
नरेश सोनी इंडियन टीवी न्यूज ब्यूरो चीफ हजारीबाग।
अपने देश का इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि आज शिक्षा और नौकरी पर्यायवाची बन गए। हैं। प्रोफेसर राजेंद्र यादव।
हजारीबाग: इचाक प्रखंड में जगन्नाथ महतो इंटर महाविद्यालय उरूका में शिक्षक दिवस मनाया गया। इस शुभ अवसर पर शिक्षक की अनुभव बातें जितने बच्चे पढ़कर निकलते हैं, उनकी तुलना में रिक्त स्थान कहीं काम होते हैं। सबको नौकरी मिलना कठिन होता है। ऐसी दशा में शिक्षितों में ऐसी प्रतिभा का प्रादुर्भाव आवश्यक है, जिसके आधार पर उनका व्यक्तित्व इतना निखारा हुआ हो कि जहां भी स्थान पाएँ या पैतृक धंधे को अपनाएँ, उसे अपने कौशल के सहारे संतोषजनक स्थिति पर पहुंचा सकें।
शिक्षा का उद्देश्य यह होना चाहिए कि पढ़ाई पूरी करने के उपरांत विद्यार्थी सब ओर अपने लिए द्वार खुले देखे। उसे यह अनुभव न हो कि सरकारी नौकरी न मिली, तो उसके भाग्य फूट गए। हाट- बाजारों में घूम कर देखते हैं, तो प्रतीत होता है कि लाखों व्यक्ति गैर- सरकारी नौकरी करते हैं और मालिकों के प्राणप्रिय बनकर रहते हैं। मालिक अपने भाग्य को सराहते हैं कि ऐसा काम का आदमी हाथ लग गया, जिसने सारा कारोबार संभाल कर हमें निश्चिंत कर दिया। उनका वेतन भी बढ़ता रहता है और समय-समय पर उपहार भी मिलते रहते हैं। इसके विपरीत ऐसे लोग भी होते हैं,जिनको हटाने या हट जाने का अवसर तलाशा जाता रहता है। इसका सीधा सा कारण एक ही है, व्यक्तित्व की सुगढ़ता, कुशलता, प्रवीणता और प्रमाणिकता का न होना।मेरे प्रियजनों शिक्षा का सीधा अर्थ सुसंस्कारित का प्रशिक्षण है।इसे नैतिकता, सामाजिकता, सज्जनता आदि किसी भी नाम से पुकारा जा सकता है।