
इंडियन टीवी न्यूज़ सूर्या परमार
शुजालपुर
राजस्थान महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस नेत्री रेहाना रियाज़ चिश्ती एक आपत्तिजनक बयान देकर विवादों में घिर गई हैं। संगठन सूजन अभियान की बैठक के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” योजना पर तंज कसते हुए कहा:
> “भाजपा वाले पढ़ते नहीं, बल्कि ‘बेटी पटाने’ का काम करते हैं।”
इस बयान ने न सिर्फ राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है, बल्कि समाज में बेटियों के सम्मान और गरिमा पर भी सवाल खड़ा कर दिया है।
शब्दों की मर्यादा भूलीं महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष?
जिस महिला नेता को बेटियों की सुरक्षा, सम्मान और सशक्तिकरण की लड़ाई में अग्रिम मोर्चे पर रहना चाहिए, वही जब “बेटी पटाओ” जैसे गंभीर और अशोभनीय शब्द कहे, तो ये सवाल उठना लाजमी है —
क्या राजनीति में भाषाई मर्यादा खत्म हो गई है?
क्या महिलाओं के नाम पर राजनीति कर रहे नेता खुद महिलाओं का अपमान नहीं कर रहे?
सवाल यह भी उठता है कि क्या एक महिला नेता को इस तरह के दोहरे अर्थ वाले, अशोभनीय शब्दों का प्रयोग करना शोभा देता है? रेहाना चिश्ती के इस बयान से ना सिर्फ उनके राजनीतिक संस्कार पर प्रश्नचिह्न लगा है, बल्कि बेटियों की अस्मिता को लेकर भी गंभीर चिंता जताई जा रही है।
नेताओं को यह समझना होगा कि बेटियों पर राजनीति करने से पहले उनके सम्मान की मर्यादा का पालन करना जरूरी है। बयानबाज़ी की होड़ में “बेटी पटाओ” जैसे शब्दों से किसी की भी अस्मिता को ठेस न पहुंचे, यह जिम्मेदारी सबसे पहले जनता के प्रतिनिधियों की ही है।