जिला-सिवनी ब्यूरो चीफ
अनिल दिनेशवर
@लम्पी_स्किन_डिसीज बीमारी से बचाव के लिए सलाह
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लम्पी स्किन डिसीज एक विषाणुजनित पॉक्स परिवार समूह की बीमारी है। बीमारी गाय व भैसा में तेजी से फैलने वाली बीमारी है, इससे मनुष्यों में कोई खतरा नहीं है। पशुओं में बीमारी स्वस्थ्य पशुओं के बीमार पशुओं के संपर्क में आने से व मक्खियाँ मच्छरों एवं किल्लियों के काटने से एक पशु से दूसरे पशुओं में तेजी से फैलती है।
लम्पी स्किन डिसीज का संक्रमण प्रदेश से लगे हुए राज्य राजस्थान एवं गुजरात में फैला हुआ है। प्रदेश के रतलाम उज्जैन, मंदसौर, खण्डवा जिलों में रोग की पुष्टि हुई है एवं इन्दौर, धार, बुरहानपुर एवं बैतूल जिले में पशुओं में लक्षण दिखाई दिये है। अतः राजस्थान एवं गुजरात से लगे हुए जिलों में पशुओं के आवागमन पर नियंत्रण किये जाने की आवश्यकता है। वर्तमान में सिवनी जिले में लम्पी स्किन डिसीज से कोई भी पशु के प्रभावित होने की सूचना नही है विभागीय अमले को सूचना मिलने पर भारत सरकार की गाइडलाईन अनुसार कार्यवाही सम्पादित करने हेतु निर्देशित किया गया है तथा आकस्मिक/रोग उद्भेद की स्थिति में कार्यवाही हेतु जिला स्तरीय एवं विकासखण्ड स्तरीय कार्यवाही दल का गठन कर दिया गया है, जो रोग की रोकथाम एवं बचाव हेतु विशेष रूप से कार्य करेंगे।
पशुओं मे बीमारी के लक्षण शुरूआत में तेज बुखार दो से तीन दिन रहता है, भूख न लगना, दुबलापन, दूध का कम होना, सर्दी-जुकाम, मुँह से लार आना, सूज़न (गलकंबल, पैसे में) के कारण पशुओं चल न पाना पशुओं के शरीर में 2 से 3 सेंटीमीटर की गांठ (गले, पीठ में) का उभरना जो चमडी के साथ साथ मसल्स की गहराई तक जाती है अधिकतर पशु 2 से 3 सप्ताह के अंदर ठीक हो जाते हैं।
उपचार व रोकथाम – बीमारी का कोई निश्चित उपचार नहीं है परंतु रोग के शरूआती लक्षण दिखने पर तत्काल निकटस्थ पशुचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। लक्षणों के आधार पर पशुओं का उपचार पशुचिकित्सकों द्वारा किया जाता है। जिसमें एटिपायरेटिक एंटिबायोटिक एंटिहिस्टिमिनिक व मल्टीविटामिन दवाओं के इंजेक्शन लगाने से या टेबलेट खिलाने से पशु 2 से 3 सप्ताह के अंदर ठीक हो जाते है। गांठों के फूटने से घाव होने पर एंटिसेप्टिक घोल जैसे कि लाल दवा से साफकर एटिसेप्टिक क्रीम या हल्दी तेल का मिश्रण घाव पर पशुओं को लगाना चाहिए।
बीमारी की रोकथाम हेतु पशुपालकों को पशुघर में अच्छी साफ सफाई रखनी चाहिए. पशुओं के शरीर से किल्लयों (Ectoparasite) को अलग करना चाहिए। बीमार पशुओं को स्वस्थ्य पशुओं से अलग रखना चाहिए, बीमार पशुओं का चारा का विनिष्टिकरण करना चाहिए तथा पशुओं को समूह में चराना नहीं चाहिए। बीमारी को पशुओं में रोकने के लिए पशुओं का समय पर टीकाकरण करवाना चाहिए।