चीफ़ ब्यरो जिला सोलन सुन्दरलाल
केंद्रीय अनुसंधान संस्थान (सीआरआई) कसौली जीवन रक्षक दवाओं का उत्पादन कर मानव जीवन के कल्याण में अहम भूमिका निभा रहा है। तीन मई 1905 को संस्थान की स्थापना हुई थी। अपने गौरवशाली इतिहास के साथ-साथ संस्थान ने कई उतार-चढ़ाव भी देखे हैं।1893 में पाश्चर संस्थान खोलने के लिए लाहौर में एक बैठक में प्रस्ताव पास हुआ था और उस समय पंजाब राज्य के शात व ठंडे वातावरण वाली कसौली को इसके लिए चुना गया था। तीन मई 1905 में पाश्चर संस्थान को सीआरआइ में तब्दील कर दिया गया था। संस्थान के पहले निदेशक ब्रिटिश वैज्ञानिक सर डेविड सेम्पल ने 1905 में एंटी रैबीज वैक्सीन का आविष्कार भी संस्थान में किया था, जिस कारण इस वैक्सीन को सेम्पल वैक्सीन भी कहा जाता है। देश की एकमात्र सेंट्रल ड्रग्स लेबोरेटरी (सीडीएल) 1940 में यहां स्थापित की गई थी। 1906 में सीआरआइ ने देश में पहली बार सर्पदंश के इलाज के लिए सीरम और टायफायड बुखार के लिए वैक्सीन का उत्पादन शुरू किया। 1911 में यहां सेंट्रल मलेरिया ब्यूरो को स्थापित किया गया। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान संस्थान ने भारी मात्रा में वैक्सीन का उत्पादन किया। 1914 में कसौली में टायफायड तथा कोलरा, हैजा वैक्सीन का उत्पादन शुरू किया गया। 1979 में संस्थान में एमफिल, माइक्रो बायोलोजी की कक्षाओं को शुरू किया गया। इसके अलावा पीएचडी, पैथालोजी बीएससी, एमएससी माइक्रो बायोलोजी सहित अन्य कक्षाएं भी यहां चलती हैं। देश में दिमागी बुखार निरोधक टीके इसी संस्थान द्वारा तैयार किए जाते हैं। अफ्रीकन देशों में जाने से पूर्व लगने वाले यलो फीवर के टीके भी यहीं तैयार किए जाते हैं।जीएमपी के क्षेत्र में पहला सरकारी संस्थान
सीआरआइ सरकारी क्षेत्र में जीएमपी (गुड मेन्यूफेक्चरिंग प्रेक्टिस) के तहत दवा उत्पादन करने वाला पहला संस्थान बन चुका है। संस्थान में करोड़ों की राशि से बना जीएमपी भवन तमाम उन आधुनिक सुविधाओं से लैस है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप है। संस्थान में मुख्य रूप से एंटी सिरा, एंटी रैबीज वैक्सीन, डीटी वैक्सीन, टीटी वैक्सीन, डीपीटी ग्रुप ऑफ वैक्सीन, यलो फीवर वैक्सीन, जैपनीज एनसेफालिटिस वैक्सीन, डायग्नोस्टिक रीजेंट, एंटी डॉग बाइट व एंटी स्नेक बाइट वैक्सीन, एकेडी वैक्सीन, एंटी वेनम सीरम, टोकसाइड सीरम यहां के मुख्य उत्पादन हैं।
अर्श से फर्श तक का सफर :
अपने एक शताब्दी से भी अधिक के समय से देश-विदेशों के लिए महत्वपूर्ण लाइफ सेविंग वैक्सीन का उत्पादन करने वाले इस संस्थान ने अपने अपने इस सफर में कई उतार-चढाव देखे हैं। सीआरआइ को मदर इंस्टीट्यूट का भी दर्जा प्राप्त है। 15 जनवरी 2008 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने संस्थान का वैक्सीन प्रोडक्शन लाइसेंस ठप कर दिया था और 30 जनवरी 2008 को संस्थान में दवा उत्पादन बंद हो गया था। यह सब जीएमपी के मानकों के अनुरूप दवा उत्पादन न होने के कारण हुआ था। दो साल तक चली जद्दोजहद व देश में वैक्सीनों के संकट को देखते हुए 15 जनवरी 2010 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सस्पेंड पड़े लाइसेंस को बहाल कर दवा उत्पादन शुरू करवा दिया था।
महत्वपूर्ण कोरोना वैक्सीन का उत्पादन व कोरोना टेस्टिंग कर रहा वहीं, जापानी बुखार (जेई) वैक्सीन व यलो फीवर वैक्सीनों का उत्पादन भी बंद है।