
ब्यूरो चीफ सुंदरलाल जिला सोलन,
1864 में मेडलिकॉट द्वारा की गई ऐतिहासिक खोज को मिला नया जीवन
कसौली क्लब के पास हुई एक ऐतिहासिक खोज में प्रसिद्ध भूविज्ञानी डॉ. रितेश आर्य ने एक लगभग 2 करोड़ वर्ष पुराना ताड़ के पत्ते का जीवाश्म खोजा है। यह खोज एसोसिएशन ऑफ पेट्रोलियम जियोलॉजिस्ट्स (APG) द्वारा आयोजित तीन दिवसीय भूगर्भीय फील्ड वर्कशॉप के दौरान हुई, जिसमें ONGC और Cairn से आए 14 भूवैज्ञानिकों की टीम ने भाग लिया। कार्यशाला का उद्देश्य सुबाथू, डगशाई, कसौली, सिमला, क्रोल और शिवालिक श्रृंखलाओं का अध्ययन कर हिमालय की उत्पत्ति और भूवैज्ञानिक इतिहास को समझना था।
एक भूवैज्ञानिक ‘यूरेका’ पल
यह खोज 11 जून 2025 को उस समय हुई जब डॉ. आर्य गिल्बर्ट ट्रैक के पास कसौली फॉर्मेशन को समझा रहे थे। वापसी के दौरान कसौली क्लब के पास उन्हें यह जीवाश्म दिखा। उस समय उनके साथ ONGC के भूवैज्ञानिक श्री संजय गुप्ता और श्री प्रीतीयुष भी मौजूद थे, जो इस खोज को देखकर बेहद उत्साहित हुए।
डॉ. आर्य ने बताया,
“यह एक यूरेका मोमेंट था। जब मैंने इसे देखा तो मुझे तुरंत 1864 की मेडलिकॉट की खोज याद आ गई। यह पत्ते का जीवाश्म उसी स्थान से मिला है जहां मेडलिकॉट ने कभी Sabal major Heer नामक पाम पत्ते का जीवाश्म खोजा था।”
कसौलीः जीवाश्मों की नई राजधानी
जहाँ पुस्तकों में कसौली को अब तक अजीवाश्मी क्षेत्र (unfossiliferous) माना जाता रहा है, वहीं डॉ. आर्य ने अपने स्रातक काल से ही इस क्षेत्र से पत्तियाँ, फूल, फल, बीज, लकड़ी और यहां तक कि गैंडे जैसे स्तनधारी जीवों के जीवाश्म भी खोजे हैं।
उनकी यह नवीनतम खोज Tethys Fossil Museum में प्रदर्शित की गई है जो कसौली के पास डांगयारी में स्थित है और हिमालय व टेथिस महासागर के भूवैज्ञानिक इतिहास को समर्पित है।
जलवायु और प्लेट विवर्तनिकी पर संकेत
ताड़ जैसे पौधे केवल निचले, आर्द्र, तटीय क्षेत्रों में पनपते हैं। आज का कसौली जो 2000 मीटर की ऊंचाई पर है, वहां इस जीवाश्म का पाया जाना यह दर्शाता है कि 20 मिलियन वर्ष पहले कसौली समुद्र तल से केवल 200-500 मीटर ऊंचाई पर था और तटीय जलवायु में स्थित था।
डॉ. आर्य ने बतायाः
“ग्लूटा, गार्सिनिया, सिज़ीजियम और कंब्रेटम जैसे पौधों के जीवाश्म भी कसौली में पाए गए हैं, जो आज केवल अंडमान-निकोबार, मलेशिया और इंडोनेशिया में पाए जाते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि उस समय कसौली भूमध्य रेखा के निकट स्थित था और हिमालय अभी अस्तित्व में नहीं आया था।”
डॉ. मेडलिकॉट को समर्पण
डॉ. आर्य ने इस खोज को ब्रिटिश भूवैज्ञानिक मेडलिकॉट को समर्पित किया है, जिनकी 1864 की खोज ने उन्हें युवा अवस्था में ही प्रेरित किया।
“यदि मेडलिकॉट ने वह पत्ता न खोजा होता, तो शायद मैं भूविज्ञान में नहीं आता। यह खोज मेरे लिए व्यक्तिगत और ऐतिहासिक दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण है।”
सार्वजनिक अवलोकन हेतु खुला
यह जीवाश्म अब Tethys Fossil Museum में संरक्षित और प्रदर्शन पर है। संग्रहालय में 500 से अधिक जीवाश्म प्रदर्शित हैं, जो दर्शकों को पृथ्वी, टेथिस महासागर, और हिमालय की उत्पत्ति की कहानी बताते हैं।
अधिक जानकारी या भ्रमण हेतु संपर्क करें: टेथिस फॉसिल म्यूज़ियम, डांगयारी, धरमपुर-सुबाथू
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