
विपत्ति के समय में संत को ही राष्ट्र की चिंता रहती है–बटुकानंद जी शास्त्री भींटा वाले
सिंग्रामपुर/// सिंग्रामपुर के पास ग्राम पिपरिया में चल रही श्री राम कथा में ग्राम भीटा से पधारे मानस मर्मज्ञ श्री वाटुकानंद जी शास्त्री ने अपने वक्तव्य में बताया की
जब जब कोई विपत्ति और संकट आता है इस भारत भूमि पर इस पावन धरा पर चिंता किसी राजा महाराजा को नहीं होती है एक महात्मा को होती है और और राष्ट्र की व्यवस्था के लिए भगवान को लेकर आता है और इस राष्ट्र को बचाता है
गाधितनय मन चिंता व्यापी।
हरि बिन मरहि न निसचर पापी।।
तव मुनिवर मन कीन्ह बिचारा।
हरि अवतरहि हरन महि भारा
विश्वामित्र जी के मन में चिंता छा गई यह पापी राक्षस भगवान की मारे बिना नहीं मर सकते तब मुनि से स्नान विचार किया कि प्रभु में पृथ्वी का भार उतारने के लिए अवतार लिया है इसीलिए हैंडसम तो को इस सारे संसार की चिंता है संसार यों कोई संतो की चिंता रहनी चाहिए कि उनके ऊपर कोई विपत्ति कोई संकट हमारे द्वारा कभी संतो का अपमान ना हो क्योंकि *आग लगी संसार में बरस रहे अंगार ,संपन्न होते जगत में तो जल जाता संसार*
संसार में काम क्रोध लोभ मोह मद मात्सर्य अभिमान की आग जल रही है अगर संत संसार मे हों तो यह सारा संसार इन विषयों की आग में जल करके भस्म हो जाएगा संत ही है जो हमें इस भीषण ज्वाला से बचाते हैं।