
ब्यूरो चीफ सुंदरलाल जिला सोलन
कसौली केन्द्रीय अनुसंधान संस्थान को सौ करोड़ का एनटीसीरा सीरम प्रोजेक्ट को केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से तो मिली थी हरी झंडी लेकिन कसौली के मशोबरा गाँव की साथ लगती भूमि के एक सौ अठाई बीघा जिस भूमि का चयन किया गया उसे केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से अभी तक अनापति(एन ओ सी) नहीं मिल पाने से यह बड़ा प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते होता नजर आने लगता दिखाई देने लगा है | केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने हिमाचल प्रदेश सरकार को भूमि के हस्तान्तरण करने को कहा गया था जिसका सारा खाका तैयार करके प्रदेश सरकार को भेजा गया जा चुका है इसकी जानकारी संस्थान के चीफ मेडिकल ऑफिर यशवंत ने दी है |गौरतलब हो कि सौ करोड़ के लगभग इस प्रोजेक्ट में सी आर आई कसौली १२०० घोड़ों को खरीद करके एनटीसीरा सीरम से बैक्सिन बनाएगा यह प्रोजेक्ट जीएमपी विश्व स्वास्थ्य संगठन के मापदंडों के अनुरूप होगा |उन्होंने बताया यदि प्रदेश सरकार यह भूमि जल्द उपलब्ध करवा दे तो कसौली सी आर आई को और भी नए प्रोजेक्ट मिलने की सम्भावना हो सकती है | संस्थान के चीफ मेडिकल अधिकारी ने जानकारी देते हुए बताया की कसौली सी आर आई में पहले एमएससी बायोलोजि में छात्रों को प्रशिक्षित करवाता था अब जल्द ही संस्थान में पीएचडी भी कराने का कार्य शुरू करने जा रहा है | याद रहे की ऐतिहासिक केन्द्रीय अनुसधान संस्थान [सी,आर आई,] कसौली ने अपने एक सौ बारह वर्ष के लम्बे सफर में कई उतार चढ़ाव देखे हैं यह ऐतिहासिक केन्द्रीय अनुसंधान संस्थान तीन मई उन्नीस सौ पांच में अपने अस्तित्व में आया व् वर्ष 1899 में सर्जन जनरल हार्वे सेनिटरी कमिश्नर व् भारत सरकार ने केन्द्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला खोलने का प्रस्ताव रखा जिस पर वर्ष 1905 में अमल लाया गया तथा कसौली केन्द्रीय अनुसंधान संस्थान की स्थापना कर दी गई ऐतिहासिक अनुसंधान संस्थान कसौली के सर डेविड सेंपल को पहला निर्देशक बनाया गया इसके बाद सीआरआई कसौली में वर्ष 1906 में सर्पदंश के इलाज की वैक्सीन विकसित कर मानव जीवन रक्षक में बाजार में उतारी गई वर्ष 1911 में यहाँ सेंटल मलेरिया ब्यूरो को भी स्थापित किया गया जिसे वर्ष 1938 में दिल्ली में मलेरिया संस्थान खुलने पर स्थानांतरित कर दिया गया वर्ष 1962 में यहाँ पर एन् लुजा सेंटर की स्थापना की गई देश की आजादी के बाद लेफिनेट कर्नल एम् एल ,आहूजा को सन1942 से 1955 तक पहले भारतीय व्यक्ति को सीआरआई का निर्देशक बनाया गया और वर्ष 1979 में यहाँ पोलियो वैक्सीन टैस्टिंग [पीवीटी]लैब की स्थापना की गई सन 1979 में संस्थान में एम् फिल माइक्रोबाइलोजी की कक्षाओं को डब्लूएचओ के सौजन्य से हिमाचल विश्व विधालय द्वारा मान्यता दी गई इसके बाद यहा पर देश भर से छात्र छात्रा भी एमएससी [माइक्रोबाइलोजी] की कक्षाएं लगाई जाती रही हैं