रासायनिक खाद और कीटनाशकों के उपयोगो से..

आम जनता के साथ-साथ किसानों को भी कई दुष्परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं!इससे किसान का खर्च और कर्ज दोनों बढ़ रहा है, क्योंकि किसानों को रासायनिक खाद, कीटनाशक और हाइब्रीड बीज महंगे दाम पर खरीदने पड़ते हैं!कई बार किसान बैंक कर्ज के जाल में फंसने से आत्महत्या तक कर लेते हैं!ऐसी कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं!इतना ही नहीं, रासायनिक खाद और कीटनाशकों के उपयोग से मिट्टी प्रदूषित हो रही है, हानिकारक कीटों की वृद्धि हो रही है। विभिन्न प्रकार के लाभकारी जीवों जैसे-मछली, केंचुआ समेत दूसरे कीट-पतंगों की कमी हो रही है। रासायनिक खाद और कीटनाशक प्रभावित खानपान से कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो रहे हैं। इसलिए बदलते वक्त और खेती की लागत ज्यादा होने की वजह से अब किसानों का रुख धीरे-धीरे प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ रहा है।देश भर में किसानों की वर्तमान सामाजिक-आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। उत्पादन और मूल्य प्राप्ति दोनों में अनिश्चितता की वजह से किसान उच्च लागत वाली कृषि के दुश्चक्र में फंस गया है। किसानों की पैदावार का आधा हिस्सा उनके उर्वरक और कीटनाशक में ही चला जाता है। इस तरह किसान आज लाचार और विवश है। वह भ्रमित है। परिस्थितियां उसे लालच की ओर धकेल रही हैं। उसे नहीं मालूम कि उसके लिए सही क्या है?रासायनिक खाद से किसान और देश दोनों को हो रहा आर्थिक नुकसान हो रहा हैं!अधिकतर कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि रासायनिक खेती की तुलना में प्राकृतिक खेती में फसल की उपज कम होती है, फिर केंद्र सरकार प्राकृतिक खेती के समर्थन में क्यों है। दरअसल, सरकार को प्राकृतिक खेती के जरिए खाद अनुदान, मिट्टी की घटती उर्वरा शक्ति और जल संकट जैसी चुनौतियों से निपटने की उम्मीद है। सरकार का मानना है कि देश के वैज्ञानिक हरित क्रांति और रसायन आधारित कृषि पर अनुसंधान करते रहे हैं और इसी के आधार पर किसान खेती करते आए हैं। उसमें अब बदलाव लाने की जरूरत है, क्योंकि रासायनिक खाद से खेती करने से किसान और देश दोनों को आर्थिक नुकसान हो रहा है। एक अनुमान के मुताबिक हमारे देश में पांच करोड़ टन रासायनिक खादों का आयात होता है, जिसके लिए अनुदान एक लाख करोड़ रुपए है। इससे दोगुने से ज्यादा पैसा बाहर के देशों को रासायनिक उर्वरकों की खरीदारी के लिए जा रहा है।

रिपोर्ट रमेश सैनी सहारनपुर इंडियन टीवी न्यूज़

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