मंच पर सजी राजनीतिक जुबानों पर इनका जिक्र क्यों नही होता..
राजनेताओं ने राजनीति का मतलब महज धर्म का बंटवारा और जाति में मतभेद..
जब भीख मांगना अपराध तो मासूम बच्चे भीख कैसे मांग रहें..?
देश में भीख मांगना अपराध की श्रेणी में रखा गया है!फिर देश की सड़कों पर खुलेआम लोगों के सामने इतने सारे हाथ कैसे उम्मीद और ख्वाहिश में फैले रहते हैं?अगर भीख मांगना अपराध है तो बिना किसी तरह की हिचक के सबके सामने यह ‘अपराध’ कैसे चलता रहता है? घोषित अपराध को रोकने वाला हमारा महकमा कहां सो रहा होता है? इनके प्रति आंखें मूंद रख कर कहीं हमारी व्यवस्था अपनी इन जिम्मेदारियों से मुंह तो नहीं चुरा रही होती है कि अभाव में मर-जी रहे अपने नागरिकों को इस दलदल से निकालना उसका दायित्व है?इन सारी बातों पर बहसें लगातार होती रही हैं! लेकिन मंच पर सजी राजनीतिक जुबानों पर इनका जिक्र कहीं नहीं आता है क्योंकि राजनेताओं ने राजनीति का मतलब महज धर्म का बंटवारा और जाति में मतभेद बना रखा है!लेकिन मुद्दा लाख टके का है। कभी भी उछालिए तो खूब बिकेगा भी। लोग अफसोस भी जताएंगे। कुछ दिन के लिए नजर और नजरिया भी बदलेगा। चाट के ठेलों, समोसे की दुकानों से खासतौर पर एकाध चीजें लेकर दान देने का हम दिखावा भी करेंगे!लेकिन क्या इस प्रयास से व अभाव के मारे सुखी हो जाएंगे? क्या एक दिन जुबान में हमारे द्वारा पैदा किया चटखारा उन्हें धन्य कर जाएगा? इस व्यवस्था और परंपरा पर शर्मिंदगी होती है!एक तरफ गरीबी की चक्की में पिसते लोग हैं तो दूसरी ओर गरीबी को भी एक धंधा बना दिया गया है।इसमें बाकायदा वैसे दलाल शामिल हैं जो अपहरण करते हैं और बच्चों को भीख मांगने के लिए तैयार करते हैं!इसमें उन्हें अपंग बनाने से लेकर सभी तरह के अत्याचार शामिल हैं!हर साल बच्चों के गायब होने की सूचना पुलिस के पास दर्ज होती है,इनमें से एक चौथाई कभी नहीं मिलते व बच्चे कहां जाते हैं? क्या व मानव तस्करों और गैरकानूनी अंग व्यापार करने वालों के हत्थे चढ़ जाते हैं?लेकिन सच यह है कि देश में ज्यादातर बाल भिखारी अपनी मर्जी से भीख नहीं मांगते व संगठित माफिया के चंगुल में फंस कर भीख मांगने पर मजबूर होते हैं! इनके पास किताबों के बजाय हाथ में कटोरा आ जाता है लेकिन इसका कारण क्या है, शायद ही इस बात को सरकार ने कभी गंभीरता से लिया हो।तमाम दावों के साथ काम करने के वादे भी हुए हैं कई एनजीओ इन बच्चों के लिए काम करते हैं लेकिन इन बाल भिखारियों की तादाद में कोई खास कमी नहीं आई है!जाहिर है सरकार या गैरसरकारी स्तर पर की जाने वाली कोशिशें और इंतजाम पर्याप्त नहीं हैं!खासतौर पर सरकार को भीख मांगना अपराध घोषित करना तो जरूरी लगता है लेकिन इस समस्या की जड़ में जाकर इसे खत्म करने की दिशा में कोई ठोस पहलकदमी नहीं होती! जरूरत है रवैया बदलने की ताकि देश असल में मजबूती के साथ खुद को विश्व के सामने पेश कर सके।
रिपोर्ट रमेश सैनी सहारनपुर इंडियन टीवी न्यूज़