवाही अमल में लानी चाहिए चाहे वह किसी भी समुदाय का हो..

जबतक हम गलत को गलत ओर सही को सही नही कहेंगे ऐसे लोग हमारी सद्भवना को ठेश पहुंचाते रहेंगे.!!

समाज में एक दूसरे धर्मों को लेकर जो बदजुबानी हो रही हैं इसका जिम्मेदार कौन हैं?यह सोचनीय पहलू हैं कि कभी कोई भी इंसान सोशल मीडिया पर बदजुबानी करके एक दूसरे समुदाय को आहत करके क्या पाता हैं?सिर्फ और सिर्फ वह समाज की बनी हुई सद्भवना को बांटने का काम करता हैं और उसकी कमजरफी से ना जाने कितने लोगों के मनो को ठेश पहुंचती हैं और लोग उसके खिलाफ सड़कों पर उतरकर धरना प्रदर्शन कर उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही चाहते है लेकिन जो सद्भाव और सौहार्द व इंसानियत को रौंद रहा हैं उसके खिलाफ सरकार को सख्त कार्यवाही अमल में लानी चाहिए चाहे वह किसी भी समुदाय का हो।एक दौर था जब हम लड़ाई-झगड़ों को पहले आपस में मिलजुल कर हल कर लिया करते थे या किसी की बात को इतनी गंभीरता से नहीं लेते थे कि लड़ने-झगड़ने लग जाएं पर अब तो किसी हलकी बात पर भी लोग बिना सोचे-समझे किसी पर भी हमला कर देते हैं,फिर उसे धर्म, जाति आदि की रक्षा से जोड़ देते हैं! हाल की कुछ घटनाओं को देखते हुए यही लग रहा है एक खास तरह का विद्वेष और शक माहौल में घुल रहा है ओर एक दूसरे के धर्म के बारे मे बदजुबानी करके देश के सद्भवना को आग लगाने में संकोच नही कर रहे है!यह ऐसे लोग यह भी नहीं सोच पा रहे कि भारत विविधताओं को अपने साथ लिए एक अनोखा देश है, जहां लोग आपसी सामंजस्य के साथ जीते रहे हैं लेकिन आज उन्हें केवल किसी धर्म के आधार पर ही नहीं, बल्कि उन्हें जाति, भाषा और क्षेत्र के आधार पर भी बांट दिया जा रहा है धर्म या जाति के नाम पर हमले छिपे नहीं रहे हैं!हालत यह है कि सड़कों पर हलकी टक्कर जैसी बात पर भी हिंसा हो जाती है!आखिर ऐसा क्यों हो रहा है!क्या पहले भी हमारा समाज ऐसा ही अधैर्य रखने वाला था!जब हम बच्चे थे तो हम कुछ किस्से पढ़ते या सुनते रहते थे कि किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति की जान बचाने के लिए कुछ पड़ोसी उन्हें अपने घर में छिपा लेते थे पर ऐसे उदाहरण अब बहुत कम देखने में आते हैं!
कहां खड़े हैं हम, खुद को कहां से देख रहे हैं हम? कहां हम बात कर रहे हैं विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की तो दूसरी ओर आपस में ही लड़-झगड़ रहे हैं, वह भी उनकी बातों में आकर, जिन्हें हमारे कल्याण से कोई मतलब नहीं है!क्या हमारे समाज में कभी विकास पर सचमुच की बात होगी?या बस कुछ लोगो की बदजुबानी ही चलती रहेगी!सोचनीय यह है कि क्या एक ऐसी संस्कृति और समाज भी बना रहे हैं जहां से हमें कई धाराएं दिखाई दे रही हैं जो हमें अलग-अलग खांचों में बंटा हुआ दर्शा रही हैं! अब यह हम पर निर्भर करता है कि इस भारतीय समाज में किस तरह का बदलाव देखना चाहते हैं!और हम सबको मिलकर ऐसे लोगों के खिलाफ खड़ा होना पढ़ेगा जो समाज की सद्भवना व सौहार्द को अपनी बदजुबानी से जहर घोल रहा है।जबतक हम गलत को गलत ओर सही को सही नही कहेंगे ऐसे लोग हमारी सद्भवना को ठेश पहुंचाते रहेंगे।
रिपोर्ट रमेश सैनी सहारनपुर इंडियन टीवी न्यूज़

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