लोकेशन डोंगरगढ
केशव साहू
डोंगरगढ़ स्थित माँ बम्लेश्वरी मंदिर न केवल श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि वह सांस्कृतिक अस्मिता का भी प्रतीक है। इसी मंदिर को लेकर इन दिनों एक ऐसा सवाल उठ खड़ा हुआ है, जो सिर्फ चुनावी व्यवस्था का नहीं, बल्कि प्रतिनिधित्व, अधिकार और सम्मान का है।
सर्व आदिवासी समाज द्वारा ट्रस्ट समिति के चुनाव में 50% आरक्षण की माँग के साथ जो विरोध दर्ज कराया गया, वह एक भावनात्मक नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और सामाजिक न्याय की माँग है। आदिवासी समाज का यह दावा कि माँ बम्लेश्वरी उनकी आराध्य देवी हैं और उनका गोत्र ‘उइके’ देवी से जुड़ा हुआ है — कोई हवा में उछाली गई बात नहीं, बल्कि इस क्षेत्र की सांस्कृतिक स्मृति का हिस्सा यह गंभीर चिंता का विषय है कि वर्षों से मंदिर प्रबंधन पर कुछ प्रभावशाली लोगों का वर्चस्व रहा है, जबकि जिन समुदायों ने परंपरागत रूप से इस मंदिर की सेवा और पूजा में भाग लिया, उन्हें निर्णायक भूमिका से वंचित रखा गया।
जब मंदिर की सेवा और संचालन सार्वजनिक दान और श्रद्धा से चलता है, तो उसका प्रबंधन भी सभी समाजों की सहभागिता से होना चाहिए प्रदर्शन के अंत में आदिवासी समाज ने प्रशासन को तीन महीने की चेतावनी देते हुए ज्ञापन सौंपा है।